छुट्टी गर्मी की...
हमारे देश की खूबसूरती ही यह है कि यहाँ सारे मौसम है और हर मौसम अपने चरम पर पूरे शवाब से आता है। ठिठुरती ठंड में अलाव, कोट और रजाई, बारिश में छाता और बरसाती और भरी गर्मी में Cotton की साड़ी, कुर्ती व टी-शर्ट सारे सुख हम लेते हैं। गर्मी के मौसम का जो मजा है उसके तो कहने की क्या, मुझे याद है कि जब हम छोटे थे तो पूरा साल इस उमंग में निकल जाता था कि अप्रैल के बाद गर्मी की छुट्टियाँ होगी। आजकल व्हॉट्सएप्प पर बहुत से मैसेज आते हैं जो पुराने दिनों की गर्मी की छुट्टियाँ की याद दिला देते हैं एक ऐसा ही प्यारा सा मैसेज मेरे पास आया तो मैंने सोचा कि आपसे भी शेयर कर लूँ
छत पे सोये बरसों बीते तारों से मुलाक़ात किये
और चाँद से किये गुफ़्तगू सबा से कोई बात किये।
न कोई सप्तऋषि की बातें न कोई ध्रुव तारे की
न ही श्रवण की काँवर और न चन्दा के उजियारे की।
देखी न आकाश गंगा ही न वो चलते तारे
न वो आपस की बातें न हँसते खेलते सारे।
न कोई टूटा तारा देखा न कोई मन्नत माँगी
न कोई देखी उड़न तश्तरी न कोई जन्नत माँगी।
अब न बारिश आने से भी बिस्तर सिमटा कोई
न ही बादल की गर्जन से माँ से लिपटा कोई।
अब न गर्मी से बचने को बिस्तर कभी भिगोया है
हल्की बारिश में न कोई चादर तान के सोया है।
अब तो तपती जून में भी न पुर की हवा चलाई है
न ही दादी माँ ने कथा कहानी कोई सुनाई है।
अब न सुबह परिन्दों ने गा गाकर हमें जगाया है
न ही कोयल ने पंचम में अपना राग सुनाया है।
बिजली की इस चकाचौंध ने सबका मन भरमाया है
बन्द कमरों में सोकर सबने अपना काम चलाया है।
तरस रही है रात बेचारी आँचल में सौग़ात लिये
कभी अकेले आओ छत पे पहले से जज़्बात लिये!
मैं पुरातनपंथी सोच को बिलकुल भी बढ़ावा नहीं देता लेकिन कभी-कभी लगता है कि आजकल के बच्चे कुछ चूक तो नहीं रहे। आज भले ही छुट्टियों में हम स्विट्ज़रलैंड या अमेरिका चले जायें लेकिन हमारा समय उस जगह की खूबसूरती को जज करने के बजाए इस बात में बीतता है कि कितने अच्छे फोटो या सेल्फी ली जाए और उसे फेसबुक पर कितने लाइक मिले। पहले तो इतने पैसे ही नहीं होते थे कि देश में भी हर साल घूमने जायें लेकिन मुझे याद है कि हम अपने दादा-दादी के पास जयपुर जाते थे तो छत पर बिस्तर लगाना और अपना बिस्तर ठंडा रखना तब तक दूसरे के बिस्तर पर सो जाना और कभी आँधी आ जाए (जो जयपुर में अकसर आती है) तो तीसरे माले से बिस्तर नीचे फेंकना और भागकर अंदर आना और बिना लाइटों के सो जाना, क्या मजा था, पानी की कमी थी तो सारे बच्चे घर के बाहर नीचे लगे नल से पानी की बाल्टी भर कर चेन बनाकर उस बाल्टी को आगे बढ़ाते और टंकी भरते थे। दादी के यहाँ जब अमरस बनता था तो सब बच्चों को बस एक-एक कटोरी ही मिलता था लेकिन मैं दादाजी का लाड़ला था तो वो और बच्चों से छुपा कर अपने हिस्से का रस भी मुझे दे देते थे, तब ज्यादा समझ नहीं थी लेकिन उस प्यार का एहसास जरूर था तभी तो ये स्मृतियाँ छप सी गई हैं।
किराए की छोटी-छोटी साइकियों को 2-5 रु. घंटे के हिसाब से लेकर साइकिल चलाना सीखना और फिर बिना ब्रेक की छुटकी सी साइकिल को भी फर्राटे से चलाना शायद डिज्नीलैंड की रोलर कोस्टर राइड से ज्यादा रोमांचकारी होता था। मेरी उम्र 47 वर्ष है और हमारी उम्र वाले 2 पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करते हैं एक जो मोबाइल, कम्प्यूटर, एयरकंडिशनर के बिना वाली और एक वो जो इन सबके साथ वाली। आज के बच्चों के पास सब कुछ है लेकिन वो छत पर सोते तारे गिनने के सुख से वंचित है, टूटता तारा भी वो फिल्मों में ही देखते हैं।
ये सब बातें इसलिए कर ली कि मई का महीना था तो हर साल वो बचपन की गर्मियाँ बार-बार याद आती हैं और आपको भी आती ही होगी। अपने गाँव, अपने शहर की वो गर्मियाँ जहाँ दादी नानी की कहानियों में बचपन बीतता था। मैं इस बहस में नहीं हूँ कि पहले अच्छा था या अब अच्छा है क्योंकि हर समय का अपना एक स्वाद होता है लेकिन अभी के बच्चे ये कभी महसूस नहीं कर पायेंगे कि उनकी गर्मी की छुट्टियाँ समर क्लासेस में खोती जा रही हैं।
वक्त हमेशा तेजी से बदलता है आज से 25-30 साल बाद जब आज के बच्चे जवानी या प्रौढ़ावस्था में होंगे तो उनके पास बचपन में गर्मी की छुट्टियों की यादों में मोबाइल, टी.वी., आई.पी.एल. से हटकर क्या होगा ये मुझे समझ नहीं आ रहा। वैसे अब तो उन्हें कुछ याद रखने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि गूगल की फोटो लाइब्रेरी में सब स्टोर किया होगा और एक आदेश पर गूगल बता देगा कि 15 साल में वो कहाँ गए और 18 साल में जब वो पहली बार कॉलेज गए तो कितनों ने फेसबुक पर उस फोटो को लाइक किया।
कहते हैं समय अपने आपको दोहराता है। क्या कभी छत पर सोने वाले दिन भी वापस आयेंगे? कल्पना कीजिए कि हमने सारे प्राकृतिक संसाधन खत्म कर दिए, न तेल है, न गैस, न ज्यादा खनिज बचे, न पानी तो फिर बिजली भी कहाँ, सारे ए.सी. पंखे सब सजावटी चीज हो गए। मानव वापस छत पे अपना गद्दा तकिया चादर लेकर जाएगा लेकिन थोड़ा संभल कर, तब तक मच्छरों के भी पंख मजबूत हो जायेंगे वो भी आ जायेंगे छत पर आपके कानों में गुनगुनाने को
आपके बच्चों, पोते-पोतियों, नाती नातिनों को कहियेगा कि गर्मी की छुट्टियों में खूब मस्ती करें क्योंकि ये पल लौट के ना आयेंगे...
दीपेश मित्तल
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