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Anant Pyar

Posted on 11-Sep-2018 03:16 PM
अनंत प्यार
 
ये तीसरा साल है जब रक्षा बंधन पर आप सभी जो हमारे डोनर हैं उन्हें राखी भेजी है, इस परंपरा की शुरूआत बस एक विचार भर से हुई थी कि हम उन सब के लिए कभी कुछ कर ही नहीं पाते जो सिर्फ ‘‘तारा’’ पर विश्वास करके अपनी मेहनत की कमाई का बहुत सा हिस्सा दान कर देते हैं। जो आपको आपके दान के बदले में फीडबैक जाता है वो तो मात्र भौतिक वस्तु है और हम अच्छी तरह जानते हैं कि आप लोगों के लिए उनके मायने बहुत नहीं हैं क्योंकि दान भावना का विषय है दान देने वाले इसलिए दान नहीं देते कि उनके पास अपार धन है वे तो इसलिए दान देते हैं कि उनका मन बहुत बड़ा है और जब मन की बात आती है तो सबसे अमीर भी गरीब हो सकता है और सबसे गरीब भी अमीर। तारा संस्थान जो भी कुछ कर रही है उसमें 80 प्रतिशत योगदान उन लोगों का है जो निम्न मध्यम, मध्यम या उच्च मध्य वर्ग के हैं और जो शेष 20 प्रतिशत भी हैं वे भी देश के जाने माने उद्योगपति नहीं हैं लेकिन ये सभी 100 प्रतिशत दानदाता मन से, भाव से अरबपति हैं। वे जो भी करते हैं उसके बदले में हम तारा परिवार या लाभार्थी क्या कर सकते हैं? ये प्रश्न अकसर मन में आता है, कभी-कभी अपने कार्यकर्ता के माध्यम से मेवाड़ी पगड़ी या श्रीनाथ जी का उपरना या छोटा-मोटा उपहार या प्रसाद कुछ भेज सके हम, लेकिन वो भी कितना, सब के घर तो कार्यकर्ता जाते नहीं हैं। इन्हीं विचारों के मंथन में दो साल पहले जब रक्षा बंधन आने वाला था तब सोचा कि आप सभी को रक्षा सूत्र भेजें, इसमें भी थोड़ा सा संशय हुआ कि आप लोगों को ऐसा ना लगे कि यह भी दान लेने का नया तरीका हो लेकिन हमने साथ में एक पत्र लिखा जो इस बात का द्योतक था कि जितनी शुद्ध भावना से आप दान देते हैं उतनी ही शुद्ध भावना हमारी इस राखी में है। पहली बार जब राखी भेजी तब से अब तक हर साल हमारे लिए यह त्योहार सबसे महत्त्वपूर्ण हो गया। अजमेर के श्री शंकर लाल जी कुमावत तो हर साल कल्पना जी से राखी बँधवाने आने लगे और आप सब के पत्र जिनमें इतना-इतना प्यार कि क्या कहें कुछ महानुभाव तो ऐसे थे जिन्होंने वषर्¨ं बाद अपनी कलाई पर राखी बाँधी थी। आप में से अधिकतर ने यही लिखा कि हमने रक्षा बंधन के दिन हमने अपनी कलाई पर आपकी राखी भी बाँधी। 
 
ये जो रिश्ता आपका और हमारा बना है उसमें देना लेना सब गौण हो गया है बस प्यार और विश्वास अब मूल में रह गया है। हमें लगा कि हम इस रक्षा सूत्र के द्वारा आपको थोड़ा प्यारा लौटा देंगे लेकिन आप लोगों ने पत्रों के माध्यम से दोगुना प्यार लौटा कर सिद्ध कर दिया कि दाता तो आप ही रहेंगे।
 
आदर सहित....
 
दीपेश मित्तल

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