90 वर्ष के जवान...
आप और हम मिलकर तारा संस्थान के माध्यम से उन बुजुर्गों की मदद कर रहे हैं जो कि जरूरतमंद हैं। तीनों वृद्धाश्रमों में जो भी बुजुर्ग आते हैं उनकी उम्र का 60 वर्ष से ऊपर होना जरूरी है यानी कि हम यह मानते हैं कि 60 वर्ष से जो ऊपर हैं वो बुजुर्ग है.... लेकिन क्या वाकई ऐसा है? इस प्रश्न के जवाब में आपको एक ऐसे बुजुर्ग के बारे में बताना चाहेंगे जो कतई वृद्ध नहीं हैं और उन्होंने हमें यह सोचने पर मजबूर किया कि उम्र से आदमी बुजुर्ग नहीं होता है। हम बात कर रहे हैं रतलाम के रहने वाले एन.डी. मुखीजा साहब की। जन्म 1927 में पाकिस्तान के मुल्तान शहर के पास गाँव में हुआ था। जमींदार परिवार से थे लेकिन 1947 में आजादी के समय विभाजन हुआ तो उनको घर बार सब छोड़कर आना पड़ा। विभाजन के समय वे बड़ी मुश्किलों से अपने माता-पिता और भाई बहिनों के साथ भारत आए। 25 किलोमीटर पैदल चले और मालगाड़ी के डिब्बों में छुपते-छुपाते अमृतसर के वाघा बार्डर तक पहुँचे। भारत आने पर परिवार को चलाने के लिए मजदूरी भी की। उनकी सबसे छोटी दूधमुँही बहिन थी जिनको चेचक हो गया तो इनको परिवार सहित शरणार्थी शिविरों से भी निकाल दिया और फिर बहिन भी नहीं बची। विभाजन के समय उन्होंने जो त्रासदी झेली या जिन्होंने भी झेली उस पीड़ा के लिए कोई शब्द ही नहीं बने हैं। खैर, श्री मुखीजा साहब फिर पढ़ाई और काम करते रहे फिर भारतीय रेलवे में नौकरी करने लगे। शादी हुई बच्चे भी हुए, जिंदगी पटरी पर आ गई। पत्नी स्कूल में पढ़ाती थी। 2012 में इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया उसके बाद से मुखिजा साहब अकेले रहते हैं, उनके सभी बच्चे रतलाम से बाहर हैं, सभी अच्छे से सेटल्ड हैं। आनंद वृद्धाश्रम के बारे में पता चला तो उसमें दो कमरे व एक हाल बनाने के लिए सहयोग किया। अभी जब वे उदयपुर आए तो उन्हें हम निर्माणाधीन वृद्धाश्रम भवन में ले गए। सभी छतें डल गई हैं, एक एक करके वे माले चढ़ते गए और पाँच मंजिल ऊपर छत पर वो आराम से पहुँच गए। हमारे काम का सबसे अच्छा पहलू ही यह है कि दिल से सुंदर लोगों से मिलते हैं। मुखीजा साहब तो जैसे बहाना ढूँढ़-ढूँढ़ कर दान देते हैं और हर बार कहते हैं ष्ज्ीपे पे उल ींतक मंतदमक उवदमलष् यानी कि गाढ़ी कमाई का पैसा है.. हमें खुद पर अभिमान भी होता है कि आप लोग हम पर कितना विश्वास करते हैं। ईश्वर बस इस यकीन को बनाएँ रखें ऐसी ही कामना है और हमसे भी कुछ गलती ना हो यही प्रार्थना करती हूँ। जब मुखीजा साहब से पूछा कि वे कैसे अपने आप को डंपदजंपद करते हैं तो बहुत सी बातें पता चली। इस उम्र में भी वे स्कूटर चलाते हैं, है न मजेदार बात। सुबह जल्दी 5 बजे उठना, सुबह-शाम नियमित एक-एक घंटा पैदल घूमना, व्यायाम, कम और पौष्टिक खाना केवल एक रेटी सुबह और एक रोटी शाम में खाते हैं, फल भी खाते हैं। अपना खाना खुद बनाते हैं और घर में अकले रहते हैं और अधिकांश काम खुद से करते हैं। आप उनके घर जाएँगे तो चाय भी वे खुद ही बनाते हैं। हम में से हर कोई ये चाहता है कि हम दीर्घायु हों और स्वस्थ हों तो एक 90 साल के जवान से मिलना हुआ तो आपसे भी मिला दिया। मैंने भी प्ररेणा ली है और लिफ्ट का इस्तेमाल कम कर रही हूँ। आशा है, आप भी प्रेरित होंगे ही। ईश्वर से एक ही प्रार्थना है कि आदरणीय मुखीजा सा को किसी की नजर ना लगे।
आदर सहित...
कल्पना गोयल
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