अपना घर
हर माह आपसे रुबरु होने का तारांशु एक साहित्यिक माध्यम है, सोशल मीडिया के इस युग में प्रिंटेड पढ़ना भी अब ‘‘कुछ अलग’’ हो गया है।
‘‘तारा’’ के माध्यम से हम सभी के लिए बहुत-बहुत खुश, एवम् उतने ही संतुष्ट होने के बहुत सारे कारण हैं......
प्रथम - अपने नवीन वृद्धाश्रम को 22 अप्रैल को एक वर्ष कम्पलीट हो गया है...... और ये वर्ष में करीब 45 लोगों वृद्धजन का आगमन हुआ...... उनमें से तीन वृद्धों का कहना था कि अगर ये जगह नहीं मिली होती तो जिन्दगी को खत्म करने के अलावा कोई उपाय नहीं था और बाकी कुछ लोगों के भोजन-चिकित्सा की समुचित व्यवस्था नहीं थी...... और बाकी कुछ लोगों के दिल तरस रहे थे स्नेह-प्यार के लिए पर मिल रही थी उपेक्षा तिरस्कार।
मुझे लगता है, ये सब सपने के सच होने जैसा है...... कि एक ऐसी जगह बनी हुई है जहाँ कोई भी वृद्ध कभी भी आ सकते है...... बस उन्हें ये पता होने की जरूरत है कि उनका अपना खूबसूरत सा घर है...... जहाँ उन्हीं की उम्र से थोड़े छोटे-बड़े उनके बहुत सारे मित्र भी है, पौष्टिक भोजन आवास-चिकित्सा...... पूर्ण सुविधा सहित......
मेरा अनुभव यह रहा है कि कुछ समय पश्चात् जब आपके कुछ गहरे दोस्त बन जाते हैं तो पुरानी दुःखद यादें धुंधली होने लगती है और फिर कभी गेस्ट आ रहे...... कोई बर्थडे मना रहा...... गुब्बारे लगे हुए...... चारों ओर...... सब लोग गा रहे...... नाच रहे...... फिर साप्ताहिक ग्रुप डांस...... मन हुआ तो कर लिया...... सिर्फ देखना भी सुखद है।
वृद्धाश्रम के इस पूरे प्रोजेक्ट का अगर सार मुझे कहना हो तो यही कि बुजुर्गों का घर है, सिर्फ उनके लिए है, देश-विदेश के कुछ करुण हृदयी भामाशाहों ने अपनी करुणा को धन में बदल दिया और पूर्णतया निःशुल्क ‘‘घर’’ बन गया है...... यकीन करिये सभी जिन्होंने ‘‘घर’’ बनवाया है वे अपरिचित हैं इस घर के आवासियों से...... यह एक निःस्वार्थ सम्बन्ध है......
मैं और दीपेशजी जी-जान लगाकर यह कोशिश करते हैं कि उनके इस अधिकार पर आँच न आए...... उनके सम्मान में कोई कमी न आए...... उनके ‘‘अपने घर’’ के विश्वास को ठेस न पहुँचें......
इस ‘‘बड़े से घर’’ को देखने, साथ ही उसे और मजबूत करने और उदयपुर भ्रमण हेतु अवश्य पधारियेगा...... स्वागत है......
कल्पना गोयल
Join your hand with us for a better life and beautiful future