Ek Deepak... Roshani Ka...
Posted on 20-Aug-2018 11:16 AM
एक दीपक.... रोशनी का....
तारांशु का यह अंक दो तरह से विशेष है, पहला यह अंक तारा नेत्रालयों या नेत्र चिकित्सा सेवा विशेषांक है और दूसरा यह जब आप पढ़ेंगे तो ‘‘दीपावली‘‘ या तो आने वाली होगी या कुछ समय पूर्व ही गई होगी। तो आपको दो दो शुभकामनाएँ। एक तो तारा नेत्रालय फरीदाबाद के प्रारम्भ होने की, दूसरी दीपावली की। यह भी तो समानता ही है ना कि दीपावली के दीपक रोशनी देते है साथ ही तारा नेत्रालय भी आँखों का मुफ्त ऑपरेशन कर उनकी रोशनी वापस लाते हैं, और आँखों की रोशनी की क्या कीमत होती है यह जानना तो सबसे आसान है.... क्या करना है? दोनों आंखें बंद करें और दस कदम चले, यह प्रयोग अवश्य करें.... आपको एहसास हो जाएगा कि आपके दिए हुए छोटे से सहयोग से किसी गरीब के जीवन में कितनी रोशनी आ गई। हमारे अधिकांश दानदाता स्वयं बुजुर्ग हैं और उन्होंने भी मोतियाबिन्द का ऑपरेशन कराया ही होगा क्योंकि ये बीमारी तो अमीर-गरीब सबको ही होती है। तो आप समझ सकते हैं कि पैसों के अभाव में आंखों की रोशनी खो देने का डर कैसा होता होगा। बुढ़ापे के कारण शरीर के और अंग काम ना भी करें तो भी यदि आँखों में रोशनी आ जाए तो इससे बड़ा सुख क्या होगा। मैं, कल्पना जी और अन्य साथी जब नारायण सेवा में थे तभी एक जमनालाल जी आए जिनको मोतियाबिन्द था और ऑपरेशन के पैसे नहीं थे। 60-65 की उम्र में भी खुद का और अपनी अति वृद्ध माँ का खर्च निकालने के लिए जमनालाल जी का काम करना जरूरी था, लेकिन आँखों से न दिखने के कारण लाचार थे। तब 8000 रुपये आपस में मिलाकर उनकी एक आँख का ऑपरेशन कराया गया लेकिन ऐसा लगता है कि उनको तो ईश्वर ने माध्यम बनाया था एक विचार भेजने का, ‘‘तारा नेत्रालय‘‘ की सोच जमनालाल जी के ऑपरेशन से ही आई कि न जाने कितने लोग होंगे जिनके पास इस छोटे से ऑपरेशन के पैसे ही नहीं होंगे और इन्टरनेट पर सर्च किया तो पता लगा कि देश में लाखों लोग अंधे हो जाते हैं। इस छोटे से ऑपरेशन के बिना, आश्चर्य हुआ लेकिन सच था। ईश्वर ने जमनालाल जी को भेजा तो आगे का रास्ता भी उन्होंने ही सुझाया और 6 अक्टूबर, 2011 को तारा नेत्रालय का शुभारम्भ हुआ और फीता काटने वालों में जमनालाल जी भी थे और पहले रोगी भी वही थे। उनकी दूसरी आँख का ऑपरेशन इस बार तारा नेत्रालय, उदयपुर में निःशुल्क हुआ। उसके बाद दिल्ली, मुम्बई और अब फरीदाबाद में भी तारा नेत्रालय है। तारा में हम सभी अपने आपको भाग्यशाली मानते हैं जो कि ईश्वर ने हमें इस काम के लिए चुना है, हाँ और आपको भी तो चुना है। वरना हम अकेले भी क्या और कितना कर लेते।
‘‘इस दीपावली पर एक दीपक.....’’
रोशनी का आप भी जलाऐं एक वृद्ध को नेत्र ज्योती देकर।
दीपेश मित्तल