दर्द के रिश्ते....
सर्दियों का मौसम वैसे तो अच्छा लगता है : गर्म कपड़े पहनते हैं, रेवड़ी, गजक, लड्डू वगैरह खाते हैं। शादियों में जाओ तो वहाँ गाजर का हलवा या दाल का हलवा तो होता ही है लेकिन यही सर्दियाँ हमारे बुजुर्गों के लिए कई बार तकलीफदेह हो जाती हैं। बुजुर्ग चाहे घर में हो या कहीं भी हो तेज सर्दी वो सहन नहीं कर पाते हैं और आजकल जैसा कि बदलता हुआ मौसम होता है उसमें वो बुजुर्ग जिन्हें अस्थमा या सांस की बीमारी हो उनकी तकलीफ बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती है। जब घर में एक या दो बुजुर्ग हो और उन्हें कोई तकलीफ सर्दी के कारण होवे तो हम उनकी देखभाल करते हैं लेकिन हमारे साथ तो 40 से 50 बुजुर्ग एक साथ रहते हैं। तो उनमें से कुछ का स्वास्थ्य खराब होना संभव है ही और अकसर मैंने देखा है कि सर्दियों के मौसम में हम अपने एक या दो बुजुर्ग आवासी को खो देते हैं। जीवन में मृत्यु अवश्यंभावी है, सबको पता है लेकिन मृत्यु एक संतोषप्रद जीवन के साथ हो यही मूल मर्म है आनन्द वृद्धाश्रम का। अभी कुछ दिनों पहले एक समय ऐसा आया जब आनन्द वृद्धाश्रम के 4 से 5 बुजुर्ग एक साथ ज्यादा बीमार हो गए। दो बुजुर्ग भ्वेचपजंसप्रमक हो गए, तीन का इलाज वृद्धाश्रम में ही चला। एक बुजुर्ग श्री देव कुमार दत्ता तो 4 जनवरी, 2016 को हमें छोड़कर चले गए जिनका अंतिम संस्कार संस्थान द्वारा किया गया और उनके एक रिश्तेदार सूचना मिलने पर आए और उन्हें अस्थियाँ दे दी गई...।
दो बुजुर्ग तो ठीक हो गए लेकिन एक महिला राजी बाई बंसल अभी भी अस्वस्थ हैं। राजी बाई हमारे साथ लगभग 2 साल से रह रही हैं उन्हें उनकी नातिन और उसके पति तारा संस्थान में छोड़ कर गए थे। एक बेटा और एक बेटी भी है। राजी बाई का च्ंतापदेवदे जैसी कोई बीमारी है जिससे उनकी गर्दन के ऊपर का हिस्सा हमेशा हिलता रहता है यहाँ तक की भोजन भी वे सिर को दीवार के सहारे टिकाकर ही करती हैं। जब आई तो वो धीरे धीरे चलकर अपने दैनिक कार्य तो कर लेती थी लेकिन पिछले कुछ महिनों से बिस्तर पर ही हैं। एक ट्यूब ;ब्ंजीमजमतद्ध लगा है और सारी क्रियाऐं बिस्तर पर ही होती हैं। अभी जब वे बीमार हुई तो एक दिन उन्होंने आँखे फेर ली और हमें बताया गया कि वो कुछ खा-पी नहीं रही हैं। कल्पना जी उनके पास गई और उन्हें आवाज दी तो करहाती सी आवाज में ‘‘हाँ’’ कहा। कल्पना जी ने अपने सामने थोड़ा सा दूध चम्मच से पिलवाया तो उन्होंने पी लिया यह देखकर कल्पना जी ने चिमन भाई (जो कि वृद्धाश्रम की व्यवस्था देखते है) को कहा कि इनको हर एक घंटे में चम्मच से कुछ भी स्पुनपक दीजिए। यह उस वक्त था जबकि वृद्धाश्रम के उनके सारे साथी यह मान चुके थे कि वो अब नहीं रहेगीं लेकिन कल्पना जी की सोच थी कि कहीं ऐसा न हो कि नहीं खाने के कारण वे भूख से चलीं जाए। अभी यह लेख लिखते समय उस बात को लगभग 10 दिन हो गए हैं। राजी बाई पहले से थोड़ी बेहतर हुई हैं लेकिन उन्हें अभी भी स्वस्थ नहीं कह सकते हैं।
जब वे बीमार हुई थी तो उनकी नातिन को बताया गया था कि वे ैमतपवने हैं तो सिर्फ एक बार वो मिलने आई उसके बाद उनके परिवार से कोई नहीं आया। वृद्धाश्रम के उनके साथी कहते हैं कि उनके प्राण उनकी बेटी में अटके हैं वो आएगी तभी वो अपनी देह त्यागेगी। मुझे नहीं पता कि वास्तव में ऐसा होता भी है या नहीं। हमें यह भी नहीं पता कि राजी बाई कितने समय और हमारे साथ रहेगी... हमारे यहाँ कुछ लोग कहते हैं कि वो तो सुखी होगी च्तंबजपबंससल सोचो तो बात सही भी है। पर ईश्वर ने जब तक उनको जीवन दिया है तब तक तो वो जिएगी ही। हाँ, एक बात की कसक रहती है कि क्यों उनके कोई परिवार वाला मिलने नहीं आता। जो नातिन यहाँ छोड़कर गई वो रोज एक बार तो नानी को देखने आ ही सकती है या वो बेटी जिनको सूचना है कि माँ ैमतपवने है लेकिन वो दौड़ के आने की छोड़ों, आती ही नहीं है, एक भी बार। पता नहीं इन रिश्तों में माँ या नानी के दर्द का एहसास है भी या नहीं.... हाँ लेकिन एक बात यहाँ जरूर देखी है मैंने कि जिन्दा माता पिता को जो बच्चे देखने भी नहीं आए वो एक नश्वर शरीर को या उन अस्थियों को लेने दौड़े चले आए। समझ में नहीं आता कि रिश्तों में दर्द कैसे खत्म हो गया। हमें तो आदत सी हो गई है ऐसा देखते हुए फिर भी नम आँखों से आपको एहसास कराने के लिए कलम चल पड़ती है।
दीपेष मित्तल
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