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Maa-Beti Ka Ek Khoobsoorat Rishta...

Posted on 20-Aug-2018 11:38 AM
माँ-बेटी का एक खूबसूरत रिश्ता
 
‘‘तारांशु’’ तारा संस्थान का आइना है जिसमें हम और आप मिलकर क्या कर रहे हैं ये प्रतिबिंबित होता है, जी हाँ आप भी तारा संस्थान के क्रियाकलापों का अभिन्न अंग हैं क्योंकि आप सब जो ‘‘तारांशु’’ पढ़ते हैं, हमें सहयोग देते हैं, हमें मानसिक संबल भी देते हैं और जब आप हमें मिलकर कहते हैं कि ‘‘आप अच्छा काम कर रहे हैं’’ तो सच में ऐसा लगता है कि हमने ओलंपिक का गोल्ड मेडल जीता हो। हमें अच्छे से मालूम है कि चाहे हम हों या आप सभी को ईश्वर ने चुना और हम सभी निमित्त मात्र हैं लेकिन ईश्वर ने यह सौभाग्य आपको और हमें दिया यह कितनी बड़ी बात है तो बस आभार उस सर्वशक्तिमान का कि उसने हमें चुना। ‘‘तारांशु’’ अपने आप में मुझे बहुत प्रिय है, एक तो इसका नाम ‘‘तारांशु’’ यानी कि तारा की किरण सुनने में अच्छा लगता है और बाकी सब ।तजपबसम के अलावा मैं अपने भावों को शब्द बनाकर आपसे रू-बरू हो सकती हूँ। हम और आप मिले न मिलें पर आपके पत्र और मेरा यह ।तजपबसम मन की बात कह देता है।
आज इस लेख में लिखना कुछ और चाहती थी लेकिन बहुत कुछ पहले ही कह गई.... चलिए कोई बात नहीं अब मूल बात करते हैं, आज मैं आपको एक माँ बेटी के खूबसूरत रिश्ते की बात बताती हूँ.... वैसे तो जब वृद्धाश्रम चलाते हैं तो बच्चों को लेकर काफी नकारात्मक बातें सामने आती हैं, जो कुछ हद तक सही भी होती हैं लेकिन माता-पिता और बच्चों के मधुर रिश्तों की भी तो अनंत कहानियाँ हैं, तो बात करते हैं तारा देवी की....
तारा देवी एक लंबी साँवली सी महिला है जो आनन्द वृद्धाश्रम में लगभग 2 साल पहले आई थी उन्हें यहाँ उनकी बेटी और पड़ोसी लाए थे, जैसा कि अममून होता है, थोड़ी बहुत जानकारी के बाद उन्हें हमने यहाँ रख लिया या यूँ कहें कि वे अपने नये घर में आ गई। आई, तो वे स्वस्थ थीं, थोड़ा सा चाल में धीमेपन के अलावा कोई कमी नहीं लगती थी। वे बहुत कम बोलती थी लेकिन बहुत से बुजुर्ग हैं जो कम बोलते हैं और अपने हाल में खुश रहते हैं और मेरा और दीपेश जी का भी उन लोगों से आँखों-ही-आँखों के अभिवादन का रिश्ता ही रहता है। अभी जनवरी, 2017 में पता चला कि उनकी तबीयत खराब है उन्हें हॉस्पीटल भी ले जाया गया, भर्ती भी रही और थोड़े समय बाद उन्हें हॉस्पीटल से छुट्टी दे दी गई कि उनको अब घर पर ही रखना होगा। उनको ठतंपद ैजतवाम  हुआ था और अब वे पूरे होशो हवास में नहीं थी। यहीं पर वृद्धाश्रम की असली परीक्षा होती है क्योंकि चलते फिरते स्वस्थ व्यक्ति को तो रखना आसान है लेकिन यदि कोई ठमक त्पककमद हो जाए तो? हमें अब अनुभव है सो इतनी घबराहट नहीं होती है तो हमें जो इंतजाम करना था वो तो किया ही लेकिन जो जीवन का सबसे सुखद पहलू देखने को मिल रहा है तारा देवी की बेटी माहिनी जी की सेवा।
तारा देवी की बेटी रोज बिना नागा आती है। अपनी माँ के डाइपर बदलना, उनको ैचवदहम करना खाना खिलाना आदि जो भी संभव काम हो करती हैं। कभी-कभी मोहनी जी का 10-12 साल का बेटा भी अपनी नानी के पास आता है। 4-5 महीने हो गए लेकिन बेटी लगभग रोज माँ के पास आती है और उनके चेहरे पर कभी भी खीझ या झल्लाहट नहीं देखी। वैसे तो आप कहेंगे कि माता-पिता की सेवा में कैसी खीझ लेकिन आनन्द वृद्धाश्रम के 5 साल के अनुभव में हमने ऐसे बच्चे कोई भी नहीं देखे। बच्चे आए तो इस नाम से कि माता-पिता से मिलने आए हैं लेकिन जितना समय यहाँ रहे या तो उदयपुर घूमते, श्रीनाथ जी दर्शन करते और कुछ कुछ तो केवल वसीयत के कागज पर साइन करवाने आए। यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि अगर माँ की इतनी ही परवाह है तो बेटी ने माँ को अपने पास क्यों नहीं रखा, लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार इस बेटी ने माँ को एक साल अपने पास रखा था जब भाइयों ने माँ को रखने से मना कर दिया तो ससुराल वालों के कारण रखना मुश्किल हुआ तो यहाँ लाई। वैसे भी भारतीय समाज अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि बेटियाँ खुलकर माता-पिता को अपने घर रखे, हालांकि मुझे वो दिन बहुत दूर भी नहीं लग रहा।
एक बेटी का माँ के प्रति निःस्वार्थ प्रेम देखा तो आप सबको बताने से नहीं रोक पाई इतनी परेशानियों वाली दुनिया में सकारात्मकता हमेशा रोशनी की किरण की तरह होती है और बहुत सारी उम्मीद भी बंधाती है।
तो बस अच्छा और बहुत अच्छा हो इसी उम्मीद के साथ....
आदर सहित....
 
कल्पना गोयल
माँ-बेटी का एक खूबसूरत रिश्ता
 
‘‘तारांशु’’ तारा संस्थान का आइना है जिसमें हम और आप मिलकर क्या कर रहे हैं ये प्रतिबिंबित होता है, जी हाँ आप भी तारा संस्थान के क्रियाकलापों का अभिन्न अंग हैं क्योंकि आप सब जो ‘‘तारांशु’’ पढ़ते हैं, हमें सहयोग देते हैं, हमें मानसिक संबल भी देते हैं और जब आप हमें मिलकर कहते हैं कि ‘‘आप अच्छा काम कर रहे हैं’’ तो सच में ऐसा लगता है कि हमने ओलंपिक का गोल्ड मेडल जीता हो। हमें अच्छे से मालूम है कि चाहे हम हों या आप सभी को ईश्वर ने चुना और हम सभी निमित्त मात्र हैं लेकिन ईश्वर ने यह सौभाग्य आपको और हमें दिया यह कितनी बड़ी बात है तो बस आभार उस सर्वशक्तिमान का कि उसने हमें चुना। ‘‘तारांशु’’ अपने आप में मुझे बहुत प्रिय है, एक तो इसका नाम ‘‘तारांशु’’ यानी कि तारा की किरण सुनने में अच्छा लगता है और बाकी सब ।तजपबसम के अलावा मैं अपने भावों को शब्द बनाकर आपसे रू-बरू हो सकती हूँ। हम और आप मिले न मिलें पर आपके पत्र और मेरा यह ।तजपबसम मन की बात कह देता है।
आज इस लेख में लिखना कुछ और चाहती थी लेकिन बहुत कुछ पहले ही कह गई.... चलिए कोई बात नहीं अब मूल बात करते हैं, आज मैं आपको एक माँ बेटी के खूबसूरत रिश्ते की बात बताती हूँ.... वैसे तो जब वृद्धाश्रम चलाते हैं तो बच्चों को लेकर काफी नकारात्मक बातें सामने आती हैं, जो कुछ हद तक सही भी होती हैं लेकिन माता-पिता और बच्चों के मधुर रिश्तों की भी तो अनंत कहानियाँ हैं, तो बात करते हैं तारा देवी की....
तारा देवी एक लंबी साँवली सी महिला है जो आनन्द वृद्धाश्रम में लगभग 2 साल पहले आई थी उन्हें यहाँ उनकी बेटी और पड़ोसी लाए थे, जैसा कि अममून होता है, थोड़ी बहुत जानकारी के बाद उन्हें हमने यहाँ रख लिया या यूँ कहें कि वे अपने नये घर में आ गई। आई, तो वे स्वस्थ थीं, थोड़ा सा चाल में धीमेपन के अलावा कोई कमी नहीं लगती थी। वे बहुत कम बोलती थी लेकिन बहुत से बुजुर्ग हैं जो कम बोलते हैं और अपने हाल में खुश रहते हैं और मेरा और दीपेश जी का भी उन लोगों से आँखों-ही-आँखों के अभिवादन का रिश्ता ही रहता है। अभी जनवरी, 2017 में पता चला कि उनकी तबीयत खराब है उन्हें हॉस्पीटल भी ले जाया गया, भर्ती भी रही और थोड़े समय बाद उन्हें हॉस्पीटल से छुट्टी दे दी गई कि उनको अब घर पर ही रखना होगा। उनको ठतंपद ैजतवाम  हुआ था और अब वे पूरे होशो हवास में नहीं थी। यहीं पर वृद्धाश्रम की असली परीक्षा होती है क्योंकि चलते फिरते स्वस्थ व्यक्ति को तो रखना आसान है लेकिन यदि कोई ठमक त्पककमद हो जाए तो? हमें अब अनुभव है सो इतनी घबराहट नहीं होती है तो हमें जो इंतजाम करना था वो तो किया ही लेकिन जो जीवन का सबसे सुखद पहलू देखने को मिल रहा है तारा देवी की बेटी माहिनी जी की सेवा।
तारा देवी की बेटी रोज बिना नागा आती है। अपनी माँ के डाइपर बदलना, उनको ैचवदहम करना खाना खिलाना आदि जो भी संभव काम हो करती हैं। कभी-कभी मोहनी जी का 10-12 साल का बेटा भी अपनी नानी के पास आता है। 4-5 महीने हो गए लेकिन बेटी लगभग रोज माँ के पास आती है और उनके चेहरे पर कभी भी खीझ या झल्लाहट नहीं देखी। वैसे तो आप कहेंगे कि माता-पिता की सेवा में कैसी खीझ लेकिन आनन्द वृद्धाश्रम के 5 साल के अनुभव में हमने ऐसे बच्चे कोई भी नहीं देखे। बच्चे आए तो इस नाम से कि माता-पिता से मिलने आए हैं लेकिन जितना समय यहाँ रहे या तो उदयपुर घूमते, श्रीनाथ जी दर्शन करते और कुछ कुछ तो केवल वसीयत के कागज पर साइन करवाने आए। यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि अगर माँ की इतनी ही परवाह है तो बेटी ने माँ को अपने पास क्यों नहीं रखा, लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार इस बेटी ने माँ को एक साल अपने पास रखा था जब भाइयों ने माँ को रखने से मना कर दिया तो ससुराल वालों के कारण रखना मुश्किल हुआ तो यहाँ लाई। वैसे भी भारतीय समाज अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि बेटियाँ खुलकर माता-पिता को अपने घर रखे, हालांकि मुझे वो दिन बहुत दूर भी नहीं लग रहा।
एक बेटी का माँ के प्रति निःस्वार्थ प्रेम देखा तो आप सबको बताने से नहीं रोक पाई इतनी परेशानियों वाली दुनिया में सकारात्मकता हमेशा रोशनी की किरण की तरह होती है और बहुत सारी उम्मीद भी बंधाती है।
तो बस अच्छा और बहुत अच्छा हो इसी उम्मीद के साथ....
आदर सहित....
 
कल्पना गोयल

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