आपका विश्वास, हमारी निधि
अभी कुछ दिनों पहले संस्थान की डाक में एक मुझे एक पत्र मिला.... यह पत्र 17-18 वर्ष की एक बालिका का था। पत्र का सार कुछ इस तरह का था : मैं 12वीं विज्ञान में पढ़ रही हूँ, मेरा सपना इंजीनियर बनने का है क्योंकि मेरे पापा भी इंजीनियर थे.... तीन साल पहले एक सड़क दुर्घटना में वे हमें छोड़ के चले गए। घर पर मैं और मम्मी, केवल दो जने हैं। मम्मी सिलाई का काम करती है। मैं इंजीनियरिंग एन्ट्रेन्स की तैयारी के साथ 5-6 बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हूँ... हमारी स्थिति को देखकर अच्छी तरह से पता है कि एक विधवा महिला को छोटे बच्चों के साथ घर चलाने में कितनी परेशानी होती है.... पत्रिका तारांशु में गौरी योजना के बारे में पढ़ा और पत्र के साथ एक हजार रुपए चैक भेज रही हूँ.... यह राशि बड़ी तो नहीं पर इसे अपनी ट्यूशन की कमाई में से बचा के भेजा है कृपया स्वीकार करें....
पत्र को पढ़कर बरबस आँखें नम हो गयी.... और विचार आया कि हम कितने सौभाग्य शाली हैं लोग हम पर विश्वास करके अपने खून-पसीने की कमाई में से हमें सौंप देते हैं ताकि उसका उपयोग अच्छे कार्यों में कर सकें। तारा संस्थान में जितने भी दानदाता जुड़े हैं न तो वे मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं और न मेरी सभी से बात हुई। लेकिन, फिर भी, एक रिश्ता सा बन गया है.... यह रिश्ता पूर्णतयाः विश्वास पर आधारित है। आपका हम पर विश्वास है कि इन पैसों को सही काम में उपयोग लेंगे.... हमारा भी आप पर विश्वास है तो हमें चिन्ता किस बात की?
यकीन मानिए तारा संस्थान में काम को देखते हुए कभी इस बात की चिन्ता नहीं हुई कि संस्थान तो मुख्यतः दान पर आधारित है तो आगे का काम कैसे चलेगा। डॉक्टर्स या फिर कोई भी स्टाफ कितने दिनों तक हमारे व्यक्तिगत सम्बन्धों पर साथ में काम करेगा? उन्हें भी तो अपने घर चलाने हैं।
सच में यह लगता है कि जैसे इस काम को ईश्वर स्वयं अपने हाथों से चला रहा है। वरना हजारों कि.मी. दूर अमेरिका के किसी शहर से कोई दान भेजे और उससे उदयपुर के पास आदिवासी अंचल के किसी बुजुर्ग दम्पति को महीने भर का राशन मिल जाए.... है न चमत्कार? और ऐसे चमत्कार हम हर पल देख रहे हैं। कितने लोग हैं जिन्हें तारा नेत्रालय - उदयपुर, दिल्ली व मुम्बई में आँखों की रोशनी मिल रही है और उनको यह नेत्र ज्योति देने वाला कोई दानदाता वहाँ से सैंकड़ों मील दूर बैठा है।
कितने बुजुर्ग जिन्हें अपने बच्चों ने नहीं संभाला उनको न जाने कितने बच्चे मिलकर तारा संस्थान के आनन्द वृद्धाश्रम के माध्यम से संभाल रहे हैं। और हमारी छोटी-छोटी कम उम्र की विधवा महिलाएँ जिनके बच्चों की पढ़ाई के लिए न जाने कितने माता-पिता अपने बच्चों की सुविधाओं में कटौती करके सहयोग कर रहे हैं।
मुझे अच्छी तरह पता है कि हर व्यक्ति हर परिवार की अपनी जरूरतें होती हैं और जो भी हमें और तारा संस्थान जैसे अन्य किसी भी संस्थान को धन देते हैं वे अपनी आवश्यकताओं में कुछ कटौती करके ही दान दे पाते हैं। और इस दान के साथ उनकी बहुत सारी भावनाएँ जुड़ी होती हैं। और यह भावों भरा सहयोग ही तो हमारी निधि है। हमें मालूम है कि हम अगर सही नीयत से काम करते रहे तो कितना भी काम कर लें यह दान कम नहीं होगा।
हमारे सभी दानदाताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए।
आदर सहित....
कल्पना गोयल
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