Ek Pathshala Masti Ki
Posted on 20-Aug-2018 11:35 AM
एक पाठशाला मस्ती की
आज से कुछ एक-डेढ़ साल पहले कुछ बच्चों को सड़क पर कचरा बीनते देखा तो मन में आया कि ये बच्चे स्कूल क्यों नहीं जाते। सोचा कि इनको तारा संस्थान के शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल में दाखिल करता दे। इस विचार को अंजाम देने के लिए शिखर भार्गव स्कूल की टीचर्स और प्रिंसिपल से बात हुई तो समझ आया कि ये बच्चे उस स्कूल में एडजस्ट नहीं कर पाएंगी क्योंकि अंग्रेजी माध्यम है, तो उनके लिए शाम को कुछ पढ़ाने की व्यवस्था करने की सोची। मेरे पापा डॉ. कैलाश ‘मानव’ कहते है कि कोई भी काम करो, उसे एक नाम दे दे तो उस काम की नाम से पहचान बन जाती है तो इस योजना का नाम भी सोचा ‘‘मस्ती भरी पाठशाला’’ जी हाँ, जहाँ बच्चे पढ़ाई को बोझ न समझे और खेल खेल में पढ़ लें। दो अध्यापिकाएँ नियुक्त की जो उन्हें पढ़ाती। अब समस्या ये थी कि स्थान कहाँ हो जहाँ उन्हें पढ़ाऐं तो तारा नेत्रालय, उदयपुर की ओ.पी.डी. शाम में 4 बजे बाद खाली हो जाती है उसके लिए सोचा। पाठशाला शुरू हुई ऐसे बच्चे पढ़ने क्यों आएँगे ये, एक बड़ा प्रश्न था और उस से भी बड़ा प्रश्न ये था कि उनके माता पिता अपने बच्चों को पढ़ने क्यों भेजेंगे जबकि बच्चे 10-20 रु. कचरा बीन कर कमा रहे हों। तो उपाय ये किया कि हर बच्चे को 10 रु. रोज देने का सोचा और साथ में उनके लिए हर दिन नाश्ता भी बनवाया। तो ऐसे शुरू हुई ‘‘मस्ती भरी पाठशाला’’.... तारा संस्थान की बस बच्चों को लेने जाती, बच्चे आते। तारा नेत्रालय की खाली ओ.पी.डी. बच्चों के शोर और हंगामे से गूंजने लगी। थोड़े समय इस तरह से चला तो कुछ च्तंबजपबंस परेशानियाँ आने लगी। कभी कभी बस कैम्पों में होती और बच्चों को घर से दूर लाना और ले जाना थोड़ा मुश्किल था और साथ ही आने जाने में काफी समय लगने लगा। साथ ही ये सारी प्रक्रिया बेहद खर्चीली भी थी। एक समय तो ऐसा आया कि लगने लगा कि मस्ती भरी पाठशाला बंद कर दें। लेकिन कहते हैं न कि सच्चे मन से कोई काम शुरू करो तो ईश्वर जरूर साथ देता है। दीपेश जी ने एक राय दी कि इसे इन बच्चों के घर के पास की कमरा किराये पर लेकर चलाए। विचार बढ़िया था सो अमल में आया गया और मस्ती भरी पाठशाला जीवित रह गई। यकीन मानिए इन छोटे बच्चों को लेकर कुछ करने की मन में बहुत इच्छा थी और ईश्वर हमारा साथ दे रहा था। अभी थोड़े दिन पहले इन सभी बच्चों को तारा संस्थान बुलाया ताकि इनसे बातचीत करें। बच्चे बहुत ही प्रतिभावान हैं जरूरत है तो बस उन्हें एक दिशा देने की। इन बच्चों में 35-40 बच्चियाँ ऐसी हैं जिन्होंने कभी स्कूल नहीं देखा और इनमें कुछ तो 10-12 साल की हैं तो उसी दिन सोचा कि इन्हें स्कूल से भी जोड़ना है क्योंकि केवल अक्षर ज्ञान से इनका जीवन नहीं संवर सकता हैं इन्हें स्कूल से जोड़ना ही होगा। शिखर भार्गव स्कूल की प्रिंसिपल मैडम से बात हुई और ये तय किय कि इन बच्चियों को 2017-18 के सत्र में शिखर भार्गव स्कूल का पाठ्यक्रम जो एल.के.जी. का है वो पठाया जाए। वैसे ही बस्ता किताबें सब दी जाएगी और ‘‘मस्ती भरी पाठशाला’’ अब इन बच्चियों के लिए सुबह दो घंटे भी चलेगी। हम हमेशा कहते हैं और अच्छी तरह जानते भी हैं कि आप और हम मिलकर सबकुछ नहीं बदल सकते हैं, लेकिन ये पक्का है कि प्रयास करेंगे तो कुछ तो बदलेगा ही सो एक छोटा सा प्रयास कर रहे हैं....। यह योजना प्रारंभ हुई तो ईश्वर ने चलाने का साधन भी भेज दिया। हमारे सूरत के एक दानदाता श्री अरविन्द जी नांगलिया (एम्पयार टैक्नोकेम प्रा.लि., सूरत) ने इस योजना के लिए मुख्य सहयोग दिया और आगे भी देते रहेंगे। और लोग भी इससे जुड़ते रहे हैं और आगे भी जुड़ेंगे। अमूमन कोई काम शुरू होता है तो उसकी प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनती है कि इसमें पार्टनर्स कितना पैसा लगाएँगें और बाकी की फंडिग कहाँ से होगी लेकिन कितना बड़ा चमत्कार है कि हम कोई काम बिना फण्ड प्लानिंग के शुरू कर देते है और इसमें हमारे पार्टनर भी आप हैं और बैंक भी.... हमारे पार्टनर तो कोई मुनाफा भी नहीं लेते और न ही हमारे बैंक ब्याज या मूल लेते हैं। इतना बड़ा आश्चर्य सिर्फ दिल वालों की दुनिया में ही होता है।
आदर सहित....
कल्पना गोयल