खाता-बही
वर्ष 2020-21 खत्म होने जा रहा है और हमेशा सभी लोग चाहे व्यापारी हो या काम काजी, साल का हिसाब किताब लगाने बैठते हैं कि क्या जमा हुआ, क्या खर्च हुआ और आगे कैसे क्या काम करना है ये तो जिन्दगी की सच्चाई है कि बिना पैसों के कुछ भी तो नहीं होता है लेकिन वर्ष 2020-21 का खाता-बही कुछ अलग होगा इतना अलग कि हमारी आने वाली पीढ़ियां इनका जिक्र करेंगी।
अभी 8 मार्च को महिला दिवस पर संस्थान की महिलाओं के साथ बैठ कर Informal बातचीत कर रही थी तो हमारे कॉल सेन्टर में काम करने वाली कुसुम जी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि लॉक डाउन के कारण उनके पति जो कि चाय का ठेला लगाते थे उनका काम छिन गया, परिवार का एकमात्र आय का साधन बंद हो गया तो एक वक्त ऐसा आया कि पति-पत्नी ने दो बच्चों के साथ सोचा कि चलो तालाब में कूदकर जान दे देते हैं। शायद ये भावनाओं का अतिरेक था, मुझे नहीं लगता कि वे ऐसा करते लेकिन ये जो विचार है बेबसी की पराकाष्ठा है। उन्हें तारा में ही काम कर रही भावना जी ने कहा और वो तारा के कॉल सेन्टर में लग गई और जो भी थोड़ा बहुत मानदेय उन्हें यहाँ से मिलने लगा उस से उनकी जिन्दगी की गाड़ी चलने तो लगी।
जब भी आपके पास तारा के कॉल सेन्टर से कोई कॉल आए और आप तारा में बुजुर्गों, नेत्र रोगियों या किसी की भी मदद करें साथ में आप ये भी सोचना कि जो भी आपको कॉल कर रही महिला या बच्ची हैं उनका घर भी चलाने में आप मदद कर रहे हैं।
कुसुम जी का दर्द सुना तो आंसू रुक ही नहीं रहे थे और ये साल तो आंसू जमा करने का साल रहा। तारा संस्थान का परिवार भी तो बड़ा है आप सभी दानदाता जो हमसे जुड़े हैं, हमारे वृद्धाश्रम के बुजुर्ग, हमारी गौरी की विधवा महिलाएँ और जो भी तारा संस्थान के कार्यकर्त्ता चाहें वो डॉक्टर हों या चाय बनाने वाली बाई और हाँ मेरे माता-पिता, बच्चे, नाते रिश्तेदार भी। इतने बड़े परिवार में महामारी हुई तो नुकसान भी हुआ, कई लोग बीमार हुए, कुछ हमें छोड़कर चले भी गए, पूरा साल इसी उधेड़ बुन में रहा कि खर्च ज्यादा ना हो जाए क्योंकि कोई भी असमय जाए तो तकलीफ होती ही है। कभी-कभी ये भी सोचती हूँ कि उन नीती-नियंताओं पर क्या बीतती होगी जिनकी जिम्मेदारी जिन्दगी बचाने के साथ जिन्दगी चलाना भी है वो हर समय यही सोचते होंगे कि कैसे बेलेंस बना कर चलें कि रोग भी ना बढ़े और लोगों की रोजी-रोटी भी ना छिने। सच में कोरोना ने बहुत बड़ा असमंजस खड़ा कर दिया है लेकिन मनुष्य जुझारू प्रजाति है तो संघर्ष कर रहा है लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या में कुछ नुकसान भी होगा ही।
खर्चों का हिसाब जब करें तो 2020-21 में हमारे कई दानदाता, वृद्धाश्रमों के कुछ बुजुर्ग, हमारे कुछ परिचित रिश्तेदार, कुछ हमारे कार्यकर्त्ताओं के परिजन इस साल हमारे बीच नहीं रहे और अगर जमा की बात करें तो दर्द और आंसुओं के अलावा हमने कुसुम जी जैसी कई महिलाओं को रोजगार दिया अपने कॉल सेन्टर में, लॉक डाउन और बाद की परिस्थितियों में कई बुजुर्ग आए और अपने वृद्धाश्रमों में सबको घर मिला, सबसे बड़ा आश्चर्य तो अक्टूबर के बाद से भारी तादाद में आँखों के रोगियों का आना रहा, दिसम्बर से मार्च तक तो लगभग 1500 से 2000 ऑपरेशन प्रतिमाह हुए और तब भी अस्पतालों में ऑपरेशन की वैटिंग है और सबसे बड़ी बात जो मैं मानती हूँ लॉक डाउन में भी सभी को कुछ कम करके भी मानदेय तो दिया। हमारे इस हम में आप सब भी शामिल हैं तो ये सब जमा आपके भी हैं।
आप जब तारांशु का अंक पढ़ेंगे तब 2021-22 चल रहा होगा और लग नहीं रहा कि कोरोना खत्म हो रहा तो बस प्रार्थना करिएगा जब हम 2022-23 में प्रवेश करें तो हमारे बही-खाते सिर्फ आय-व्यय के हों, तकलीफें कम से कम हों और बहुत सी खुशियों की यादें हों।
वैसे हमने 2020-21 में भी थोड़ी खुशियाँ तो वक्त से चुरा ही ली थी चाहे वो वृद्धाश्रम की गीत संध्या हो या दीपावली का सांस्कृतिक कार्यक्रम। आप से छोटी हूँ पर बस एक मशविरा जरूर दूंगी कि आप भी जब भी मौका मिले खुशियाँ बटोर लेना।
आदर सहित...
- कल्पना गोयल
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