दिवाली की सफाई
पिछली एक दो दीपावली से मेरे घर पर एक विवाद हमेशा होता है कि दीपावली की सफाई कब की जाए। मेरा मत होता है कि साल में एक बार सफाई करनी है तो वो दीपावली के बाद कर लो क्या फर्क पड़ता है इसका तर्क ये देता हूँ कि दीपावली के बाद हम सभी Comparatively फ्री होते हैं और काम करने वाले भी आसानी से मिल जाते हैं लेकिन मेरी मम्मी और पत्नी की जिद होती है कि चाहे कितना भी Busy हो सफाई तो दीपावली के पहले ही होगी उनके पास मेरे तर्क की बहुत बड़ी काट नहीं होती लेकिन होता वही हैं जो वो चाहते हैं। पीढ़ीयों से जो रीतियाँ बन गई उनको निभाना भी एक सुख है और ये परंपराएँ हैं भी तो कितनी खूबसूरत और उपयोगी, पूरे घर का कचरा साफ हो जाता है अनुपयोगी चीजें फेंक दी जाती हैं और रंग रोगन होकर नया सा घर जब रोशनी से जगमगाता है तो उसका आनन्द ही कुछ और होता है। मुझे याद है जब हम छोटे थे तो बड़े-बड़े ड्रमों में आरास (चूना) घोलकर रंग बनाया जाता था और फिर उस आरास से कूंचिया लेकर कहीं घरवाले खुद या कहीं मजदूर सफेदी दीवारों पर लगाते थे और फिर उनसे बच बच कर चलना कि कहीं कपड़ों पर सफेदी ना लग जाए। आज कल आरास की जगह पेंट ने ले ली है तो क्या इनका भी अपना मजा है। आप भी सोचते होंगे कि दीपावली भी चली गई और सफाईयाँ तो कभी की हो गई थी फिर ये चर्चा कैसे, दरअसल दीपावली से कुछ दिन पहले फरीदाबाद वृद्धाश्रम के व्हाट्सएप्प ग्रुप में एक फोटो आया था जिसमें वहाँ की सफाई हो रही थी और वृद्धाश्रम में रहनेवाले एक अंकल अपनी निकर और बनियान में सफाई कर रहे थी साथ ही वहाँ के कर्मचारी भी लगे हुए थे। सच मानिये देखकर मजा आ गया क्योंकि तारा के जो भी वृद्धाश्रम हैं हमारी अवधारणा हमेशा रही है कि वे नाम के भले ही वृद्धाश्रम हो लेकिन जो भी वहाँ रहते हों उसे अपना घर समझ कर रहें और हम ऐसा कोई भी नियम कभी नहीं बनाते हैं जिससे कि यहाँ रहने वाले बुजुर्गों को घर से कम एहसास होवें, अनुशासन भी सिर्फ इतना ही रखना होता है जिससे किन्ही और को तकलीफ ना होवें।
हमारी इन सभी कोशिशों के बावजूद घर जैसे माहौल के सबसे करीब फरीदाबाद वृद्धाश्रम ही है। वहाँ का माहौल देखकर अच्छे से अच्छे घर में रहने वालों को भी ईर्ष्या हो जायें। कुछ महिनों पहले जब वहाँ गए थे तो सुबह 6 बजे पहुँचे तो एक सरदार अंकल बर्तन धो रहे थे, एक आंटी चाय बना रही थी और एक दो आंटी मिलकर नाश्ते की तैयारी कर रही थी। काम करने वाले संस्थान की तरफ से रखे हुए हैं लेकिन वहाँ के बुजुर्ग एक परिवार की तरह से काम करते हैं और जब परिवार मिल जाए तो वृद्धाश्रम भी घर बन जाता है और परिवार साथ ना हो तो घर भी नर्क।
जब उदयपुर में 2012 में जब वृद्धाश्रम प्रारम्भ हुआ तो कुछ परिकल्पना नहीं थी बल्कि ये विचार था कि लोग यहाँ रहने आऐंगे भी या नहीं, लेकिन जैसे-जैसे बुजुर्ग आते गए हमारा दृष्टिकोण भी साफ होता गया और मेरे मन में यह धारणा थी कि लोग इसे अपना घर समझे और उन्हें वो सारे अधिकार प्राप्त हों जो घर में रहने वालों को होते हैं लेकिन साथ ही वे घर में रहने वाले अन्य लोगों और घर दोनों के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी समझे। कभी कोई बीमार हो तो उनका ध्यान रखना अपने आस-पास की जगह को साफ रखना, एक दूसरे के साथ मिल जुलकर सुख दुःख बांटना और अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ-कुछ करते जाना जिससे की व्यस्तता बनी रहे।
तारा संस्थान के चारों वृद्धाश्रमों में से मैं अगर सबसे बेहतरीन घर कहूँ तो वो फरीदाबाद का ओम दीप आनन्द वृद्धाश्रम है। जहाँ हमें किसी बात के लिए प्रेरित करने की जरूरत नहीं होती है। कोई त्यौहार ऐसा नहीं जो वहाँ न मनता हो, हर थोड़े दिन में कोई कीर्तन, माता की चौकी, न जाने क्या क्या। सुबह से लेकर शाम तक सभी आवासी मिल-जुल कर काम करते हैं कहीं भी ये भावना नहीं कि ये काम मैं क्यों करूँ। ऐसा लगता है कि ये घर अपने आप चल रहा हो। उदयपुर के आनन्द वृद्धाश्रम में मुझे थोड़ी सी कसक रहती है कि वो अपनापन वो एका नहीं है कि सब लोग मिलकर सोचे कि दीपावली की सफाई करनी है और करने में जुट जाएँ। यहाँ पर हमें चीजों को चलाना पड़ता है यहाँ तक एक बार तो इस बात के लिए भी कुछ लोगों को कहना पड़ा कि किन्हीं आवासी की मृत्यु होने पर आयोजित शोक सभा में आप सभी आएँ क्योंकि दिवंगत आत्मा को सम्मान देना तो सभी को चाहिए।
वृद्धाश्रम में रहने वाले सभी बुजुर्ग इतने पके हुए हैं कि हम उन पर कोई भी चीज थोपना या जबरदस्ती करना नहीं चाहते हैं लेकिन ये प्रयास रहता है कि सभी को प्रेरित करें कि वो सारी गतिविधियों में भाग ले क्योंकि जब वे व्यस्त रहेंगे तभी वे मस्त भी रहेंगे। इसके लिए आनन्द वृद्धाश्रम उदयपुर में सप्ताह में दो बार हाऊजी भी खिलाते हैं जिसमें छोटा सा नकद ईनाम भी रखते हैं और सप्ताह में एक बार डांस क्लास भी होती है। लेकिन हमारी ओर से कोई जबरदस्ती नहीं है कि वे क्या करें और क्या ना करें। तारा संस्थान के ये जो वृद्धाश्रम हैं वो जीवन के सार को बता सकते हैं कि आप कितने अमीर हैं ये इस बात से तय नहीं होता कि आपका बैंक बैलेंस कितना है लेकिन अंतिम वर्षों में आपके साथ कितने लोग हैं ये आपकी रईसी जरूर बता सकते हैं, मैं उन लोगों की बात नहीं कर रहा जो आपकी संपत्ती के वारिस बनना चाहते हैं इसलिए आपके साथ हैं, मैं उन दोस्तों या परिवार वालों की बात कर रहा हूँ, जो सिर्फ इसलिए आपके साथ हैं क्योंकि वे आपकी केयर करते हैं तो मुझे तो यही लगता है कि हमें धन जुटाने के साथ-साथ हमें असल मित्र भी सहेजने चाहिए, समय पर यदि चंद लोग भी ये कह दें कि ‘‘मैं तो हूँ’’ और उनके इस कहने में कुछ पाने का स्वार्थ ना हो जो बस हम करोड़पति हैं ये समझा जा सकता है।
तारा संस्थान ये ही प्रयास कर रहा है जिनका कोई नहीं है उन्हें करोड़पति बना रहा है और आप सभी हमारे साथ इस प्रयास में पुरजोर जुड़े हैं।
ओप दीप वृद्धाश्रम फरीदाबाद में एक परिवार वाले माहौल की बात करू तो इसमें धन्यवाद वहाँ काम करने वाले कमलेश जी का भी हैं जो वैसे तो वहाँ रसोइया हैं लेकिन उनके प्यार भरे स्वभाव ने भी इस बंधन को मजबूती दी है।
और हाँ इस ओम दीप आनन्द वृद्धाश्रम के जनक आदरणीय ओमप्रकाश जी और दीपा जी मल्होत्रा जिन्होंने अपना सुन्दर सा घर इतने अच्छे काम के लिए प्रदान किया उनको जितना प्रणाम करें कम है।
आदर सहित...
दीपेश मित्तल
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