Follow us:

Blog


Apno Se Baat

Posted on 16-Dec-2020 03:50 PM

अपनों से बात

पिछले दो-ढाई महीने से एक कसमसाहट सी मन में थी, कारण इतने कि गिना ही ना सकें। मेरे बहुत से कारण तो वो हैं जो आपके भी हैं या यों कहें की पूरी दुनिया के हैं। सबसे पहले कोरोना आया और उसके साथ एक डर कि पता नहीं इस अदृश्य शत्रू का शिकार ना जाने कौन हो जाए और वो कौन कितना अपना होगा उस सोच से उपजा भय भी उतना ही बड़ा। फिर लॉकडाउन और उस से जुड़ी उम्मीद लेकिन कितना ही यत्न करो इस उम्मीद में थोड़ा नैराश्य खालीपन का भी आ जाता। लॉकडाउन 2 जब शुरू हुआ तो थोड़ा-थोड़ा काम ऑफिस में करने लगे थे क्योंकि डर लगने लगा कि डोनेशन नहीं हुआ तो क्या होगा। हॉस्पीटल तो चलो काम रोक लिया सो खर्च नहीं होगा लेकिन उसमें काम कर रहे लोगों को कुछ तो देना था ना कि उनका घर भी चलता रहे साथ ही वृद्धाश्रम, तृप्ति, गौरी के लाभार्थी उनकी जिम्मेदारी भी थी। आय और खर्च की जोड़ बाकी में जब थोड़े हाथ पैर फूलने लगे तो डरते-डरते एक मैसेज आप सबको किया कि 5000/- तीन माह तक दे सकें। मन में विचार यह भी था कि ना जाने आप क्या सोचेंगे कि जब सब बंद है तो भी दान मांग रहे हैं। पर जब सब चलाना है तो थोड़ा मन कड़ा किया और आप में से बहुत से महानुभावों ने दान दिया। हिम्मत बढ़ी और अब लगने लगा कि थोड़ा दान और थोड़ा रिजर्व फंड और थोड़ी खर्चों में कटौती तारा को जिलाए रखेगी। वैसे मरने की बात तो हम सोचते ही नहीं थे क्योंकि ईश्वर ने जिस काम के लिए चुना तो राह भी वो ही दिखाएगा यह प्रबल विश्वास है। 

लेकिन लॉकडाउन दो के बाद जिस बात ने सबको रुला दिया वो या मजदूरों का पलायन; इतनी बेबसी तो कभी महसूस नहीं हुई जो इस वक्त हुई। मुझे तो लगता है कि एक-एक प्रवासी मजदूर की पीड़ा को हम सबने झेला है, बैलगाड़ी में जूते हुए उस युवक के कंधे का बोझ हमारे सबके सीने में है, सुना है कि उसको तो प्रशासन ने नया बैल दिला दिया पर वो और उनके जैसे कई दृश्य ऐसे जख्म दे गए जिनका मरहम सिर्फ समय है। मैंने भी हमारे वृद्धाश्रम जाते समय हाईवे पर भरी दोपहरी में कंधे पर झोला लटकाए सैंकड़ों लोगों को जाते हुए देखा। प्रयास किया कि इन्हें कुछ राहत दे सकें लेकिन इस बात की तकलीफ है कि बहुत ज्यादा नहीं कर पाए हम। कारण कुछ भी हों लेकिन ये लगता है कि कमी हमारी थी, सबकी नहीं तो भी थोड़े बहुत के लिए कुछ तो कर सकते थे। आँखों के रोगियों के ऑपरेशन इमरजेंसी ऑपरेशन में नहीं आते हैं लेकिन तारा नेत्रालयों में कई रोगी ऐसे भी आते थे जिनका मोतियाबिन्द इतना पका होता था कि आँखों के रोशनी चली जाती उनका क्या होगा, ये बात भी परेशान कहती थी लेकिन बस जान है तो जहान है इसी वाक्य के साथ सरकार के हर नियम के साथ चलते रहे। तृप्ति योजना के जो लाभार्थी आ गए उनको दो माह का एक साथ राशन दे दिया कि उन्हें बार-बार आना जाना ना पड़े लेकिन फिर भी कर्फ्यूग्रस्त क्षैत्रों के कुछ बुजुर्ग रह गए, सिवाए बेबसी के हम कुछ नहीं कर सकते थे। वैसे प्रशासन या उनके मोहल्ले या गाँव के लोगों ने भोजन करा दिया होगा ऐसा विश्वास था। 

हमारे जो भी दानदाता है उनमें भी काफी बुजुर्ग हैं तो उनके लिए भी ये लगता था कि वो सभी स्वस्थ रहे और घर से जहाँ तक हो सके ना निकलें। अब दो-ढाई महीने हो गए हैं और अभी तक किसी अनहोनी की सूचना नहीं आई है उसके लिए ईश्वर को अनेकों धन्यवाद है। पिछले एक दो माह से तारांशु पत्रिका भी आपको नहीं भेज पा रहे थे तो एक कसमसाहट ये भी थी कि मानो संवाद ही रूक गया आपसे। बस इसलिए व्हाट्सएप्प को माध्यम बनाया है कि कुछ तो बातचीत हो और आप जो तारा का परिवार है उन्हें यह भी पता रहे कि ‘‘तारा’’ ने भी थोड़ा कुछ किया है इस कोरोना में जिन्दगियों को बेहतर बनाने के लिए। अभी जून, जुलाई एवं अगस्त में ‘‘ओम दीप प्रसाद योजना’’ के तहत 1000 लोगों को प्रतिमाह राशन (10 कि.ग्रा.  गेहुँ, 2 कि.ग्रा. चावल, 2 कि.ग्रा. शक्कर, 2 कि.ग्रा. तेल, 500 ग्राम चाय पत्ती) दे रहे हैं, मकसद है पटरी से उतरी जिन्दगी को थोड़ा सहारा देना।

आशा है आप सभी अच्छे से होंगे, आपको और परिवार को मेरा प्रणाम।

आदर सहित...

कल्पना गोयल

Blog Category

WE NEED YOU! AND YOUR HELP
BECOME A DONOR

Join your hand with us for a better life and beautiful future