गेहूँ के दाने...
एक कहानी सुनी थी जो कुछ इस प्रकार थी। एक राजा के 3 बेटे थे, राजा बहुत ही सोच में रहते थे कि इनमें से किसे अपना उत्तराधिकारी बनाऊँ क्योंकि वे चाहते थे कि सबसे श्रेष्ठ ही उनके बाद राजा बने। उनकी चिंता जब उन्होंने अपने गुरु को बताई तो गुरुजी ने राजा को एक तरकीब बताई। राजा ने अपने तीनों बेटों को बुलाया और उन्हें एक-एक बोरी गेहूँ दिया और कहा कि मैं एक साल के लिए बाहर जा रहा हूँ और ये गेहूँ तुम्हें संभाल कर रखने हैं। इनमें एक रत्ती भी कम नहीं होना चाहिये जिनके भी थोड़ा गेहूँ कम होगा वो राजा बनने के योग्य नहीं माना जाएगा। राजकुमार चिंतित हो गए। एक राजकुमार ने तो उस बोरी को एक कमरे में रखवा कर बाहर बड़ा ताला लगा दिया और दो चौकीदार बिठा दिए। दूसरे राजकुमार ने उन गेहूँ को एक संदूक में रख दिया और उसमें नीम के पत्तों का चूरा मिला दिया जिससे उनमें कीड़े नहीं लगे। तीसरे राजकुमार ने एक खेत तैयार कराया और उसमें गेहूँ उगा दिए। राजा वापस आया पहले राजकुमार के गेहूँ सड़ चुके थे, उनमें कीड़े पड़ गए थे दूसरे राजकुमार ने शान से संदूक खोला तो उसमें गेहूँ तो सही सलामत थे लेकिन उनमें नीम की कड़वाहट आ गई थी। राजा ने तीसरे से पूछा तो वो राजा को बाहर खेत पर ले गया वहाँ गेहूँ की लहलहाती फसल खड़ी थी। एक-एक दाने ने न जाने कितने दानों को जन्म दे दिया था। सीधी सी बात थी तीसरा राजकुमार उत्तराधिकारी घोषित हुआ।
सरल सी कहानी है ये, या इससे मिलती जुलती कहानियाँ आपने भी पढ़ी होगी लेकिन इसमें जो गूढ़ता है वो यह कि दाने जिनमें जीवन था उन्हें यदि पड़ा रखा तो वो सड़ गए और जैसे ही उनका सही उपयोग हुआ तो उनसे नया जीवन अंकुरित हो गया। मुझे हमेशा लगता है कि हमारे डोनर भी उन गेहूँ के दानों की तरह हैं जो नया जीवन पल्लवित कर रहे हैं और सच मानें ऐसा हम दिल से महसूस करते हैं और मैं चाहती हूँ कि आपको ये एहसास होवे कि आप भी जीवन दे रहे हैं, पूरी दुनिया की 700-750 करोड़ की आबादी में कितने लोग हैं जो दूसरों के लिए सोचते हैं, और उन थोड़े लोगों में आप भी हैं। मैंने बहुत से लोगों को प्रवचन देते सुना है जो कहते हैं कि धन की अभिलाषा मत करो लेकिन उनके खुद के अंदर धन की लोलुपता होती है, मेरा मानना यह है कि अच्छी जीवन शैली पर सबका अधिकार है और दान भी तब देना चाहिए जब कोई अपने और परिवार की आवश्यकताओं को अच्छे से पूरा कर ले। लेकिन मैंने पिछले 20-25 सालों में नारायण सेवा और तारा में हजारों ऐसे लोगों को देखा है जो अपनी आवश्यकताओं में कमी करके दान देते हैं। उनका जो भाव है वो जीवन देने का भाव है। ईश्वर ने आपको जो जीवन दिया है आप उस जीवन का सदुपयोग कर कई लोगों को जिन्दगी दे रहे हैं।
जिन्दगी देने का तात्पर्य केवल जन्म और मृत्यु से नहीं है वरन् आप किसी गरीब बुजुर्ग की आँखों में रोशनी दे रहे हों, या वृद्धाश्रम के बुजुर्गों को अंत समय में स्वाभिमान भरा आश्रय या विधवा महिलाओं को सहायता या तृप्ति में तृप्त करने वाला राशन तो ये भी तो जीवन देना ही है। सृष्टि में जितनी भी सजीव जातियाँ हैं उनमें सबसे बुद्धिमान मनुष्य है तभी तो वो सोच सकता है कि अपने से हट कर दूसरों के लिए भी कुछ किया जाए लेकिन शायद ईश्वर यह सौभाग्य भी सबको नहीं देता है बस आप जैसे कुछ भाग्यशाली लोग ही हैं जो अपने जीवन से जिन्दगी देकर खुशियों की फसल उगा रहे हैं....
आप सभी दानदाताओं को मेरा सादर प्रणाम....
कल्पना गोयल
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