मुम्बई में दूसरा दिन
दीपेश जी ने मुम्बई प्रवास के पहले दिन का वृत्तांत बताया और दूसरे दिन का जिम्मा मुझपर डाल दिया। मुम्बई में अगले दिन हमने कुछ दानदाताओं से मिलने का निश्चय किया। समय का अभाव और दूरियाँ संभव नहीं करती कि हम आप सबसे मिल पाएँ लेकिन हम जिस तरफ थे वहाँ के एक दानदाता श्री देशबन्धु कागजी से मिलने उनके दफ्तर गए। कपड़े के निर्यात के व्यापारी श्री कागजी ने उनके व्यस्त समय में से लगभग एक घंटा हमें दिया और बताया कि किस तरह वे विभिन्न सेवा कार्यों से जुड़े हैं। भिवानी हरियाणा के रहने वाले श्री कागजी वर्षों से मुम्बई में व्यवसाय कर रहे हैं और बृजभूमि में कई कार्य मंदिर, अस्पताल, गौशाला के कर रहे हैं। आपने समय-समय पर संस्थान को सहयोग दिया है और हम मिलने गए तो भी भेंट स्वरूप कुछ योगदान तारा संस्थान को दिया।
तारा नेत्रालय, मुम्बई का उद्घाटन जब 12 अक्टूबर, 2013 को हुआ तो उद्घाटन समारोह वाले दिन एक छोटे कद की बुजुर्ग महिला सीढ़ियाँ चढ़कर पधारी और जहाँ ओ.पी.डी. में रोगियों के बैठने की जगह थी वहाँ आकर बैठ गई। उद्घाटन में थोड़ा समय था और वे वहाँ आराम से बैठी थी तो थोड़ा कौतुहल हुआ कि ये कोई दानदाता हैं या आँख दिखाने आई हैं तो उनसे बातचीत की उन्होंने बताया कि मुम्बई सेंट्रल से आई हूँ और अपने पति की स्मृति में कुछ देना चाहती हूँ। उन्होंने अपने पति की स्मृति में तारा नेत्रालय के ऑप्टोमेट्रिस्ट कक्ष को समर्पित करने का निश्चय करते हुए छः लाख रुपये संस्थान को दिए जो कि बहुत बड़ी राशि थी। उसके बाद भी समय-समय पर कितना डोनेशन उन्होंने संस्थान को दिया, जब भी कोई योजना उन्हें दी जाती वे हमेशा कुछ-ना-कुछ सहयोग करती। बाद में तो मैंने हमारे कार्यकर्त्ताओं को मना किया कि उनकी सदाशयता है लेकिन अधिक राशि एक ही दानदाता से लेते रहना गलत बात है। इंदिरा जी के पति श्री नन्द कुमार बी. जाजोदिया बिड़ला जी के पास उच्च अधिकारी थे लेकिन उनके कोई संतान नहीं हुई। श्री जाजोदिया साहब का निधन तो कई वर्ष पहले हो गया था। इंदिरा जी की केयर उनके पति के यहाँ काम करने वाले श्री रामलोचन जी करते थे।
इंदिरा जी के बारे में पता चला था कि वे बीमार हैं तो हम श्री कागजी से मिलने के बाद इंदिरा जी के पास गए। वो कालबादेवी में ब्राह्मण महासभा के अस्पताल में भर्ती थीं। छोटा सा अस्पताल था लेकिन सर्व सुविधायुक्त, आई.सी.यू., वार्ड, रूम सब कुछ। इंदिरा जी की एक बाई थी उन्हीं के पास इंदिरा जी का फोन रहता था उनसे ही उस अस्पताल का पता चला। वहाँ इंदिरा जी होश में तो थी लेकिन कुछ समझ नहीं पा रही थी। एकदम कमजोर हो चुकी इंदिरा जी को मैंने आवाज देकर कहा ‘‘आंटी मैं कल्पना’’ तो उन्होंने हाँ कहा लेकिन उन्हें ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था, वहाँ की डॉक्टर साहिबा से बात की तो उन्होंने बताया कि सोडियम बहुत कम हो गया था बाकी सब ऑर्गन तो ठीक हैं लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा विचार आया कि ईश्वर उन्हें अपने पास बुला रहा है। अभी कुछ समय पहले तो उनका जन्मदिन था तो मैंने उनसे बात की थी, बुलंद आवाज में लाड़ से वो मुझसे बतिया रही थी। मुझे एक बात की तसल्ली थी कि उनकी देखभाल अच्छे से हो रही थी दोनों वक्त 12-12 घंटे की बाइयाँ थीं, केयर करने वाली नर्स थी और सबसे बड़ी बात श्री रामलोचन जी रोज शाम को उनके पास 2-3 घंटे आ जाते थे और रिश्तेदार भी समय-समय पर आते थे।
जब आप तकलीफ में हो और आपको होश ना भी हो तो भी आपके पास कोई हो और वो प्यार से आपकी केयर कर रहा हो तो अवचेतन में कहीं न कहीं संतुष्टि मन को होती ही है और ऐसा ही इंदिरा जी को हो रहा होगा, मैं तो इसी बात से खुश थी।
दो दिन के प्रवास के बाद जब हम वापस उदयपुर आए तो 4-5 दिन में ही पता चला कि इंदिरा जी नहीं रहीं। 87 वर्ष की इंदिरा जी ने कई वर्ष बिना पति के और बच्चों के बिताए और एक आदर्श जीवन जिया उनकी याद लम्बे समय तक हमारे दिलों में रहेंगी। मैं श्री रामलोचन जी को भी धन्यवाद दूँगी जिन्होंने इंदिरा जी को अच्छे से संभाला और देखभाल की। सबसे बड़ी बात ये है कि कुछ रिश्ते ईश्वर बनाता है तभी तो वो इंदिरा जी जिनसे महज कुछ साल पहले मैं मिली लेकिन अपनापन अपार था उनके अंतिम समय से पहले ईश्वर ने उनसे मिलने भेज दिया, वो जहाँ भी होगी मुझे बहुत सा आशीर्वाद दे रही होंगी।
मुझे नहीं पता कि मैं आप सभी के अपार प्यार को निभा पाती हूँ या नहीं लेकिन ये पक्का है कि मेरा प्रयास पूरा रहेगा कि मैं इस योग्य बनी रहूँ कि आपका आशीर्वाद बना रहे...
आदर सहित....
कल्पना गोयल
Join your hand with us for a better life and beautiful future