‘‘एक लड़ाई कोरोना से’’
जब ये लेख लिखने बैठा हूँ तो आज से एक हफ्ता पहले मेरी मम्मी को बेहद कमजोरी महसूस हुई थी हल्का बुखार भी था। हम उदयपुर के एक मेडिकल कॉलेज की Emergency में ले गए वहाँ उनका सी.टी. स्केन हुआ फेफड़े साफ थे तो कोरोना की संभावना नहीं थी। डॉक्टर ने घर भेज दिया और कुछ खून की जाँचें लिखी साथ ही कोरोना की जाँच भी। अगले दिन शाम तक खून की जाँच की रिपोर्ट आ गई लेकिन कोरोना की रिपोर्ट एक दिन बाद आनी थी तो उनकी हालत को देखते हुए उन्हें कोरोना संभावित रोगियों वाले कक्ष में रख दिया। हम खुशकिस्मत थे कि मेरी भांजी डॉक्टर है और वो मम्मी के साथ रात में रह गई वरना कोरोना संभावित वार्ड में अकेली माँ जो कि बेहद कमजोर हो गई थी, कैसे रहेगी, ये घबराने वाला था। कोरोना की रिपोर्ट जब तक आई तब तक वो दो दिन हमारे ऐसे निकले मानो किसी ने बहुत बोझ रख दिया हो। रिपोर्ट नेगेटिव आई और कुछ समय आई.सी.यू. और वार्ड में रहकर कल माँ घर आ गई और अभी सुधार है।
इस कोरोना का डर कैसा होता है ये बहुत नजदीक से हमने महसूस किया है किसी अपने को खोने का भय भले ही उनकी उम्र कुछ भी हो सिंहरन करा देती है। तारा संस्थान में तो हमारे 150 बुजुर्ग हैं, ईमानदारी से कहें तो माता-पिता जितना तो नहीं लेकिन किसी भी एक बुजुर्ग के जाने की तकलीफ तो होती ही है। शायद वृद्धाश्रम संचालन की सबसे बड़ी पीड़ा ही यह है कि इसमें हर थोड़े समय में कोई अपना जा रहा होता है। मृत्यु शास्वत सत्य है ये सारे ज्ञान भी बेमानी लगते हैं जब अपना कोई जा रहा हो तो।
कोरोना जब पूरे विश्व में हैं तो हम भी अछूते कैसे रहते। तारा संस्थान ने भी कोरोना को बेहद नजदीक से देखा और जब वो आया तो थोड़ा नुकसान भी कर गया। बात शुरू करें मार्च 2020 से, हमारे प्रधानमंत्री जी ने जब लॉकडाउन घोषित किया उसके पहले से ही हमने वृद्धाश्रम के बुजुर्गों को बचाव का सामान्य व्यवहार बताना शुरू कर दिया था। लॉकडाउन के समय वृद्धाश्रम भवन के मुख्यद्वार पर ताला लगा दिया ताकि बुजुर्ग इधर-उधर ना जायें, केवल खाने वाली और सफाई वाली बाइयाँ बाहर से आती थीं। फरीदाबाद और प्रयागराज के वृद्धाश्रमों में तो खाना बनाने वाले और सफाई वाले वहीं रहते हैं सो वहाँ खतरा कम था। बाइयों के हाथ सेनेटाइज करवाकर ही प्रवेश दिया जाता था। धीरे-धीरे लॉकडाउन खुलने लगा और हमारे बुजुर्ग भी थोड़ा-थोड़ा निकलने लगे लेकिन फिर भी बार-बार हम उन्हें हिदायत देते कभी प्यार से, कभी उनके बड़े बनकर कि अपना और दूसरों का बचाव करें, कभी तो नीति के तहत मैं उनमें थोड़ा डर भी पैदा करता कि वो घूमने फिरने में संयम बरतेंगे। जो दानदाता खाना खिलाने आते उन्हें भी मना किया कि उनसे भी किसी को कोरोना ना हो जाए हालांकि इसके आर्थिक नुकसान भी हो सकते थे पर सबको बचाना हमारी जिम्मेदारी थी।
तारा संस्थान के संचालकों के रूप में ये परीक्षा का वर्ष है कि हम कैसे इस बात का बैलेंस बना कर चलें कि कोई नुकसान ना हो। साथ ही बुजुर्गों को ये भी ना लगे कि वे कैद हो गए और साथ ही दानदाताओं को भी जोड़कर रखा जा सके। हमने एक Strategy बनाई कि कोई भी नया बुजुर्ग रहने आए तो उनको 7 से 10 दिन Isolate रखा जाता, कोई बुजुर्ग घर जाकर आते तो भी उन्हें अलग कमरे या कुछ को तो अलग भवन में रखते, उनका कोरोना टेस्ट करवा कर ही उन्हें वृद्धाश्रम में भेजते। एक दो बुजुर्ग बीमार होकर अस्पताल भर्ती हुए तो उन्हें भी वापस आने पर 10 दिन के लिए अलग रखा जाता, उनका खाना-पीना सभी उस कमरे में पहुँचाया जाता। किन्हीं को भी हल्का बुखार या खाँसी हो तो उन्हें खाना खाने हॉल में नहीं बुलाते उनके बेड पर ही खाना देते। मार्च के बाद से वृद्धाश्रम में पहली मृत्यु जुलाई में जयपुर निवासी चित्रा जी की हुई, उनको कोरोना नहीं था। लेकिन मन में ये डर था कि कोरोना यदि आ गया तो क्या होगा क्योंकि कोरोना बढ़ता ही जा रहा था। कई न्यूज़ चैनल में सुना था कि इंग्लैण्ड में वृद्धाश्रमों में कोरोना हुआ तो वहाँ 40 से 50 प्रतिशत बुजुर्गों की मृत्यु हो गई। डर के बावजूद ये संतोष था कि हम अपना बेस्ट कर रहे हैं कि कोरोना ना आए।
अक्टूबर की पहली तारीख को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस था और मैंने तब भी सभी बुजुर्गों को थोड़ा समझाया थोड़ा डराया कि सावधान रहें। एक दो बुजुर्ग इस जिद में भी थे कि जो होना हो हो जायें पर हम मंदिर या किसी अन्य कार्य में तो जायेंगे। उन्हें भी कहा कि थोड़े समय रुक जाइये। 4 अक्टूबर सुबह मेरे पास उदयपुर के ‘‘श्रीमती कृष्णा शर्मा आनन्द वृद्धाश्रम’’ के प्रबंधक राजेश जी जैन का फोन आया कि आश्रम में 15-20 बुजुर्गों को खाँसी जुखाम है और एक दो को बुखार भी है। कोरोना जाँच हुई और जो डर था वो हुआ, लगभग 20-25 बुजुर्गों के टेस्ट हुए और उनमें से 5 पॉसिटिव आए। अगले दिन बचे हुए सभी बुजुर्गों का टेस्ट हुआ और उनमें 17 पॉजिटिव आए। कठिन समय में ईश्वर थोड़ी शक्ति दे देता है और हमने धीरज रखा बिना Panic हुए जिनको ज्यादा समस्या नहीं थी उन्हें एक फ्लोर के कुछ कमरों में शिफ्ट किया। हर कमरे में Pulse Oximeter दिया ताकि वे लोग Oxygen Level नाप सकें और भाप लेने के लिए Steamer भी हर कमरे में दिया, साथ ही जो भी दवाइयाँ थीं वो सबको दे दी गई। 9 बुजुर्ग जिनको ज्यादा समस्या थी उन्हें चिकित्सा विभाग उदयपुर के ESI अस्पताल ले गये जिसे जिले का कोविड अस्पताल बना रखा है।
वृद्धाश्रम प्रबंधक राजेश जी रोज दिन में दो बार बुजुर्गों के हाल चाल फोन पर पूछते। वृद्धाश्रम में पॉजिटिव बुजुर्गों को उनके कमरे में ही भोजन पहुँचाने के लिए एक ट्राली की व्यवस्था की और एक कार्यकर्त्ता दिनेश की ड्यूटी सिर्फ उनके लिए लगाई की उन्हें भोजन नाश्ता पहुँचाए। वृद्धाश्रम में उल्लेखनीय सेवा तारा के मेल नर्स गोविन्द पाण्डोर जी ने दी जिन्होंने बिना घबराएँ इन सभी बुजुर्गों की जाँच, दवाइयों और उपचार में पूरा पूरा योगदान दिया। ऐसी स्थिति जब आप एक साथ 13-14 कोरोना मरीजों के इलाज में योगदान दे रहे हों तो बिना ना नुकुर किए 24 घंटे काम करते जाना निश्चित ही सराहनीय था। मैं और कल्पना जी भी 3 दिन तक रोज 2-3 घंटे उसी भवन में जाकर बैठते थे और रोज रिव्यू करते रहे जब तक स्थितियाँ कंट्रोल में नहीं आई।
ESI हॉस्पीटल से जानकारी के लिए अलग टीम बनाई ताकि हमें रोज जानकारी रह सके वहाँ के बुजुर्गों की। ये जो कोरोना तारा के वृद्धाश्रम में आया वह एक तूफान की तरह था और जब तूफान थमा तो साथ में दो जिन्दगियाँ ले गया; 86 वर्षीय श्री दिगम्बर जी जैन महाराष्ट्र के, दूसरे लगभग 65 वर्षीय श्री जुगल किशोर जी मित्तल वो भी महाराष्ट्र के। दिगम्बर जी तो पहले से काफी बीमार थे लेकिन मित्तल जी एकदम स्वस्थ थे बस जब उन्हें पता लगा कि उन्हें कोरोना हो गया तो वे घबरा गए और उस घबराहट में एक दो दिन उन्होंने खाना छोड़ दिया इससे उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। गुजरात निवासी श्री महेन्द्र भाई ठक्कर लगभग एक महीना ESI अस्पताल में रहे और वहाँ के डॉक्टर्स ने उन्हें बचा लिया।
परिवार में किसी का भी जाना दुःखद होता है ऐसा ही हमें भी लगा, कुछ दिनों तक तो धड़कने बढ़ी रही कि ये महामारी हमारे परिवार में तबाही ना ला दें लेकिन ईश्वर ने लाज रख ली वरना ज्यादा नुकसान हो जाता तो ना जाने हम कितने दिनों तक दुःख से उबर ना पाते।
जिन्दगी चलने का नाम है सो तूफान के बाद फिर चलने लगी जिन्दगी, लेकिन जब भी ये सोचते हैं कि वो डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ जो इन मरीजों की देखरेख कर रहे हैं वो तो वाकई देवदूत हैं जो अपनी जान की परवाह किए बिना इस बीमारी से लड़ रहे हैं। ऐसे ही कुछ देवदूत उदयपुर के ESI अस्पताल में भी थे जिन्होंने हमारे इन बुजुर्गों को बचाया जिन्हें वो जानते भी नहीं थे। धन्यवाद शब्द बहुत ही छोटा है उन सबके लिए।
अगले महीने Vaccine की उम्मीद है और फिर सब सामान्य होगा ऐसा लगता है लेकिन न जाने कितनों के अपने बेवजह इस तूफान में चले गए और बहुत से सफेद कोट पहने देवदूत भी अपने कर्तव्य को निभाते चले गए हम तो बस नतमस्तक हैं उनके आगे।
ईश्वर ऐसी विपदा कभी ना लाए यही प्रार्थना है। आप भी अपना ख्याल रखिए, Vaccination के बाद हम एक कार्यक्रम रखेंगे और आपको उसमें आना ही होगा।
आदर सहित....!
दीपेश मित्तल
Join your hand with us for a better life and beautiful future