Ek Aashiyana Basane Ki Taiyari...
Posted on 20-Aug-2018 11:32 AM
एक आशियाना बसाने की तैयारी....
मेरा हमेशा से यह मानना है कि कोई भी कार्य करो उसमें ईश्वर की सहमति हो तो ही वो अंजाम तक पहुँचता है और जैसे- जैसे आप मेहनत करते जाते हैं ईश्वर का आशीर्वाद और सहयोग मिलता जाता है, काम करने की नीयत नेक हो तो ईश्वर आगे से आगे रास्ता बनाता जाता है। कुछ ऐसा ही ‘‘तारा’’ के साथ हुआ, प्रारम्भ में कुछ भी परिकल्पना नहीं थी कि क्या होगा कैसे होगा.... बस एक जरूरतमंद जमनालाल जी थे जिनका मोतियाबिन्द ऑपरेशन पैसे देकर कराया तो लगा कि ऐसे बहुत से लोगे होंगे जिन्हें छोटे से मोतियाबिन्द ऑपरेशन के लिए पैसे जुटाने में भी मुश्किल होगी, तो बस तारा नेत्रालय खुलते गए। आँखों के कैम्प लगे तो उनमें बहुत से बेसहारा बुजुर्ग आते थे तो उनके लिए विचार आया कि वृद्धाश्रम खोला जाए और इस तरह 3 फरवरी, 2012 को ‘‘आनन्द वृद्धाश्रम’’ उदयपुर में प्रारम्भ हुआ। सबसे पहले 25 बेड थे तो लगता था कि इतने लोग भी होंगे क्या रहने को, क्योंकि हमारी संस्कृति तो माता-पिता को भगवान मानती है लेकिन जो स्थिति सामने आई वो बहुत अच्छी नहीं थी। कितने बुजुर्ग ऐसे थे जो सिर्फ इसलिए बच्चों के पास रह रहे थे कि कोई विकल्प ही नहीं था। बूढ़ा शरीर, आय का कोई साधन नहीं, बच्चे अच्छे भी हैं तो उनके पास समय नहीं, न जाने कितनी समस्याएँ.... जब सहने का सीमा खत्म हो जाती है तो ये बुजुर्ग घर छोड़ देते हैं और यकीन मानिये कितने बुजुर्ग मेरे सामने बैठ कर फूट-फूटकर रोये होंगे और ऐसा होना जायज है अपना घर, अपना शहर, अपने बच्चे, सब कुछ छोड़कर एक अनजानी जगह जाना जहाँ आप परायों पर निर्भर हो तो कोई कितना भी मजबूत हो रोना आ ही जाता है। एक बेटी विदाई के समय कितना रोती है जबकि उसका संबंध तो पीहर से बना रहता है लेकिन हमारे पास आने वाले बहुत से बुजुर्ग तो सारे रिश्ते नाते हमेशा के लिए छोड़ कर आते हैं। शुरूआत में तो हर रोने वाले के साथ मुझे भी बहुत रोना आता था लेकिन अब उतना नहीं आता, शायद दर्द देख-देखकर थोड़ी मजबूती आ गई। कुछ बुजुर्ग तो ऐसे आए जिन्होंने कहा कि आप आसरा नहीं दोंगे तो हम आत्महत्या कर लेंगे। मुझे पता है कि ऐसा नहीं होता क्योंकि मरना आसान होता तो हर आदमी जो तकलीफ में होता मर जाता लेकिन ईश्वर ने हमें चुन लिया था इस निराश मनों को अपने परिवार का हिस्सा बनाने को। जब 25 बेड के आनन्द वृद्धाश्रम में 18-19 बेड भर गए तो चिंता हुई अब कोई आया तो मना कैसे करेंगे सो तारा की एकमात्र बिल्डिंग में जोड़-तोड़कर कमरे निकालते रहे और आखिर में एक वार्ड को खाली कर हॉस्पीटल के पलंग बाहर लगाए और वार्ड को वृद्धाश्रम के लिए दिया लेकिन.... वृद्धाश्रम के बेड भरते गए और हमारी 50 की क्षमता भी भरने लगी तो बस यही चिंता थी कि अब क्या होगा? पूरे उदयपुर में जमीन तलाश की जो हमारे बजट में होवें और साथ ही शहर से बहुत दूर न हो क्योंकि मैं बिल्कुल नहीं चाहती थी कि सस्ती जमीन के चक्कर में रहने वाले बुजुर्ग इतना दूर चले जाएं कि उनको अकेलापन का एहसास हो। तभी ईश्वर ने रास्ता दिखाया, किसी ने राय दी की उदयपुर में कहीं सरकारी जमीन नीलाम हो रही है जो शहर के बीच है तो बस हिम्मत की और दो प्लाट ले लिए। प्लाट शहर में थे सो महँगे थे लेकिन बैंक से लोन लिया और आप सबको एक प्रस्ताव भेजा कि भूमि के लिए दान देवें। हमें बहुत उम्मीद नहीं थी क्योंकि आम तौर पर भूमि के लिए दान कम मिलता है लेकिन आप सभी ने सहयोग भी दिया.... लोन उतरने लगा। अब जब प्लाट पर भूमि पूजन हो गया है और निर्माण का काम भी प्रारम्भ हो गया है तो तारांशु का यह विशेषांक नये आनन्द वृद्धाश्रम निर्माण को समर्पित है। हमें अच्छी तरह पता है कि जब ईश्वर हमें आने वाले हर बुजुर्ग की व्यवस्था करने का स्वप्न दिखाता है तो साथ-ही-साथ आपके मन में भी यह भाव जागना है कि आप भी इस अच्छे काम में सहयोगी बनें। तो आपके और हमारे निमित्त बनने से एक सुन्दर सा आशियाना बनेगा उन कुछ लोगों के लिए जिनको थोड़ा सा सुकून चाहिए कि बस वो इस एहसास के साथ दुनिया से विदा ले लें कि उनके लिए भी कोई है और हाँ आप ये भी पूछ सकते हैं कि जब ये 150 बेड का वृद्धाश्रम भी भर जाएगा तो? तो फिर ईश्वर आगे का रास्ता भी दिखाएगा, मुझे विश्वास है कि आपका स्नेह बना रहेगा।
आदर सहित....!
कल्पना गोयल