हम भी अगर बच्चे होते...
जी हाँ बचपन की यादें हमेशा हमारे मन पर अमिट छाप की तरह अंकित हो जाती है। जब कभी स्कूल के पुराने साथी मिलते हैं तो इतनी इतनी बातें होती हैं और उन बातों में अकसर जिक्र होता है उन खेलों का जो अब भूला से दिए गए हैं।
जब इस बार की तारांशु बना रहे थे तो सोचा कि क्यों ना आपको और हमारे वृद्धाश्रम के बुजुर्गों की याद ताज़ा की जाए उन खेलों को खेलकर जो अब विलुप्त से हो रहे हैं। आसान सा था शंकर सिंह जी को बोला और तारा संस्थान के शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल के मैदान पर मेरे साथ कुछ लड़कियों, बुजुर्ग और बच्चे सब इकट्ठे होकर खेलने लगे बचपन में खेले खेल, बहुत सी लड़कियों के लिए तो ये नया अनुभव था लेकिन गाँव के कुछ बच्चों को ये खेल आते थे।
सबसे पहले गुट्टे खेले गए (शायद आपके यहाँ कुछ और भी कहते हों)। चार पाँच महिलाओं और बीच में 5 कंकड़, एक को हवा में उछालना बाकी को बस उतनी देर में इकट्ठा करना जितनी देर में हवा वाला नीचे आ जाए, क्या कला है। फिर लट्टू चले इसमें लड़कियाँ थोड़ी फिसड्डी थी लेकिन स्कूल के लड़कों ने तो मानो जादू सा कर दिया करण ने तो लट्टू को हवा में उछाला और सीधा हाथ में ले लिया बिना जमीन पे गिराये मानो जादू हो।
स्टापू या चिप्पस का कम्पटीशन तो गौरी योजना की नसरीन चैम्पियन की तरह खेली जब पूछा तो बोली मैंने तो घर पर यही काम तो किया था। घोड़ा है चमार खाए में तो हम सब बच्चे बन गए, और जब टायर को दौड़ाया तो ऐसा लग रहा था कि रेखा कुँवर के तो पैरों में पंख लग गये हों। एक एक कर हर बच्चे और बड़े ने टायर दौड़ाया.... और फिर गिल्ली डंडा, जिसमें अंदाजा सही लगाने वाला खिलाड़ी जीत जाता है। फिर बड़ों और बच्चों की टीम बनी और... बच्चे जीत गए, सितोलिया में थ्पदंससल बड़ों ने बाजी मार ही ली.... और 75 वर्षीया अंबा बाई (आनन्द वृद्धाश्रमवासी) ने लट्टू घुमाया और हम सब भी चक्कर खा गए इस उम्र में इस अदा पर.... इतना थक कर हम जीवंत हो गए....।
आज के बच्चे तो कृत्रिम दुनिया में जी रहे हैं जो टी.वी. से होती हुई मोबाइल में सिमट गई है सारे खेल बस एक छोटी सी स्क्रीन पर ही खेले जा रहे हैं, तभी तो आप कहीं भी नज़र दौड़ाएँ बच्चों में मोटापा बढ़ गया है। ये जो भी पुराने खेल थे इतनी कम कीमत में इतना मजा देते थे कि किसी मेडिटेशन की जरूरत ही नहीं थी।
मुझे इन खेलों को खेलकर जो मजा आया उसके 20-25 प्रतिशत आनन्द तो आपने भी लिया होगा, पुरानी यादें जो सुख देती है वो अनुपम होता है कभी आप सब आएँगे तो हम ऐसा भी प्लान करेंगे कि आप और हम मिलकर खेलें।
यह बात पक्की है कि कोई भी इत्र मिट्टी की खुशबू से ज्यादा नहीं महकता है... है ना?
आदर सहित....
कल्पना गोयल
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