मैं समय हूँ....
बचपन में महाभारत सीरियल देखते थे तो उसका सूत्रधार ‘‘समय’’ था। समय का वो चक्र हर समय चलता रहता था, यह परिकल्पना थी कि महाभारत जैसे महाकाव्य को समय आगे ले जाए क्या खूब सोच थी? आज जब ये लेख लिख रहा हूँ तो तारा संस्थान के समय चक्र को चलते हुए 11 वर्ष हो रहे हैं। वैसे तारा संस्थान का रजिस्ट्रेशन तो वर्ष 2009 में हो गया था लेकिन कार्य करना प्रारम्भ 11 जून, 2011 को हुआ था। जब काम प्रारम्भ किया तो ऐसी कोई सोच मेरे या कल्पना जी के मन में नहीं थी कि क्या होगा कैसे होगा और ना ही ये कोई डर कि तारा नहीं चली तो हमारे साथ काम कर रहे 60-70 लोगों और उनके परिवारों का क्या होगा? वो कहावत है ना कि एक और एक ग्यारह हो जाते हैं तो मैं और कल्पना जी दो जने थे ईश्वर ने ग्यारह लोगों की शक्ति दे दी और साथ ही आदरणीय बाबूजी सा. कैलाश जी ‘मानव’ का आशीर्वाद और मार्गदर्शन था तो और क्या चाहिए?
पहला कदम जब तारा ने आगे बढ़ाया तो मंजिल एक ही दिख रही थी कि एक ऐसा आँखों का अस्पताल खोला जाए जहाँ मोतियाबिन्द के ऑपरेशन निःशुल्क हो सकें। ऐसा इसलिए लगता था कि हमने 2-3 कैम्प लगाए थे ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में और सभी में बड़ी संख्या में रोगी आए थे जिनको ऑपरेशन की जरूरत थी। हालांकि कुछ संस्थाएँ मोतियाबिन्द के निःशुल्क ऑपरेशन कैम्प लगाकर कर रही थी पर ऐसा उदयपुर या आसपास एक भी अस्पताल नहीं था जो पूर्णतया निःशुल्क हो और बीमारी बड़ी थी जो कि लगभग सभी को होती है और इलाज के अभाव में सीधी आँख चली जाती है।
लक्ष्य तो हमने बना लिया था लेकिन उसे पूरा करना आसान नहीं था। मुझे याद है कि आदरणीय एन.पी. भार्गव सा. ने मुझसे कहा था कि दीपेश मैं तुम्हें तुम्हारे साथ काम करने वालों की तीन माह के वेतन के बराबर रकम दे देता हूँ ताकि तुम निश्चिंत होकर काम कर सको। मैं मन-ही-मन प्रसन्न हुआ। लेकिन कल्पना जी ने विनम्रता से प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया कि इससे तो हम कामचोर हो जायेंगे, यदि मानदेय देने में कोई परेशान हुई तो हम तब भार्गव सा. से इस पेटे दान ले लेगें। लेकिन वो दिन है और आज का दिन है उसे पेटे तो मदद की जरूरत ही नहीं पड़ी। आदरणीय भार्गव सा. के इस भाव को हम कभी भी नहीं भुला सकेंगे। 6 अक्टूबर, 2011 का दिन आया और तारा नेत्रालय उदयपुर की शुरूआत हुई। थोड़े से दानदाता आए क्योंकि ‘‘तारा’’ तो अभी ‘‘नन्हा शिशु’’ ही था लेकिन दिल्ली निवासी शमा जी और रमेश जी सचदेवा आए। उन्हें तारा से एक फोन गया था और बस वे आ गए, सुबह आकर दोपहर को वे चले गए और लगभग 7 लाख रुपया तारा संस्थान को दान दिया जो कि उस समय हमारे लिए बहुत बहुत बड़ी राशि थी।
आँखों का एक अस्पताल खोलने की तो हमारी इच्छा थी लेकिन उसके आगे क्या कैसे क्यों हुआ इसका हमें भी नहीं पता? ऐसा लगता है कि अब तक जो भी हुआ वो ईश्वर करवाना चाह रहा था वरना एक वक्त ऐसा था कि हम 60 लोगों का वेतन देने में असमर्थ थे और अभी 5 आँखों के अस्पताल और 3 वृद्धाश्रम चला रहे हैं।
साथ ही अनेक विधवा महिलाओं को प्रतिमाह 1000 रु. नकद और ग्रामीण क्षेत्र के बुजुर्गों को उनके द्वार पर राशन और 150 बच्चों का शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल भी चलने लगे।
कौन सी योजना ज्यादा लाभ दे रही लोगों को, इसका आकलन नहीं कर सकते। आँखों के अस्पताल जहाँ प्रतिवर्ष 20000 लोगों को नेत्र ज्योति दे रहे हैं वहीं 150 बुजुर्ग अपने जीवन की साँझ नए घर (तीनों वृद्धाश्रम) में बिता रहे हैं।
वृद्धाश्रम शुरू होने की कहानी भी रोचक है, सोच हमारी यह थी कि ऐसे बुजुर्ग जो गाँवों में अकेले रहते और उनकी देखभाल करने वाला कोई ना हो उन्हें घर मिल जाए। 3 फरवरी, 2012 को वृद्धाश्रम जब शुरू हुआ तो ऐसे ग्रामीण बुजुर्ग आए भी लेकिन आकर चले गए और सोच के विपरीत शहरी मध्य आय या उच्च आय वर्ग के बुजुर्ग आने लगे। वृद्धाश्रम भरते गए और हम जगह बनाते गए ऐसी कोई जिद या कसम नहीं है कि हमें जो भी बुजुर्ग आए उन्हें मना नहीं करना पड़े लेकिन यथा शक्ति कोशिश कर रहे हैं कि आगे से आगे जगह बनती जाए।
इसी कोशिश के क्रम में बन रहा है ‘‘माँ द्रौपदी देवी आनन्द वृद्धाश्रम’’ जिसका उद्घाटन पहले 16-17 जुलाई, 2022 को रखा था लेकिन कुछ कारण ऐसे बन गए कि इस तिथि में थोड़ा परिवर्तन किया गया है अब यह कार्यक्रम दिनांक 3 व 4 सितम्बर, 2022 को आयोजित होगा। यदि आपने टिकट करवा दिए हों तो कृपया परिवर्तित करावें और यदि टिकट वगैरह नहीं कराएँ हों तो तुरंत से टिकट करावें क्योंकि कोरोना महामारी के बाद यह पहला अवसर है कि हमें आपके स्वागत का सौभाग्य मिलेगा। तो आप हमें यह सौभाग्य अवश्य ही दीजिएगा, यही विनती है।
समय का चक्र चलता आ रहा है आगे भी चलता रहेगा समय के साथ कदमताल करता तारा संस्थान भी चल रहा है और हमारे कदमों की ऊर्जा का संचार आप लोग कर रहे हैं। यही आशा है कि समाज में जो भी अच्छाई ‘‘तारा’’ बाँट रही है वो समय के हर पहर में निरंतर फेलती रहें।
11 वर्षों की अविरल यात्रा के साथी बनने के लिए आप सभी का धन्यवाद।
आदर सहित....
- दीपेश मित्तल
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