जीवन ज्योति
थोड़ा से दिन पहले की बात है कोई दानदाता आए थे उनको तारा नेत्रालय उदयपुर में विजिट करवाने ले गया... डॉ. लीना दवे से मिलवाया और उनके चैम्बर से बाहर निकल रहा था तो मेरी निगाह एक सज्जन की आँख पर पड़ी, आँख की पुतली एकदम सफेद थी तो मैं रुक गया’ वैसे तो समझ गया था लेकिन फिर भी तसल्ली के लिए पूछा कि इस आँख से कितना दिखता है तो उन्होंने बताया बिलकुल नहीं। मैंने पूछा इतने दिन पहले क्यों नहीं आए थे... तो वे बोले पता ही नहीं था तारा के बारे में। तो फिर कहीं और दिखा देते? तो वे बोले : ‘‘पया ही नी हा’’ (पैसे नहीं थे)... अगर आँख चली जाती तो?... ‘‘तो कई नी (तो कुछ नहीं)’’...। उन दानदाता की डॉ. मैडम से बात कराई तो उन्होंने भी कहा कि इनका मोतियाबिन्द इतना पक गया है कि यदि एक दो दिन भी देर हो जाती तो आँख जा सकती थी। ये महानुभाव राजपूत समाज के एक प्रौढ़ थे जिनकी उम्र भी ज्यादा नहीं थी, 50-51 साल के आस पास ही थी। मैंने उन्हें कहा कि भगवान जी का शुक्रिया अदा करो कि आपकी आँख बच गई।
तारा संस्थान में हम सामान्यतः जाति-धर्म आदि का जिक्र नहीं करते हैं और ना ही इस आधार का कोई भेदभाव मन में हैं लेकिन राजपूत समाज से बताने का आशय सिर्फ यह है कि समाज के बवउचंतंजपअमसल उच्च वर्ग के माने जाने वाले व्यक्ति भी गरीब हो सकते हैं और पैसे का अभाव या जानकारी की कमी एक ऐसी भूल हो सकती है जो उनके आगे के जीवन को अंधेरे से भर देती। आप जरा सा सोचें कि एक व्यक्ति जिन्हें आगे की जिन्दगी के 20-25 साल अंधेरे में बिताने पड़े वो भी सिर्फ इसलिए कि उनके पास पैसे नहीं हैं कितना मुश्किल होता है।
कभी-कभी परिवारों की विपिन्नता भी बुजुर्गों के तिरस्कार का कारण बन जाती है ऐसे में यदि उन बुजुर्गों को दिखाई भी न दे तो कितना मुश्किल हो जाए। बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन कभी-कभी छोटे बच्चे भी मोतियाबिन्द से पीड़ित हो जाते हैं। आँखों में कोई चोट या गर्भावस्था में माँ की बीमारी या और जो भी कारण हों। वो एक भी बच्चा जो कि पैसे के अभाव में आँखों का ऑपरेशन नहीं करा पा रहा और आप और हम मिलकर उसकी रोशनी लौटा दे तो इससे ज्यादा कुछ चाहिये?
मैं हमेशा से कहता रहा हूँ कि तारा संस्थान के वृद्धाश्रम एक निश्चिंतता देते हैं उन बुजुर्गों को जो बेसहारा है साथ ही तारा नेत्रालय भी तो निश्चिंतता दे रहे हैं उन हजारों लोगों को जो शायद पैसों के अभाव में आँखों की ज्योति खो देते। बिना ज्योति जीवन कितना निराश हो जाता, ये जानना हो तो दो मिनट आँखों को बंद कर घर में घूम लीजिए।
आप जो तारा संस्थान को नेत्र शिविरों, आँखों के ऑपरेशनों के लिए सहयोग करते रहे हैं वो सिर्फ ‘‘ज्योति’’ नहीं दे रहे हैं वरन एक पूरा ‘‘जीवन’’ दे रहे हैं जिससे आखरी कुछ साल बहुत से बुजुर्ग इस खूबसूरत दुनिया को जीवंतता से देखेंगे।
दीपेश मित्तल
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