अपने हिस्से का काम
बीते एक दो महीने हम सब की जिन्दगी में हादसे की तरह निकले हैं। कई साल बाद आगे जाकर हमसे कोई पूछेगा कि जिन्दगी का कुछ समय जो आप जीवन से निकाल देना चाहें तो सबका जवाब ये ही एक दो साल होंगे और विशेषकर ये दो तीन महीने होंगे क्योंकि मुझे नहीं लगता कि कोराना होगा तो भी इससे बुरा दौर कोई आएगा। हर किसी के अपने बीमार थे हर किसी के अपने मर रहे थे और सबसे बड़ी बात कि कोई बहुत अपना चाहकर भी अपनों की मदद नहीं कर रहा था। शमशान में जहाँ एक व्यक्ति के शव के साथ पूरा समाज खड़ा होता था वहाँ चार कंधे भी नहीं मिल रहे थे, पत्थर बनी आँखों में आंसू भी सूख गए थे।
लेकिन इन सब के बीच उम्मीद भी झलक रही थी, लोग धर्म जाति के बंधन से हट कर भी एक दूसरे की मदद कर रहे थे। नागपुर में एक 70 वर्षीय बुजुर्ग ने Oxygen वाला बेड छोड़ दिया ताकि 40 साल के युवक की जान बचाई जा सके। मुझे नहीं लगता कि इससे बड़ा कोई त्याग हो सकता है और दो तीन दिन बाद उन बुजुर्ग की मृत्यु हो गई। यदि स्वर्ग है तो मुझे लगता है कि उनको सबसे ऊँचा स्थान मिला होगा। वो सभी डॉक्टर्स जो इस लड़ाई में सैनिक की तरह लड़ रहे हैं उन्हें हम जितना भी धन्यवाद दें कम है क्योंकि जैसे एक सैनिक को पता होता है कि किसी भी कोने से कोई भी गोली आ सकती है वैसे ही डॉक्टर्स जो कोरोना की ड्यूटी कर रहे हैं उन्हें भी पता है कि उन्हें भी ये वायरस कभी भी पकड़ सकता है और ये शत्रु तो अदृश्य है और इतना सूक्ष्म कि कोई भी सुरक्षा कवच तोड़ के घुस जाए। ऐसे डॉक्टर्स, नर्स व अन्य हॉस्पीटल कर्मी जो इस लड़ाई को लड़ रहे उनको हम सभी ताउम्र नमन करते रहेंगे।
ये जो लहर शुरू हुई तो सदमा सा लगा, समझ ही नहीं आया कि क्या करें और क्या ना करें? लेकिन, वो कहते हैं ना कि भगवान आपसे कुछ कराना चाहता है तो रास्ता भी बना देता है। मेरे पास सूरत के दानदाता श्री अरविन्द जी नांगलिया का फोन आया उन्होंने कहा कि इस लहर में हम Oxygen और वेंटिलेटर तो Arrange नहीं कर सकते लेकिन क्या आप लोग रोजगार खो चुके या परेशान लोगों के लिए कुछ कर रहे हैं? हम थोड़ा बहुत काम इस दिशा में कर रहे थे लेकिन परेशानी ये थी कि कोरोना के समय दान कम हो गया था तो हम वैसे ही तकलीफ में थे तो कैसे क्या करते? नांगलिया साहब ने एक अच्छी राशि दी और उस पूरी राशि से हमने मण्डी भेजकर अनाज मंगवाया और उसके किट बनाकर बंटवा दिए। जो टीमें किट बाँटने गईं उनको जो फीडबैक आया उस से लगा कि अभी बेहद जरूरत है इस तरह के राशन किटों की जिससे कि काम खो चुके लोगों को किसी का मोहताज ना होना पड़े।
हमें भी लगा कि इस महामारी में हमारे हिस्से का काम मिल गया, जो बेबसी लग रही थी कि हम कुछ नहीं कर पा रहे वो नांगलिया साहब के एक फोन ने दूर कर दी। हम जुट गए उदयपुर, दिल्ली, मुम्बई, फरीदाबाद व लोनी (उ.प्र.) हर जगह किट बांटने में दानदाताओं से भी अपील की इस ‘‘अन्नदान योजना’’ में सहयोग देवें और लोगों ने खुलकर सहयोग देना भी शुरू किया। नांगलिया साहब को जब हमने फोटो भेजे तो उन्होंने दोबारा सहयोग भेज दिया। जब लोग जुड़ने लगे तो हमने सब जगह किट भी बढ़ा दिये और ये ‘‘अन्नदान योजना’’ चल पड़ी। 700 रु. का एक किट बन रहा है जिसमें गेहूँ 10 कि.ग्रा., चावल 2 कि.ग्रा., दाल 2 कि.ग्रा., शक्कर 2 कि.ग्रा., चायपत्ती 500 ग्राम है और ये जिन परिवारों को मिल रहा उन्हें फौरी राहत मिलने लगी।
आप भी ये सोचेंगे कि इतने से किट के क्या मायने हैं लेकिन जिनका काम छिन गया चाहे वो सड़क पर चादर डालकर जूते बनाने वाला हो या रिक्शा चलाने वाला या फुटपाथ पर एक कुर्सी लगा कर बाल काटने वाला, उन्हें अगर अगले 10-15 दिन के लिए थोड़ी राहत खाद्य सामग्री की ही मिल जाए तो जीवन आसान हो जाता है। यहाँ तक कि हमारे कॉल सेन्टर में काम करने वाली कुछ बेहद गरीब महिलाओं ने भी किट मांगा और हमने उन्हें भी दिया लेकिन इस बात का ध्यान रखा कि वाकई जरूरतमंद को यह मिले।
तारा संस्थान की यह योजना हम कम-से-कम अगले 3 महीने तक तो चलाएंगे ही क्योंकि लॉकडाउन खुल भी गया तो भी लोगों का जीवन सामान्य होने में अभी वक्त लगेगा और हमारी छोटी सी मदद अभी उनके लिए ईश्वर का प्रसाद होगी। मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करती हूँ कि आप भी इस योजना से जुड़ें। मुझे ये भी पता है कि अभी स्थितियाँ अच्छी नहीं हैं, काम धंधे भी सही नहीं चल रहे लेकिन थोड़ा-थोड़ा हम सब मिलकर करें तो भी काफी कुछ कर लेंगे।
हमारे बहुत से दानदाता इस काल में असमय चले गए और वे सभी करुणामय थे तभी तो तारा से जुड़े थे। उनका जाना हमारे लिए किसी सदमे से कम नहीं है लेकिन ईश्वर की इच्छा के आगे हमारा वश नहीं है उन सभी को तारा परिवार की ओर से श्रद्धांजलि।
ऊँ शांति
- कल्पना गोयल
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