चलती हुई जिन्दगी
आज से 8-10 महीने पहले ऐसा लग रहा था कि ना जाने अब क्या होगा? हर तरफ नकारात्मक खबरें, निराशा, तकलीफें ऐसा लगने लगा कि मानो जिन्दगी रुक गई हो। 2021 शुरू हुआ तो एकदम से जैसे नाटक में दृश्य बदलते हैं वैसा हो गया। कोरोना थमने लगा, वैक्सीन भी आ गई लेकिन वैक्सीन तो थोड़े से लोगों को लगी पर उसका असर लम्बा हुआ। पता नहीं क्या हुआ पर शायद कोरोना को लगा कि अब मेरा अंत ज्यादा दूर नहीं, तो उसने अपने आपको समेट लिया और हमारी जिन्दगी के पर उग आए, हम भी उड़ने को तैयार होने लगे। कभी-कभी लगता है मनुष्य को गुरुर ना हो जाए इसलिए ईश्वर अपना एहसास कराता है कि तुम जितना सोचते हो उससे परे भी कुछ हो सकता है।
2011 में तारा संस्थान ने जब काम करना शुरू किया और हमने लगातार 3 साल तक नये हॉस्पीटल खोले तो मुझे थोड़ा डर लगता था, मेरा और कल्पना जी का मतभेद रहता था। मैं कहता कि यदि कोई ऐसी परिस्थिति आ जाए कि दान आना एकदम बंद हो जाए तो क्या करेंगे। इस तर्क को बल देने के लिए मैं युद्ध की स्थिति का उदाहरण देता था। कल्पना जी ने कहा कि मान लो तनख्वाह देने के पैसे ना हुए तो हम एक दो अस्पताल कुछ समय के लिए बंद कर देंगे लेकिन जब तक दान आ रहा है और हममें ताकत है तब तक कुछ जगहों पर नये अस्पताल खोलकर अधिक से अधिक लोगों की आँखों में ज्योति तो लाएँगे ही।
दान के हिसाब से लॉकडाउन युद्ध से भी बदतर परिस्थिति थी लेकिन इस समय को हमने पार पा लिया और हाँ, इस हम मैं आप जो लोग तारा को सहयोग देते हैं वो सबसे पहले हैं। क्योंकि विषमतम परिस्थिति में भी हमने कोई अस्पताल बंद नहीं किया और ना ही किन्हीं को इसलिए काम से हटाया कि सैलेरी के पैसे नहीं हैं। थोड़ा मानदेय में कटौती जरूर की लेकिन वो भी कुछ महीनों के लिए। आप लोगों का फिर धन्यवाद कि आपने सपोर्ट किया। तभी तारा चलती रही। आप कह सकते हैं कि तारांशु के पिछले दो तीन अंकों से हम धन्यवाद दे तो रहे हैं पर मन में भावनाएँ इतनी है कि हम तारांशु के अगले एक दो अंकों में भी आपको धन्यवाद दें, तो भी कम है। आप सबके दिए दान से न सिर्फ तारा की गतिविधियाँ चलती रही बल्कि इन सबको चलाने वाले 300-400 घर भी चलते रहे फिर वे चाहे डॉक्टर हों या सफाईकर्मी। सभी को ये बोध हो या ना हो हमें ये पता है कि तारा के वज़ूद को बनाए रखने में आप सबका योगदान है जिन्होंने छोटा बड़ा दान दिया और लगातार देते रहे और दे भी रहे हैं।
अब जब जिन्दगी चलने लगी तो आँखों के ऑपरेशन के रोगियों के हमारे तारा नेत्रालयों में बाढ़ सी आ गई है। ये लेख लिखे जाने तक उदयपुर में ही 850 से ज्यादा रोगी वैटिंग में हैं। यानी आज आँख दिखाने आए रोगी को कम से कम अगले दो महीने तक ऑपरेशन का इंतजार करना होगा पर जिनके अर्जेंट होता है उनका तुरंत ऑपरेशन कर रहे हैं।
ऐसे ही रोगियों का मेला सारे अस्पतालों में लग रहा है और आप और हम मिलकर खुश हो सकते हैं कि ईश्वर ये सौभाग्य हमें दे रहा कि ऐसे लोगों को नेत्र ज्योति दे पा रहे हैं जिन्हें बेहद बेहद जरूरत है। आपको यदि समय मिले तो अपने आस-पास के तारा नेत्रालय (उदयपुर, दिल्ली, मुम्बई, फरीदाबाद एवं लोनी) जरूर जाइयेगा, दिल को सुकून मिलेगा कि आप भी एक नेक काम में सहभागी बनें है।
कुछ-कुछ आई कैम्प भी अब लग रहे हैं, हमें खुशी है कि वो सभी बुजुर्ग जो इंतजार कर रहे थे आँखें बनवाने का और अस्पताल आ नहीं सकते थे अब कैम्पों में उनके इलाके में ही जाँच हो जाएगी।
वृद्धाश्रम में भी अब दानदाताओं की चहत-पहल होने लगी है। उदयपुर के ही श्री हनुमान प्रसाद जी ने श्रीमती कृष्णा शर्मा आनन्द वृद्धाश्रम, उदयपुर में पानी पूड़ी और चाट की लारी भेज दी और हमारे बुजुर्गों ने चटखारे लेकर खाया।
ट्रेन, बस, हवाई जहाज भी चल पड़े हैं तो आप लोग भी उदयपुर आ जाएं कुछ दानदाताओं ने तो छोटे-छोटे ग्रुप में टिकिट भी करा लिए हैं, हमें भी बहुत इच्छा है कि आप और हम सब मिलकर बैठे और ढेर सारी गप्पे लगायें।
आदर सहित....
- दीपेश मित्तल
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