मुम्बई में एक दिन
पिछले दिनों तारा नेत्रालय, मुम्बई जाना पड़ा था, मायानगरी, देश की आर्थिक राजधानी, सपनों का शहर और भी न जाने क्या-क्या नाम दिए हैं इस शहर को। मुम्बई से मेरा पहला परिचय आज से 25-26 साल पहले हुआ था तब से कई बार वहाँ जाना हुआ कितनी भी व्यस्त जिन्दगी हो लेकिन वहाँ का आकर्षण ऐसा है कि जो लोग वहाँ रहते हैं सब वहीं के हो जाते हैं। मराठी, गुजराती, राजस्थानी, पारसी, दक्षिण भारतीय सारे रंग मिलकर के मानों इन्द्रधनुष सा बना देते हैं। देश में शायद ही कोई ऐसा शहर हो जो इतनी विविधता लिए हो और जब इतने, धर्म इतनी संस्कृति इतने प्रांत के लोग मिलकर कुछ करते हैं तो वह नगर आर्थिक राजधानी कैसे ना होती।
मुंबई में हमारी यात्रा का मकसद था ‘‘तारा नेत्रालय’’ मुम्बई के लिए नया स्थान तलाशना क्योंकि अभी जो तारा नेत्रालय है वो अब छोटा पड़ने लगा है और उसमें Extension की गुंजाइश नहीं हैं तो हमें उसके पास ही एक जगह मिली थी जो बहुत कम किराये में उससे बड़ी थी लेकिन हम जब वो जगह देखने गए तो पता चला कि वो जगह तो किसी और को दे दी गई है। तो फिर हमारे पास समय का जिसका सदुपयोग हमने वर्तमान तारा नेत्रालय में कुछ घंटे बिताकर किया। इससे वहाँ की कार्यशैली को नजदीकी से देखने का मौका मिला, साथ ही वहाँ आए रोगियों से भी बात हुई कि उन्हें कैसा लगता है तारा में ऑपरेशन करवाकर।
तारा नेत्रालय, मुम्बई में एक ही डॉक्टर है डॉ. हितैष नेत्रावली जो रोजाना ओ.पी.डी. भी करते हैं और ऑपरेशन भी। लगभग 1200 वर्ग फीट के क्षेत्रफल में डॉ. कक्ष, ऑप्टोमेट्रिस्ट कक्ष, वार्ड ओ.टी., पेंट्री, रोगियों के लिए बाथरूम व स्टाफ के लिए बाथरूम भी है और हाँ हमारे वहाँ के मैनेजर के लिए भी शायद कुछ 40-50 वर्ग फीट का ऑफिस भी है जिसे हम उदयपुर में तो कोठरी कहें। हमारे डॉ. साहब आते ही ओ.पी.डी. में रोगियों को देखते हैं फिर 2 घंटे बाद वे थियेटर में जाकर रोजाना 8 से 10 ऑपरेशन करते हैं और जब तक वे ऑपरेशन करते हैं तब तक ऑप्टोमेट्रिस्ट रोगियों की प्रारंभिक जाँच कर लेते हैं और फिर डॉ. साहब ओ.टी. के बाद लंच करके बचे हुए रोगियों को देखकर घर जाते हैं। भले ही वे लेट हो जाएं लेकिन वे सारे रोगियों को देखकर ही घर जाते हैं। डॉ. नेत्रावली के कमरे में जब एक घंटे बैठे तो उन्होंने लगभग 10-12 रोगी देखे किसी से हिन्दी में, किसी से मराठी में बात की सबको पूरा समझाया। एक कॉलेज स्टुडेंट की आँख में कुछ गिर गया था और वो एक डेढ़ महीने से परेशान था डॉ. साहब ने उसकी आँख में दवा डालकर सुन्न कर दिया और आँख में चिपकी हुई मच्छर की टाँग निकाल ली। डॉ. को भगवान यूँ ही नहीं कहते हैं ये तुरंत समझ आ गया। वो लड़का इतना परेशान था कि न तो ट्यूशन जा पा रहा था और ना ही पढ़ाई कर पा रहा था। इधर-उधर दिखाया भी लेकिन ‘‘तारा’’ में तो उसे मजा आ गया बिना फीस के समस्या से मुक्ति।
ऑपरेशन वाले रोगियों से मिलने एक महिला रत्नागिरी से आई थी, उनकी बहन उन्हें लेकर यहाँ आई थी। उनका ऑपरेशन हो गया था उनसे पूछा कि इतनी दूर से यहाँ कैसे आए तो उन्होंने बताया कि उनके गाँव में तो हॉस्पीटल है नहीं और पैसे भी नहीं थे, बोरीवली में रहने वाली बहन ने ‘‘तारा’’ में ऑपरेशन करवाया था वो भी घरों में झांडू-पौंछा करती थी उसका भी फ्री ऑपरेशन हो गया तो उसने बहन को भी बुला लिया। उत्तर प्रदेश के 65 साल के राम भरोसे यादव को उनका बेटा यहाँ लाया था जो ऑटो चलाता था। वो भी खुश थे कि बिना पैसे अच्छा ऑपरेशन हो गया और उन्हें एकदम अच्छा दिख रहा था शायद उनका मोतिया ज्यादा पक गया था तभी उनका तुरंत ऑपरेशन किया गया वरना मुम्बई तारा नेत्रालय में हमेशा एक महीने की वैटिंग रहती है मतलब आज दिखाया तो एक माह बाद ऑपरेशन होगा। डॉ. साहब एक छोटे से कक्ष में रोगियों को देखकर उन्हें खुद काला चश्मा भी दे रहे थे और दवाई भी बता रहे थे। बता नहीं सकता कि कितनी तसल्ली मिलती है जब दूर-दूर से उम्मीद लिए आए रोगी खुशी-खुशी जाते हैं। तारा नेत्रालय, मुम्बई की छोटी सी दुनिया 6 सालों में अब तक 10800 से ज्यादा ऑपरेशन कर चुकी है।
तारा संस्थान में वृद्धाश्रम या अन्य योजनाएँ तृप्ति या गौरी जो भी हैं वो सभी करुणा जगाती है लेकिन जब भी तारा नेत्रालय में थोड़ा समय बिताते हैं तो एक बहुत अच्छा Feel आता। यही Feel Good आपको और हमको जोड़े हुए है।
आदर सहित...
दीपेश मित्तल
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