दीपावली... उम्मीदों की
आज सुबह ऑफिस में जब हम बैठे थे तो एक व्यक्ति मोहन जी (काल्पनिक नाम) आए, कहने लगे कि मैंने आप लोगों के साथ काम किया हुआ है ‘‘नारायण सेवा’’ में। बाद में कुछ गाने बजाने का काम करते थे और एक बार किसी मेले में मिले थे ढोल बजाते हुए और तब उन्हें कुछ टिप भी दी थी। आज वो नौकरी मांगने आए थे, कोई भी काम करने को तैयार थे, उनके साथ पूरी संवेदनाएँ होते हुए भी उन्हें हम काम पर नहीं रख सकते थे क्योंकि 5000 रु. महीना भी अगर देना होता तो वो हमेशा का खर्च बंध जाता और हमारे पास कोई कार्य ही नहीं था उनके लायक। कई बार दुविधा ऐसी हो जाती है कि क्या करें... खैर हमने बीच का रास्ता निकाला और उन्हें कहा कि कुछ महीनों तक तृप्ति योजना में राशन का किट जो देते हैं उन्हें भी मिल जाए और तब तक वो अपने लिए कुछ काम ढूँढ़ लें। धन्यवाद उस ईश्वर का है जिसने हमें करुणा दी कि हम किसी का दर्द समझ कर उसकी मदद कर रहें और धन्यवाद आप दानदाताओं का भी क्योंकि आप लोगों का सहयोग न हो तो लाख करुणा हो तो भी हम क्या कर पाएं। लेकिन ये पक्का है कि उस व्यक्ति के मन से दुआएँ हमारे सामने निकली जरूर थी लेकिन आप सब तक भी वो अवश्य पहुँचेगी ये तो सृष्टि का नियम ही है।
आप भी सोचते होंगे की दीपावली के शुभ अवसर पर ये दर्द की बात क्यों लेकिन इस घटना में दर्द पहले था उसके बाद तो सुख और सुकून था और हम सभी संतोष कर सकते हैं कि हम औरोेें के सुकून का कारण बन रहे हैं। ये जो दूसरों के दर्द को महसूस कर हमारे अंदर कुछ-कुछ होता है ना वो कुछ सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें यह सृष्टि चुनती है, हमारा सौभाग्य यह है कि आप सब लोग हमारा परिवार हैं। जब लॉकडाउन लगा था तो शुरू में थोड़ी घबराहट हुई थी क्योंकि मुझे पता था कि कोरोना एकदम से खत्म नहीं होगा। तारा के खर्चे कैसे चलेंगे यह एक यक्ष प्रश्न था। आँखों के ऑपरेशन के अलावा वृद्धाश्रम, तृप्ति, गौरी सभी योजनाएँ ऐसी थी कि बंद नहीं की जा सकती थी और सबसे जरूरी हमारे साथ काम कर रहे लोगों की सैलेरी भी तो थी क्योंकि अधिकतर लोग निम्न मध्यम वर्ग के हैं। लेकिन आप सभी ने हमें संभाला और संभाले रखा है।
कोरोना तो गया नहीं लेकिन इसका डर थोड़ा कम हुआ है, जिन्दगी पटरी पर लौटने लगी है, सुनने में आ रहा कि अर्थव्यवस्था भी थोड़ी सुधरी है, बाजार में गाड़ियों की खरीददारी बढ़ गई हैं लेकिन ‘‘मोहन जी’’ जैसे लोगों को पुरानी स्थिति में आने में कुछ साल लग जाएँगे। मोहन जी तो प्रतीक भर हैं, ऐसे न जाने कितने लोग हैं जिनको बेहद जरूरत है। उम्मीद भरी बात यह है कि अच्छाई जीवित है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली का ‘‘बाबा का ढाबा’’ है जिसके लिए लोगों ने लाइन लगा कर खाना खाया कि किसी की मदद तो हो जाए। विवाद को परे रख दें तो ये तो सत्य है ना कि उन बुजुर्ग दम्पत्ति को मदद मिली। बहुत से लोग मिलकर थोड़ा-थोड़ा भी सहयोग करें तो कोई भूखा ना सोए ये तो हो ही सकता है। तारा में भी तो ऐसा ही है हजारों लोग देकर हजारों लोगों का जीवन संवार रहे हैं।
इस दीपावली हो सकता है पटाखे ना जलाएँ, बजारों में रोनक उतनी ना करें, एक मिठाई कम खा लें लेकिन उन लोगों की उम्मीद जिन्दा रखें जिनके छोटे-मोटे काम छिन गए और फिर अगले साल तक सब नार्मल हो जाएगा। आप सभी तो वे हैं जिन्होंने दूसरों कि खुशियों में अपना सुख टटोला है तभी तो आप तारा से जुड़े।
आप सभी को दीपावली की राम-राम के साथ माँ महालक्ष्मी से यही प्रार्थना है कि आपको और परिवार को सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि देवें।
!! शुभ दीपावली !!
दीपेश मित्तल
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