जगमगाती रोशनी... आपके द्वारा
दीपावली देश का सबसे बड़ा त्योहार और इस बार तो ये त्योहार विशेष है क्योंकि आप और हम एक महामारी से उबर रहे हैं, कोरोना के दिए घाव वैसे तो आसानी से नहीं मिटेंगे लेकिन दीपावली जैसे उत्सव जीवन में थोड़ी खुशियाँ तो बिखेर ही देते हैं। बहुत से ऐसे परिवार हैं जो इस दीपावली अपनों को Miss करेंगे लेकिन जीवन चलने का नाम हैं तो उनकी अच्छी यादों को मन में बसा कर आगे चलना ही होगा।
तारा संस्थान में हम हर महीने आंकड़े बनाते हैं कि अब तक क्या क्या काम हुआ है और अभी सितम्बर तक के आंकड़े देखें तो 30 सितम्बर तक तारा के सभी हॉस्पीटलों में मिला कर 90274 (नब्बे हजार दो सौ चौहत्तर) ऑपरेशन हुए हैं। मन में ये खयाल आया कि आप सभी के सहयोग से तारा तो प्रतिवर्ष लगभग 9000 आँखों को रोशनी दे रहा है। आप और हम तो प्रतिवर्ष प्रतिदिन दीपावली मनाते हैं और आपके द्वारा दी गई ‘‘ज्योति’’ तो न जाने कितने लोगों को सुख देती है क्योंकि जब एक व्यक्ति आँखों की रोशनी पाता है तो पूरा परिवार सुखी होता है और यहाँ तो ना जाने कितने लोग ऐसे हैं जिनका यदि आपके सहयोग से मोतियाबिन्द ऑपरेशन नहीं हुआ होता तो वे जीवन भर नहीं देख पाते।
सर्दियाँ आती है तो तारा संस्थान के उदयपुर, दिल्ली, मुम्बई, फरीदाबाद व लोनी स्थित आँखों के अस्पताल गुलजार हो जाते हैं रोज ऐसा लगता है मानो मेला लगा हो हर दिन उत्सव जैसी रेलमपेल पके हुए मोतियाबिन्द लिए लाठी के सहारे चलते बाबा-बाई ताऊ-ताई, बासा-माता और कभी कभी मध्यम या कम उम्र के जवान भी। सबकी एक ही अभिलाषा कि हमारा ऑपरेशन जल्दी हो जाए और जब ऑपरेशन होकर के काला चश्मा लगाए लोगों का झुंड तारा नेत्रालयों से बाहर निकलता हो तो वो भी एक विहंगम दृश्य होता है जी हाँ जैसे पहाड़, नदियाँ या समुद्र आँखों को सुकून देते हैं वैसे ही निःशुल्क ऑपरेशन के बाद अच्छा देख पाने की खुशी से दमकते ये चेहरे भी उतना ही सुकून देते हैं। हम लोग तो तारा में रोज आते हैं वो शायद इस दृश्य का इतना आनन्द न ले पाते हों क्योंकि हमारा रुटीन है ये लेकिन आप कभी तारा की सड़क से निकले और आपको ये दृश्य दिखे तो आपको बहुत-बहुत अच्छा लगेगा। हाँ ये देखने के लिए आपको आना पड़ेगा तारा में। वैसे अब कोरोना भी नहीं है तो आपको आने में कोई परेशानी भी नहीं होगी। हमारा खुला निमंत्रण है आप तो आइये और आनन्द उठाइये इन चमक से भरी आँखों का जो इस विश्वास से दमक रही हैं कि उनकी जिन्दगी की अमावस्या अब खत्म हो गई है। उन्हें तो यह भी एहसास नहीं कि उनकी जिन्दगी में उजाला हजारों लोग अपनी मेहनत के कमाई में से दान देकर लाते हैं और वैसे उन्हें यह भान हो या ना हो इससे ना तो दान देने वालों को फर्क पड़ता है ना ही तारा को क्योंकि जिस ईश्वर ने यह लीला रची है वहाँ तो यह लिख ही लिया जाता है कि एक अच्छी भावना से बहुत से लोगों ने मिलकर बहुत से लोगों को रोशनी देकर पूरा जीवन ही दीपोत्सव बना दिया है।
आपसे यही विनती है कि दीपों वाली दीपावली के साथ नेत्र ज्योत वाला दीपोत्सव भी मनाते रहें और माता लक्ष्मी आप सब पर कृपा बनाए रखे।
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ...
- कल्पना गोयल
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