ऐ मेरे वतन के लोगों...
लता जी का ये गाना कहते हैं नेहरू जी की आँखों में पानी ले आया था और हम सब भी जब भी ये गाना सुनते हैं हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसी गाने की एक पंक्ति ये भी है कि ‘‘जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली’’ इस होली पर भी ऐसा माहौल बना कि ऐसा न हो कि हम सब रंगों में नहाए हों और कोई हमारी रक्षा में लहू से नहा ले। हालांकि यह लेख लिखे जाने तक स्थिति बेहतर लग रही है और लगता है कि होली सिर्फ रंगों की ही होगी। हमारे विंग कमांडर अभिनन्दन शान से वापस आ गये हैं लेकिन कुछ घंटे जब वो पाकिस्तान में थे हम सब की सांसें रुकी हुई थी ऐसा लगा कि हमारे परिवार का कोई बच्चा सीमा पार फँस गया हो, दुश्मन की कैद में उस बहादुर पायलट ने जिस तरह से जवाब दिए हर भारतीय को लगा कि जैसे वो खुद सीना तान कर जवाब दे रहा हो और जब विंग कमांडर अभिनन्दन का मारपीट के बाद खून से सना चेहरा देखा तो हम सबके चेहरे पर भी उन खरोंचों का एहसास आ गया। जब हमें इतनी पीड़ा है तो उन परिवारों की पीड़ा का तो अंदाजा हम लगा भी नहीं सकते जिनके बच्चे फौज में हैं। युद्ध की हर आहट उस माँ, पत्नी, पिता सबका दिल धड़का देती होगी जिनके बच्चों फौज में होते हैं। हमारे फौजियों की मानसिकता का तो क्या कहें छोटी सी तनख्वाह में अपने प्राणों की बाजी लगाने में वो सोचते नहीं हैं, क्या जज्बा होता होगा कितनी ताकत होती होगी उनके दिलों में।
1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ तो पहाड़ी की चोटियों पर दुश्मन था और हमारे फौजी नीचे से ऊपर चढ़ रहे थे गोलियों की बौछार में, यानी की निश्चित मौत थी तो भी वो ही जोश था, उस समय टी.वी. पर या अखबारों में तिरंगा उठाए पहाड़ की चोटियों पर विजय का निशान बनाए सैनिकों की खुशी देखकर मन ये ही सोचता था कि ये लोग किस मिट्टी के बने हैं कि इनको डर ही नहीं लगता। मेरे बहुत से मित्र और मिलने वाले जब कहते हैं कि युद्ध होना चाहिए और अब तो दुश्मन को सबक सिखा ही देना चाहिए, मुझे भी ऐसा ही महसूस होते हुए भी कहा नहीं जाता कि युद्ध हो जाए, हमेशा यही सोचता हूँ कि उस माँ की क्या हालत होगी जिसका बेटा फौज में है। हम लोग तो अपने बच्चों को अच्छी नौकरी या व्यापार में लगाने जाएँ और फिर बातें युद्ध की करें तो थोड़ा अजीब हो जाएगा। हाँ ये जरूर है कि मैंने हर फौजी और यहाँ तक की शहीद के परिवार वालों को भी यही कहते सुना है कि दुश्मन को सबक सिखाओ। ईश्वर शायद फौजियों के परिवार वालों को भी अलग ही मिट्टी का बनाता है।
भारतीय सभ्यता तो हमेशा से शांति की हिमायती रही है जहाँ महावीर, गौतम बुद्ध और गाँधी जैसे महापुरुष हुए हैं लेकिन हमारे हुक्मरान भी तभी युद्ध की संभावनाओं पर जाते हैं जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है, हमने कभी आगे होकर युद्ध नहीं किया लेकिन हमारी विनम्रता को हमारी कमजोरी समझा गया और ऐसा लगा कि ये होली लाल रंग की होगी।
ईश्वर की कृपा है कि स्थितियाँ बेहतर होने लगी हैं और शायद आगे और बेहतर हो जायें। हम तो ये प्रार्थना ही कर सकते हैं कि कुछ सिरफिरे जो जेहाद के नाम पर ये सब कर रहे हैं उन्हें सद्बुद्धि आए। ये जो पिछले कुछ दिन थे वो इतने उथल पुथल भरे थे कि तारांशु में भी आप से इस विषय में बात करके मन कुछ हल्का हो गया।
आप सभी को होली की शुभकामनाएँ...
दीपेश मित्तल
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