किराने का सामान... पास की दुकान
उदयपुर में फतेहसागर एक रमणीय स्थल है जहाँ कई पर्यटक और स्थानीय लोग आते हैं। फतेहसागर की पाल पर शाम को बैठना बहुत ही सुकून भरा होता है। ऐसे ही एक दिन रविवार को मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठी थी। पाल पर बहुत से रेहड़ी वाले घूम रहे थे कोई चना जोर गरम, कोई गुड़िया के बाल, कोई पॉप कॉर्नक, कोई गुब्बारे आदि लेकिन लेनदार बहुत ही कम थे। अभी कोरोना के कारण वैसे ही पर्यटक कम और फिर लोग बाहर ही चीजों को खाने में भी सोचते हैं। मैं भी, बस बैठ कर झील का आनन्द ले रही थी। मेरे पास की बैंच पर एक युवा जोड़ा बैठा था उन्होंने गुब्बारे वाले से एक खिलौना लिया मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि उनके साथ साथ कोई बच्चा तो है नहीं फिर किसके लिए? सोचा कि शायद घर में कोई बच्चा होगा और कोरोना के कारण लाए नहीं होंगे। थोड़ी दर बाद मैंने देखा कि उन्होंने कोई 10 पैकेट गुड़िया के बाल (Sugar Candy) लिए अब तो बात समझ के परे थी। कौतुहल तो बहुत था पर पूछना Awkward हो जाता कि भाई इतना सब किसके लिए, पूछा तो नहीं पर मेरी निगाहें उन्हीं पर टिकी रहीं। जब मन में कुछ सवाल हो तो उनका जवाब न मिले तब तक उथल पुथल तो रहती ही है। सो जितनी देर वो थे मैं भी इधर उधर देख कर एक नजर उन्हें भी देख लेती थी।
थोड़ी देर बाद वे उठे और जाने लगे। कुछ दूर भीड़ भाड़ से अलग वे गए और वहाँ जो बच्चे गुब्बारे इत्यादि बेच रहे थे उन्हें बुलाकर सारा सामान ऐसे चुपके से दे दिया कि कोई देख ना ले, परोपकार की उनकी ये चोरी मैंने पकड़ ली थी। सच में मन गद्गद् हो गया, मेरे मन में भी उन रेहड़ी वालों के लिए करुणा थी कि कैसे इनका घर चलता होगा, लेकिन कोरोना के डर से मैंने कुछ नहीं खरीदा पर उन लोगों ने मुझे बता दिया कि खुद के लिए ना सही दूसरों के लिए तो कुछ खरीद ही सकते हैं। उनको वा 100-200 रु. खर्च करना कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन सोच बेहद बड़ी थी। जिन लोगों से उन्होंने वो सामान खरीदा उनके लिए वो 100-200 रु. बहुत थे और जिन बच्चों को उन्होंने वो सब दिया उनकी खुशियाँ भी तो अपार थी और मुझे ये लगता है कि उस युगल ने भी असीम असीम सुख पाया होगा।
तारांशु में जब भी हम कुछ लिखते हैं या टी.वी. पर आपसे संवाद करते हैं तो इस बात का ध्यान रखते हैं कि कहीं हम उपदेश देने वाले न बन जाएँ क्योंकि ना तो हम इस लायक हैं कि किसी को भी कोई सीख दे सकें ना ही हम इतने बड़े उम्र और अनुभव, दोनों में कि आप सबको कुछ समझा सकें। वैसे भी अब तो मेरे बच्चे जो युवा हैं वो भी मेरी सीख नहीं लेते। हाँ, छोटे थे तो थोड़ी बहुत दादागिरी मैंने भी उन पर की होगी। लेकिन ऐसी घटनाएँ आपसे शेयर करना इसलिए हो जाता है कि आप और हम इसीलिए जुड़े हैं कि हम संवेदनशील हैं। मुझे लगता है कि संवेदनाएँ मनुष्य को बेहतर बनाती हैं लेकिन कई बार मन संवेदनाओं से भरा होकर भी उन्हें अभिव्यक्त करने के रास्ते नहीं ढूँढ़ पाता है। अभी वाले कठिन वक्त में करोड़ों लोग ऐसे होंगे जिन्हें दो वक्त का भोजन कमाने में भी मशक्कत करनी होती होगी। अगर फतेहसागर पर घूम रहें एक चौथाई लोग भी यदि उस युगल जैसा सोच लेते तो उन रेहड़ी खोमचे वालों की हफ्ते भर की कमाई हो जाती।
आप सभी जिनके पास तारांशु आती है वे संवेदनाओं से भरे हैं तभी तो आप तारा से जुड़े हैं लेकिन कई बार हम भूल जाते हैं कि हमारे छोटे-छोटे कृत्य भी लोगों के लिए जीवनदायी हो सकते हैं और इस भूल में, मैं भी शामिल हूँ। लेकिन अब मैं प्रयास करती हूँ कि छोटे-छोटे लोगों की थोड़ी-थोड़ी मदद मुझसे भी हो जाए, जैसे-किसी रेस्टोरेंट में वेटर को टिप देना या कोई सिक्युरिटी गार्ड है उन्हें भी टिप देना। छोटा-मोटा किराने का सामान या रोजमर्रा का सामान बड़ी बड़ी ऑनलाइन कंपनियों से मँगवाने की बजाए आस पास की छोटी-मोटी किराने की दुकान से ले लेना क्योंकि Amazon के Jeff Bezos दुनिया के सबसे बड़े रईस हैं ही। मेरे दो-चार हजार से उनकी अमीरी ना तो बढ़ेगी ना घटेगी लेकिन इतने से पैसों से मेरे पड़ोस के दुकानदार का एक दिन का खर्च तो निकल ही जाएगा।
तर्क बहुत से हो सकते हैं और एक दो जनों के करने से समाज नहीं बदलता लेकिन एक दो जन के प्रयास से एक दो जन को फायदा तो मिलेगा ही, ये बिलकुल पक्का है। अच्छाई फैलती चली जाती है और कब समाज में परिवर्तन की लहर चल जाए क्या पता?
ईश्वर से एक ही प्रार्थना है कि हमें और आपको संवेदनाओं से लबरेज रखें... बस।
आदर सहित...
कल्पना गोयल
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