एक सम्मानजनक विदाई....
आनन्द वृद्धाश्रम में 17 मार्च को हमारे एक आवासी श्री रघुनाथ जी का स्वर्गवास हो गया - 22 अगस्त, 2014 को उन्हें उदयपुर के एक व्यावसायी श्री देवेन्द्र जैन लेकर आए थे। बहुत ही कम बोलते थे तो उनके बारे में.... थोड़ी बहुत जानकारी थी वो यह थी कि वे अपने भाई के पास ही कुछ काम करते थे और जब उम्र के कारण शरीर ने साथ नहीं दिया तो भाई ने उन्हें निकाल दिया। वे जैन जी की दूकान के बाहर ही सोते थे तो देवेन्द्र जी उन्हें तारा संस्थान लेकर आए। कुछ दिनों बाद ही उनकी आँखों का ऑपरेशन तारा नेत्रालय में किया गया। नवम्बर 2014 में उन्हें मस्तिष्क ज्वर हो गया.... अस्पताल में भर्ती कराया गया और वे स्वस्थ हो गए। स्वर्गवास से थोड़े दिनों पहले वे बीमार हुए, हॉस्पीटल में भर्ती भी कराया उनके परिजनों को सूचना दी तो उनका भतीजा एक बार आया और मिलकर चला गया। उनके स्वर्गवास पर भी उनके परिजनों से बात की..... पर उन्होंने कहा कि आप अपने स्तर पर जो भी करना है कर लीजिए। तो दाह संस्कार भी तारा संस्थान द्वारा कराया गया।
तारा संस्थान में अब तक 8 आवासियों का स्वर्गवास हुआ है उनमें से एक या दो की अंतिम क्रिया उनके परिजनों द्वारा हुई लेकिन बाकी सभी की अंतिम क्रियाएँ तारा संस्थान द्वारा की गई.... वैसे अंतिम क्रिया कौन करता है इसका बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं है मृत शरीर को क्या पता कि उसकी चिता को अग्नि कौन दे रहा है, बात सिर्फ सम्मानपूर्वक इस दुनिया से विदाई की है......
लेकिन रघुनाथ जी एक दूकान के बाहर बीमार और वृद्ध अवस्था में अपना जीवन कैसे बिताते ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और यहीं पर आनन्द वृद्धाश्रम की उपयोगिता है.... जहाँ रघुनाथ जी ने अंतिम 7 महीने सम्मान के साथ जीते हुए निकाले वो रहम पर नहीं थे और पूरे अधिकार के साथ रहे। सबसे बड़ी बात उनके पास बात करने के लिए 30-40 जने साथ थे, ज्यादा बोलते नहीं थे लेकिन आपके आसपास कोई है यह भी अपने आप में विश्वास दिलाता है। जब वे बीमार हुए तो उन्हें उन्हीं के साथियों या वृद्धाश्रम की बाइयों ने खाने के लिए पूछा और जब नहीं खा पा रहे थे तो उन्हें मनुहार कर कहा जाता कि दूध तो पी लो.... जब बहुत अधिक बीमार हो गए और कभी बिस्तर गंदा करते तो उन्हें, उनके कपड़ों और बिस्तर को साफ करने वाला कोई तो था.... जब अस्पताल में भर्ती हुए तो भी हर वक्त उनके पास कोई-न-कोई रहने वाला भी कोई था....
तारा की सफलता इस बात में नहीं मानते कि आनन्द वृद्धाश्रम में कितने ज्यादा लोग रह रहे हैं या कितने ज्यादा आँखों के ऑपरेशन कर पा रहे हैं या कितनी ज्यादा महिलाओं या कितने ज्यादा बुजुर्गों को तृप्ति में सहायता मिल रही है इन सब की संख्या तो जैसे-जैसे लोग सहयोग देगें अपने आप बढ़ती जाएगी पर यदि एक भी रघुनाथ जी हमारे यहाँ अंतिम कुछ महीने में, जब उन्हें सबसे ज्यादा सहारे की जरूरत थी, सुकून से रहे तो ये हमारी सबसे बड़ी सफलता है... और मुझे लगता है कि हम सफल हुए.....
ईश्वर रघुनाथ जी की आत्मा को शांति प्रदान करें....
दीपेश मित्तल
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