बुजुर्गाें के लिए सीख
तारांशु के हर अंक में मैं या दीपेश जी या दोनों आपसे कुछ-कुछ कह देते हैं अपने लेखों के माध्यम से लेकिन इस बार एक वाट्सऐप मैसेज आपके सामने रख रहे हैं जो कि कहानी नहीं है वरन हकीकत है। सच थोड़ा कड़वा तो होता है लेकिन इस मैसेज में एक सीख भी है। यह मैसेज उदयपुर के एक बहुत ही पुराने प्रसिद्ध स्कूल विद्या भवन के Old Students के वाट्सऐप ग्रुप में वायरल हो रही थी और यह मैसेज था उनके अपने टीचर के बारे में। इसे लिखा था उदयपुर के ही एक पत्रकार प्रिंस जी ने। मैसेज आप पढ़े उसके पहले थोड़ी भूमिका बता दूँ मेरे पास कुछ समय पहले एक फोन आया था कि भोपाल में एक बुजुर्ग हैं जो कार में ही जीवन यापन कर रहे हैं क्या आप उन्हें वृद्धाश्रम में रख सकेंगे। मैंने उन बुजुर्ग का वीडियो मंगवाया और सब सही देख कर उन्हें रहने के लिए बुला लिया क्योंकि नया वृद्धाश्रम ‘‘माँ द्रौपदी देवी आनन्द वृद्धाश्रम’’ बन गया है। मुझे तो पता भी नहीं चला कि कब श्री रविकांत जी अमोलिक तारा संस्थान के वृद्धाश्रम में रहने आ गए। वाट्सऐप पर यह वायरल मैसेज से ज्ञात हुआ कि श्री अमोलिक ‘‘माँ द्रौपदी देवी आनन्द वृद्धाश्रम’’ में रहने आ गए हैं। प्रिंस जी ने यह हकीकत तीन दोस्तों की दोस्ती को बयाँ करते हुए लिखा है लेकिन इस कहानी में बहुत से संदेश हैं सभी बुजुर्गाें के लिए, आप भी पढ़े....
दुःखद लेकिन प्रेरणादाई: दो हमउम्र दोस्तों ने 84 वर्ष के साथी की मदद की
यह कहानी है बड़ी दर्द भरी। कहानी सच्ची भी है। उदयपुर के तीन पुराने दोस्त। रविकांत अमोलिक, सुंदरलाल खमेसरा और घीसूलाल मेहता। तीनों की वर्तमान उम्र 83-84 वर्ष। सुंदर लाल खमेसरा पढ़ाई के बाद अपने अपने व्यवसाय में लग गए। इससे कुछ वर्षों पहले घीसूलाल भोपाल में अपने बच्चों के साथ व्यवसाय में जुड़ गए थे।
कहानी, तीसरे दोस्त रविकांत की है। उदयपुर में पढ़ाई के बाद, विद्या भवन में नौकरी की। दिलीप कुमार एवम् देवानंद के प्रशंसक रहे। उनकी कोई फिल्म नहीं छोड़ी। भोपाल की एक लड़की से शादी हुई। एक पुत्र हुआ। उसे अच्छी शिक्षा दिलाई। सेवानिवृति के बाद उदयपुर का मकान बेच कर भोपाल शिफ्ट हो गए क्योंकि वहां सुसराल पक्ष के काफी लोग थे।
पुत्र ने भी शादी कर ली। भोपाल में ही कोई व्यवसाय किया, उसमें उसे नुकसान होने से कर्जा हो गया। रविकांत जी ने अपने जीवन भर की बचत से बच्चे का कर्जा चुकाया।
लड़के ने अपनी बीवी के साथ न्यूजीलैंड शिफ्ट होने का निर्णय लिया। वहां जाकर और कर्जे में फंसा। पिता ने पुत्र मोह में अपनी सारी संपत्ति, जिसमें भोपाल का मकान, पत्नी के जेवर आदि बेच कर उसे रुपए भेज दिए। लेकिन पिता से अपनी अपेक्षा के मुताबिक रकम नहीं मिलने से उसने अपने माता पिता से रिश्ते सदा के लिए समाप्त कर लिए। न कोई पत्र, न कोई फोन, न आना जाना। इस सदमे से माता का निधन हो गया, लेकिन माँ को कंधा देने, उनके अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ।
अब रविकांत अकेले पड़ गए। सर के ऊपर छत भी रही नहीं। वृद्धावस्था भी आ गई। सुनना और दिखना भी कम हो गया। ब्लड प्रेशर रहने लगा। लकड़ी के सहारे चल फिर सकते थे। अपनी पुरानी छोटी गाड़ी ही उनका आसरा बन गई। उसमें सामान रखते थे, उसी में सोते थे। कहीं सुलभ शौचालय में नहा धो लेते। थोड़े बहुत जो पैसे बचे थे, उससे कहीं कुछ खा लेते थे। रिश्तेदार तो थे लेकिन दो तीन पीढ़ी बाद के सभी लोगों ने उनसे दूरी बना ली थी। उनकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं था।
तभी, भोपाल निवासी उनके पुराने दोस्त घीसूलाल की दुबारा उनके जीवन में एंट्री होती है। वे वहीं अपने कार्यालय में उनके रहने की अस्थाई व्यवस्था और खाने पीने का इंतजाम करते हैं। घीसूलाल अपने उदयपुर के दोस्त सुंदरलाल से इसकी चर्चा करते हैं। दोनों यह निर्णय करते हैं कि उदयपुर में तारा संस्थान के वृद्धाश्रम में उन्हें सहारा दिलाया जाए। इसमें पत्रिका के प्रिंस प्रजापत मदद करते हैं।
बायपास सर्जरी तथा अन्य कई बीमारियों से जूझ रहे सुंदरलाल अपने पुराने दोस्त की मदद के लिए स्वयं तारा संस्थान जाकर सब व्यवस्था की जानकारी लेते हैं। संतुष्ट होने पर रविकांत को यहां बुलाते हैं।
घीसूलाल उन्हें भोपाल से एसी बस द्वारा उदयपुर भेजते हैं। उदयपुर सकुशल पहुँचने तक घीसूलाल जी बराबर उनसे संपर्क में रहते हैं। बस स्टैंड पर सुंदरलाल उन्हें रिसीव करने जाते हैं। दो दोस्तों का भावपूर्ण मिलन देखकर सभी की आँख में आँसू आ जाते हैं।
सुंदरलाल उन्हें तारा संस्थान के वृद्धाश्रम लेकर जाते हैं। उन्हें हर संभव मदद का आश्वासन देकर मन में एक संतोष का भाव लेकर घर लौटते हैं। रविकांत जी अपना नया मुकाम पाकर संतुष्ट हैं। उन्हें भरोसा है कि उनका शेष जीवन यहाँ उन्हीं के जैसे अन्य वृद्ध और बेसहारा लोगों के साथ कट जायेगा। लिखने और पढ़ने के शौकीन रविकांत के लिए समय काटना समस्या नहीं है। 84 वर्ष की उम्र में भी वे हिम्मत, आत्मविश्वास और जज्बे से परिपूर्ण हैं। हिंदी और अंग्रेजी में बहुत तरीके से बात कर लेते हैं।
एक वृद्ध व्यक्ति के लिए यह कितना दुखद हो सकता है, शायद यह एक वृद्ध ही महसूस कर सकता है। और, परिवार साथ निभाए न निभाए, दोस्त हमेशा कहीं न कहीं साथ खड़ा रहता है। यह इस मर्मस्पर्शी कहानी से साबित भी होता है।
अति मोह में फंस कर किस तरह माता पिता अपना सर्वस्व लूटा कर भी दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाते हैं। यह कहानी एक महत्त्वपूर्ण सीख भी देती है। स्वयं की वृद्धावस्था को पूर्ण सुरक्षित करना हर व्यक्ति की प्राथमिकता रहनी चाहिए। बेटे बेटी के मोह में आकर अपना सब कुछ उनके नाम करने या दे देने की भूल नहीं करनी चाहिए।
पुनःश्च:
अमोलिक सर को रहते हुए कुछ महीने हो गए हैं और वे संतुष्ट हैं। उनके पढ़ाये हुए कई छात्र तो अब खुद बड़े या बुजुर्ग तक हो गए हैं आए दिन उनसे मिलने आते हैं कुछ नम आँखे लेकर आते है लेकिन अपने गुरू को सही पाते हैं तो खुश भी होते हैं और हाँ आप सबको तो धन्यवाद है ही कि आप के सहयोग के कारण ही ये संभव हो पा रहा हैं।
- कल्पना गोयल
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