खुशी का लेन-देन
ऐसा कहते हैं कि दुनिया लेन-देन पर टिकी है जब मुद्रा नहीं थी तो चीजों का आदान प्रदान होता था अनाज के बदले में कपड़ा, धातु के बदले में औजार और भी न जाने क्या-क्या लेकिन तारा संस्थान से आप जो जुड़े हैं वे इस लेन देन की दुनिया से थोड़ा हट कर हैं वे अपनी मेहनत से कमाया धन उनके लिए देते हैं जिन्हें बेहद जरूरत है और बदले में कुछ भी नहीं चाहते हैं लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में भी खुशी का लेन-देन होता है। आप देकर भी खुश हैं और जिन्हें मिल रहा उनकी भी खुशी असीम है क्योंकि चाहें आँखों का ऑपरेशन हो या वृद्धाश्रम या तृप्ति हो या गौरी सभी को बहुत सारे कष्टों से आराम सिर्फ आप लोगों के कारण मिलता है।
आप लोग जो दूर बैठकर तारा संस्थान को सहयोग कर रहें, आपके अलावा भी एक बहुत बड़ा वर्ग वो भी है जो तारा संस्थान के वृद्धाश्रमों में आता है और बुजुर्गों के साथ समय बिताता है। ये लोग महिला मंडल, कीर्तन मंडली, लायन्स क्लब, रोटरी क्लब, सेना के अफसर और उनके परिवार, युवा सोशल ग्रुप आदि ये सभी अलग-अलग अवसरों पर आते हैं एक दो घंटे इन बुजुर्गों के साथ बिताते हैं। इन एक दो घंटों में नाच गाना, भजन कीर्तन कई तरह के गेम्स और भी न जाने क्या क्या होता है? अभी जो नया भवन आनन्द वृद्धाश्रम का बना है वो हमारे ऑफिस की बिल्डिंग से 3 किलोमीटर दूर है तो मेरा या कल्पना जी का कभी-कभी ही वहाँ जाना होता है लेकिन अब वहाँ उदयपुर के कई संगठन, समाज, स्कूल आदि अपने आप पहुँच जाते हैं। हम और आप भी क्या कोई त्योहार मनाते होंगे जितना हमारे आनन्द वृद्धाश्रम के रहने वाले बुजुर्ग मनाते हैं। रक्षा बंधन पर स्कूल के छोटे-छोटे बच्चे राखी बाँधने पहुँचते हैं तो होली पर कॉलेज के युवा रंग लगाने। कभी एन.सी.सी. की लड़कियाँ नाच गाती हैं तो उनके साथ वृद्धाश्रम की बुजुर्ग महिलाएँ भी बच्ची बन अदाओं से नाचने लगती हैं। क्रिसमस पर रोटरी क्लब वाले सांता क्लास बन कर बुजुर्गों के साथ गाना बजाना करते हैं तो हमारी बशीरन बाई (जो अब हमारे बीच नहीं है) के साथ ईद मनाने भी एक बालिका आश्रम की बच्चियाँ आ गई थीं। वृद्धाश्रम में भोजन करवाने तो न जाने कितने लोग आते हैं कोई जन्मदिन के उपलक्ष्य में, कोई शादी की सालगिरह पर, तो कोई अपनों की पुण्यतिथि पर लोग आते हैं। प्यार से सबको बैठा कर खिलाते हैं पूरा का पूरा परिवार परोसकारी करता है और खाना खिला कर गद्गद होता है। मैंने बहुत से लोगों की आँखों में प्यार और खुशी के आंसू भी देखें हैं। ऐसा ही तारा के ओम दीप आनन्द वृद्धाश्रम, फरीदाबाद में भी होता है वहाँ भी हर त्योहार मनाने बहुत से लोग आते हैं। कभी माता का जगराता होता है तो कभी गणेश स्थापना और कोई कोई संगठन तो हमारे इन बुजुर्गों को घुमाने भी ले जाते हैं। मुझे याद है कि दैनिक भास्कर की टीम एक बार बुजुर्गों को फिल्म दिखाने ले गई थी और कल्पना जी की एक सहेली ने अपने बेटे की शादी में मेहमान के रूप में वृद्धाश्रम के बुजुर्गों को आमंत्रित किया था।
आज की इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में ये जो समय इन बुजुर्गों को जो भी देते हैं वो इनकी जिन्दगी रंगीन कर रहा है, हम लोग जो संस्थान के संचालन में योगदान दे रहे हैं वो रोजाना समय दे ही नहीं सकते हैं। हम इनकी सुविधाओं का ध्यान रख सकते हैं और कुछ प्लानिंग कर सकते हैं लेकिन ये जो भी महानुभाव आकर अलग-अलग सोच से कुछ कुछ आयोजन करते हैं वो इस पूरे प्रकल्प को खूबसूरती दे रहे हैं और उनकी सोच हमारी सोच से परे भी होती है जैसे 94.3 एफ.एम. वालों ने उदयपुर के मशहूर हेयर स्टाइलिस्ट को बुलाकर वृद्धाश्रम की आंटियों का मेकअप और हेयर कलर कराया, अभी उदयपुर में झीलें भरी तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, उदयपुर ने बुजुर्गों को झीलों में नौकायन करवाया।
तारांशु का यह अंक समर्पित है उन लोगों को जो अपना समय दे रहे हैं हमारे उन बुजुर्गों को जिनके अपनों के पास शायद उतना समय नहीं था। हमें भी ऐसी फील आती है कि ईश्वर ने हमें खाली कैनवास दिया और हमने उस पर वृद्धाश्रम रूपी स्कैच बना दिया और अब सब लोग उसमें रंग भर रहे हैं, अपनी सोच, अपनी समझ और अपनी कूची लेकर।
आप सभी का आभार जो कि आनन्द वृद्धाश्रम रूपी इन्द्रधनुष को रंगों से सराबोर किए हैं।
आदर सहित...
दीपेश मित्तल
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