माँ
शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल, मस्ती की पाठशाला और अब रोशनी बच्चों के नेत्र शिविर
(विधवा महिलाओं के बच्चों हेतु निःशुल्क शिक्षण)
(कच्ची बस्ती के बच्चों हेतु संध्याकालीन स्कूल)
(‘‘बच्चों की आँखों की जाँच व चश्मा वितरण’’)
शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल, मस्ती की पाठशाला और अब ‘रोशनी’ बच्चों के नेत्र शिविर। बच्चों से संबंधित कोई भी काम माँ से ज्यादा संबंधित हो जाता है, मस्ती की पाठशाला वाले बच्चों से आप कभी मिलेंगे तो लगेगा कि इतनी ज्यादा चमक आँखों में कि जैसे सब कुछ, इस पल खुद में भर लेना चाहते हैं, वो दो घण्टे जो इस पाठशाला में बिताते है लगता है, जान लेना चाहते हैं, कि हमारी दुनिया से अलग दूसरी दुनिया में क्या है, और शायद हम उन्हें उस दूसरे जहाँ की सैर करा पाए.... मैंने ज्यादा वक्त नहीं बिताया है, उन बच्चों के साथ पर उनकी टीचर्स बताती है कि बहुत सीख रहे हैं बच्चे, अब तो उनकी झिझक भी कम हुई है।
जब एक 12 साल की लड़की मुझे कभी । वित ।चचसमए ठ वित ठवल सुनाती है, तब मेरा दिल रोता है कि बचपन जो कि पढ़ने, लिखने, खेलने के लिए है वो बचपन इनका कचरा बीनते हुए या बरतन मांजने व छोटे भाई बहनों को संभालने में ही बीत रहा है, बच्चे बताते हैं कि मम्मी सुबह 5 बजे चली जाती है। चाय, खाना, वगैरह की व्यवस्था भी नन्हें हाथों को करनी होती है, और शाम को जब माँ आती है, तो शादी का बचा हुआ खाना लाती है, या फिर आकर खाना बनाती है तब दिन भर में एक बार भरपेट भोजन मिलता है और बच गया तो सुबह नाश्ता।
और कभी-कभी धनिया पुदीना की गठरी भी बेचते हैं ये छोटे बच्चे। कई बच्चे ज्यादा बात नहीं करते बस चाहते हैं कि उनको पढ़ाया जाए, शायद कहीं उन्हें अंदाजा हो गया है, पढ़ाई के महत्त्व का। मेरा बहुत मन है कि इन बच्चों को भी उनका बचपन मिले... इस दो घंटे की क्लास में कितना कुछ बदल पाएगा पता नहीं। बस उम्मीद है जो कम नहीं होती कि काश... कुछ हो जाए... चमत्कार भी तो होते हैं, और दो टीचर जिन्होंने ठण्म्कण् किया है, उनके साथ वक्त बिता रही है, तो सकारात्मक असर आएगा ही।
‘‘रोशनी’’ बच्चों के कैम्प भी ऐसे ही है जिनमें अभिभावक आँखों की तकलीफ होने पर ध्यान नहीं देते और बच्चों को क्लास में बोर्ड पर लिखा ढंग से दिखाई नहीं दे रहा.... तारा की आई एक्सपर्ट टीम बच्चों की आँखों की जाँच करती है, रिफ्रेक्शन मशीन से एवं नम्बर आने पर तीन दिन बाद उन्हें चश्मे दिए जाते हैं तो सब कुछ क्लियर दिखने लगता है और साथ ही कॉन्फिडेंस भी बढ़ जाता है।
जब भार्गव सा. (तारा के मुख्य संरक्षक) गौरी योजना से लाभान्वित महिलाओं से मिले थे व उनसे पूछा था कि मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। सभी का एक ही जवाब था बच्चों को शिक्षित कर दीजिए तभी उन्होंने ‘‘शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल’’ स्थापना 2013 में की, अभी 103 बच्चे पढ़ रहे हैं। सभी कुछ निःशुल्क है, माताओं पर भार नहीं है। भार्गव सा. ने उनके जवाब का समुचित समाधान कर दिया।
तारांशु का यह अंक जब आपके हाथों में होगा। तब तक स्कूल खुल चुके होंगे, मस्ती की पाठशाला तो निरन्तर चल रही है, एवम् ‘रोशनी’ बच्चों के शिविरों में जाँच एवं साथ ही चश्मा वितरण भी। कुल मिलाकर यूं कहें कि ‘‘माँ’’ को तसल्ली मिल रही है, जरा सी। आप भी छोटा सा सहयोग देकर उस माँ की तसल्ली में अपना हिस्सा दे सकते हैं।
कल्पना गोयल
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