होली के रंग : बुजुर्गों के रंग
मार्च का महीना बचपन से ही होली के महीने के रूप में माना जाता है और होली का त्योहार इसलिए भी विशेष होता है क्योंकि इसमें बहुत मस्ती और धमाल होती है। वैसे भी रंग हमारे जीवन की खुशहाली का प्रतीक होते हैं तो ये रंगों का त्योहार थोडे़ समय के लिए ही सही कामकाज की परेशानी, चिंता सब को भुलाकर खुशियाँ बाँटने के लिए होता है......
तारा परिवार में हमारी कोशिश यह रहती है कि हमारे घर के बड़े बुजुर्ग (आनन्द वृद्धाश्रम के आवासी) भी हर त्योहार को उसी जोश और उल्लास से मनाएँ जैसा कि उन्होंने उनके बचपन और जवानी में मनाया होगा..... .मकसद सिर्फ एक ही है कि कहीं उन्हें उस पीड़ा का अहसास न हो जाए जिसके चलते उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा......
तारा के ‘‘श्रीमती कृष्णा शर्मा आनन्द वृद्धाश्रम’’ के अंकल-आंटियों के साथ होली के उपलक्ष्य में हमने बहुत मस्ती की जिसमें एक दूसरे को गुलाल लगाया, मिठाई खिलाई और कुछ गेम भी खेले, जो जीते उन्हें इनाम भी दिया..... वैसे इनाम तो बस खेल में रोमांच बना रहे उसके लिए थे, वरना हमारी हैसियत नहीं कि हम उन्हें कुछ दें जिनके पास वर्षों का त़जुर्बा हो....
इस पूरे महौल में मुझे किन्ही भी अंकल आंटी के चेहरे पर यह सोच या बोझ नहीं दिखा कि वे अपने बच्चों से दूर उन लोगों के साथ होली जैसा त्योहार मना रहे हैं जो शाब्दिक अर्थ में देखा जाए तो पराए हैं।
लेकिन मुझे लगता है कि जीवन एक ऐसी भूल भुलैया है जिसमें कौन अपना कब पराया हो जाए और कौन पराया कब अपना हो जाए बिलकुल पता नहीं चलता है। उन सबकी खुशी, नाचने - गाने मस्ती में जो जिंदादिली थी उसको शब्दों में बयाँ करना नामुमकिन है...
सबसे बड़ा सुकून यह है कि तारा में उन्हें उनके घर का अधिकार और सम्मान मिल रहा है ऐसा उनके ‘‘श्रीमती कृष्णा शर्मा आनन्द वृद्धाश्रम’’ में निश्चित जीवन को देखकर लगता है................एक सामान्य घर परिवार में होने वाला प्यार, अपनापन, छोटी-मोटी तकरार थोड़ी बहुत ईर्ष्या सभी रंग हमारे आंनद वृद्धाश्रम आवासियों में है और यही सब देखकर लगता है कि सब Normal है या All is well...
बस एक बात थोड़ी सी तकलीफ होती है जब मन में विचार आता है कि क्या उनके बच्चे उन्हें होली पर डपे करते होंगे.....
कल्पना गोयल
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