भाव... दान का
अभी मैं जब ये लेख लिखने बैठा हूँ तो तारा संस्थान, उदयपुर में दो महिलाएँ आई हुई हैं जिनमें एक हमारी दानदाता है श्रीमती पद्मावती दुबे और दूसरी उनकी मित्र हैं। हैदराबाद शहर की रहने वाली दोनों दोस्त पहली बार उदयपुर आई हैं और कुछ समय के लिए वृद्धाश्रम में रुकी हैं। यह प्रश्न आपके मन में अवश्य आ रहा होगा कि इस लेख में उनका जिक्र क्यों? सही है संस्थान में दानदाता बहुत आते हैं और सबकी बात तो करते नहीं हैं। पद्मावती जी से संक्षिप्त बात से पता चला कि उनके एक मात्र संतान पुत्र थे जिनका स्वर्गवास कुछ समय पहले हो गया था और अभी थोड़े समय पहले उनके पति भी नहीं रहे। अभी उनकी आय मात्र एक छोटी से प्रोपर्टी का किराया लगभग 4000 रु. और 2000 रु. कोई पेंशन आती है वो है।
सबसे बड़ा आश्चर्य ये है कि इस छोटी सी आय में भी पद्मावती जी साल में लगभग 21000 रु. तारा को दान करती हैं और इसके अलावा नारायण सेवा संस्थान और अन्य जगह भी कुछ दान पुण्य करती रहती हैैैं। इतनी कम आय में कोई दान कर सके ये चकित करने वाली बात है। मैंने उनसे पूछा कि आप 6000 रु. में से लगभग 3000 रु. दान कर देते हो तो फिर खाते-पीते क्या और कैसे हो, तो उनकी मित्र ने कहा कि ये महीने में लगभग 15 दिन तो व्रत उपवास ही कर लेती हैं तो ज्यादा खर्चा ही नहीं होता। मजाक में मैंने कह दिया कि आप बचा हुआ भी दान करके हवा पर जीवित रह लिया करो तो वो बस मुस्कुरा दी।
इनसे मिलकर मन में प्रबल भाव आया कि तारा संस्थान जो भी कुछ कर पा रही है उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका उस भावना की है जो हमारे हजारों दानदाता संस्थान के प्रति रखते हैं। सिर्फ धन से कोई चीज चलती तो बड़े बड़े उद्योगपतियों की धर्मशालाएँ खाली नहीं पड़ी होती, तारा में कई दानदाता जुड़े हैं जो छोटा बड़ा अपनी सामर्थ्यानुसार दान देते रहते हैं और उस धन के साथ आपका मन भी ‘‘तारा’’ से जुड़ा है तभी तो आप हमें पत्र लिखते हैं, फोन करते हैं और जब भी मौका मिले काम को देखने भी आते हैं। दान देने का सामर्थ्य सबका अलग अलग होता हैं लेकिन जितना मैं समझा हूँ हमारे सभी दानदाता अपनी सामर्थ्य का शत प्रतिशत प्रयोग करते हैं।
आप लोगों का तारा पर यकीन हमें भी प्रेरित करता है कि हम दम लगा कर यह प्रयास करें कि इस यकीन पे खरे उतरें। आपका और हमारा यह रिश्ता न जाने कितने कितने लोगों का भला कर जाता है। सबसे बड़ी बात है कि पाने वाले को भी बहुत ज्यादा यह पता नहीं चलता कि उनके लिए कौन क्या कर रहा है और भेजने वाले भी पाने वाले के सम्पर्क में नहीं आ पाते हैं लेकिन पाने वाले भी ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और हमारे दानदाता भी ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उन्हें उसने दे सकने का सौभाग्य दिया और हम सभी जो तारा संस्थान में काम करते हैं वो सबसे बड़े भाग्यशाली हैं कि इतने अच्छे काम का हमें मौका मिला है। जब कभी हमारे Beneficiary या दानदाता से हम जो तारा में काम करते हैं वो मिलते हैं तो बस गद्गद् होते हैं। हमेशा एक एहसास होता है कि अच्छे काम का माध्यम बन पाए।
ऐसा लगता है कि मानो ईश्वर ने सब कुछ निश्चित कर रखा हो कि कब किससे क्या करवाना है तभी तो श्रीमती पद्मावती जी उस आय में से भी दान कर जाती हैं जिसमें दो वक्त का भोजन भी जुटाने में मुश्किल होवे।
हम तो हमेशा यही प्रार्थना करते हैं कि आप लोग जिस भाव से देते हैं बस हम उसका मान रख सकें और आपका हमारा भरोसा बना रहे फिर आगे का रास्ता तो प्रभु बना देंगे।
आदर सहित...
- दीपेश मित्तल
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