नये आनन्द वृद्धाश्रम भवन के उद्घाटन समारोह की आँखों देखी
19 अप्रेल : तारा संस्थान के सभी वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओं की मीटिंग कल्पना जी के ऑफिस में हो रही है। सभी की ड्यूटी लिस्ट शंकर सिंह और जिम्मी ने तैयार की है सबको समझाया गया कि क्या क्या जिम्मेदारी है और कैसे निभानी है। कालू जी ने एक समस्या बताई कि कुछ लड़के जिनकी होटलों में ड्यूटी थी वे उनके गाँव में शादी के कारण नहीं आ रहे तो अब क्या करें? मुझे थोड़ा गुस्सा आया कि ऐन वक्त पर मना कैसे कर सकते हैं फिर भी कुछ तो करना है क्या करें सब सोच में पड़ गए। अलका जी सुझाव देती हैं कि क्यों ना कुछ लड़कियों की ड्यूटी लगा दें होटलों में... तुरंत सब लड़कियों को बुलाया जाता है हर होटल के लिए दो-दो लड़कियों की टीम बनती है और वे लड़कियाँ भी नयी जिम्मेदारी को पाकर खुश हैं... गीता कल्पना जी से कहती है कि दीदी मैं होटल में रहूँगी पर उद्घाटन के वक्त नयी बिल्डींग पर भी आना है... कल्पना जी इस हिदायत के साथ हाँ कहती हैं कि होटल का काम खत्म हो तभी आना।
अब हम सब नये भवन पर गए... हे भगवान दो दिन बाद उद्घाटन और सफाई के ये हाल... सफाई ठेकेदार को थोड़ी डांट - थोड़ा प्यार से समझाकर बताया जाता है कि सही समय पर काम होवें।
बाथरूमों में काँच लगने हैं। लेबर काँच लेकर जा रही है कि अचानक शंकर सिंह जी चिल्लाते हैं सब देखते हैं कि एक मजदूर के हाथ से काँच गिर गए उसके पैर में कट लग गया, प्रकाश आचार्य को मैंने बोला कि हॉस्पीटल ले जाओ और पट्टी कराओ। कांच लगाने वाले को कहा जाता है कि जितने लग गए ठीक है बाकी 22 अप्रेल के बाद लगाना। वहाँ से सुहालका भवन गए जहाँ सम्मान समारोह होना है स्टेज, टेंट-लाइट आदि सब कैसे होगा सोचा।
20 अप्रेल : सुबह से ही मेहमानों का आना शुरू हो गया, प्रीतम सिंह जी पंचकुला से, कुसुमलता जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, संबलपुर (उड़ीसा) से कुमुद जी शर्मा के साथ 5 गेस्ट दिल्ली से आए।
कल्पना जी, मैं और सभी वरिष्ठ साथी सुबह से ही नये भवन में हैं साफ सफाई होने के बाद ऐसा लग रहा कि भवन थोड़ी सही दशा में है। थोड़ा फर्नीचर बाकी था वो आ रहा है। गद्दे सब आ गए लेकिन नीचे हॉल में ही पड़े हैं। चौहान सा. सारी लेबर से गद्दे कमरों में भिजवा रहे हैं तभी सूचना मिली कि तारा के मुख्य संरक्षक श्री एन.पी. भार्गव सा. और श्रीमती पुष्पा भार्गव एयरपोर्ट से तारा के पुराने भवन सेक्टर 6 पहुँच गए हैं। मैं और कल्पना जी गाड़ी से भागते हैं। उनसे मिलना हमेशा उतना ही सुखद होता है जैसे परिवार के वरिष्ठतम सदस्य से मिलना हो। उन्हें कहते हैं भोजन कर लीजिए लेकिन वो मना कर देते हैं और कहते हैं कि अब होटल में रेस्ट करेंगे। वापस सेक्टर 14 नये भवन में आते हैं सोफे लग रहे, घास और पौधे लग रहे, गद्दे लग रहे लेकिन ये क्या परदा नहीं आया एक भी। अंकुर जी को शंकर सिंह जी फोन करते हैं वो कहते है कि अभी 5-7 दिन का समय लगेगा... ओ... हो... मैं गुस्सा करता हूँ... कल्पना जी भी उन पर चिल्लाते हैं कि जब सब तय था तो देर क्यों... वो कहता है कि मैं दिनांक भूल गया... अब कह रहा जैसे भी हो कुछ अरेंजमेंट तो कर दूँगा चाहे 21 अप्रेल के रात भर काम करना पड़े।
21 अप्रेल : सुबह से मेहमानों का तांता लग रहा है मन में विचार आया कि आदरणीय डॉ. कैलाश जी ‘मानव’ ने उदयपुर को कितना धन्य बना दिया जो इतने सारे लोग हमारी धरती पर आते हैं। हमारी होटल टीम गीता, प्रियंका, सीता जी, राधा, डिम्पल जी, नीता जी सुबह 7.30 बजे सुन्दर सा तैयार होकर जुट गई हैं मेहमानों को होटल में रूम एलाट करने के लिए। लगभग 150 मेहमान 21 अप्रेल सुबह तक पधार चुके हैं। सब अपने-अपने रूम में चाय पीकर रेस्ट कर रहे हैं। नाश्ते के बाद थोड़ा घूमना फिरना फिर लंच था मैं और कल्पना जी नए भवन पर गए। पौद्दार आंटी कुछ बाइयों को लेकर नये गद्दों पर चद्दर बिछा रही हैं, गार्डन में फूलों के पौधे, क्रिसमस ट्री, फर्न, क्रोटन के गमले लग रहे हैं। आजकल तो गार्डन भी इंस्टेंट (त्वरित) हैं दो दिन में ऐसा बन गया मानों महीनों से लगा रहे हो। लंच होटल मुकुंद विलास में है हम भी वहीं है आलू की सब्जी, कड़ी, देशी घी की लप्सी, केरी का पानी सब मजेदार... लेकिन आलू की सब्जी खत्म हो गई अब क्या करें कैटरिंग वालों को बोला तो बोले हमने तो पूरी बनाई थी... और बनाते हैं। मैं और कल्पना जी मेहमानों का थोड़ा ज्यादा ध्यान रखने लगते हैं... मन में थोड़ा डर भी होता है ना कि कोई पहली बार आए हों और नाराज न हो जाए (वैसे ऐसा होता कभी नहीं है. हमारी कई कमियों को भी आप लोग ढक देते हैं)। खाने के बाद कुछ मेहमान सुस्ताने चले जाते हैं कुछ सहेलियों की बाड़ी, फतेहसागर घूमने। शाम 7 बजे सुन्दर कांड का पाठ होता है लोग झूम झूम कर पाठ करते हैं हमें भी बहुत खुशी होती है कि हमारे निमंत्रण पर आए सब लोग एन्जॉय कर रहे हैं।
22 अप्रेल : आखिर वह दिन आ ही गया जिसका इंतजार बेसब्री से था दिल में थोड़ी सी धड़कन थी क्योंकि तारा का पहला कार्यक्रम था जिसमें 450 के आस पास मेहमान आ रहे थे लेकिन ईश्वर ने अब तक सही किया तो आगे भी करेगा।
बिल्डिंग सजधज कर तैयार खड़ी थी फूलों के तोरण इसकी शोभा बढ़ा रहे थे। हम सब सुबह सुबह वहीं थें... परदे वाले ने जैसे तैसे जुगाड़ कर थोड़े परदे लगाए थे बाकी सब ठीक था। होटल में ठहरे मेहमानों का नाश्ता होटल में चल रहा था नये भवन पर कार्यकर्त्ताओं के नाश्ते की भी व्यवस्था थी।
आदरणीय मानव सा. ने कहा था कि मैं तो सबसे पहले आ जाऊँगा तो वे ठीक 10 बजे बिल्डिंग पर आ गए। मुझे, कल्पना जी और पूरी टीम को ढेर ढेर आशीर्वाद दिए हमने उनके बैठने की व्यवस्था हॉल में की थी लेकिन वे बोले मैं तो बाहर टैंट में बैठूंगा... धूप है तो क्या मेहमानों का स्वागत तो बाहर से ही करूँगा। उनके आगे तो हमारी क्या चलती। वो बाहर बैठे, थोड़ी बात हुई और मेहमानों की पहली बस आ गई। सबका तिलक और माला से स्वागत बिल्डिंग के बाहर शामियाने में हुआ और फिर सब लोग मानव सा. के पास आ गए मिलने धक्का मुक्की सी होने लगी... हाथों में डोनेशन का चैक लेकर सब की इच्छा थी कि वे मानव सा के हाथों में चैक दें।
दान देने की होड़ा होड़ी, मुझे लगता है कि ऐसा शायद ही कहीं विश्व में होता हो। मानव सा भी तो बहुत ऊर्जा वाले हैं सभी लोगों से उसी जोश से मिले। सत्यभूषण जी जैन सा सीधे एयरपोर्ट से आए, भार्गव सा. - पुष्पा जी, कुसुम जी गुप्ता सब आ गए और समय हो गया तो मैंने धीरे से मानव सा को कहा और वे सभी के साथ फीता काटने पहुँच गए।
मंत्रोचार, दीप प्रज्वलन, नारियल वधार कर फीता काटा गया... एक सुन्दर सा भवन समर्पित किया उन बुजुर्गों के लिए जिनके अपने उतने अपने ना हुए। अलग-अलग तल व कक्षों का उद्घाटन उनके लिए दान देने वाले दानदाताओं के हाथों हुआ।
जिनमें ओ.सी. जैन सा., आर.के. जैन सा, भीमसेन जी मित्तल सा., लता जी भाटिया भी शामिल थे।
सभी बाहर से आए अतिथियों को भवन दिखाकर सम्मान समारोह हेतु पास ही सुहालका भवन भेजा। कल्पना जी को उदयपुर से आए मेहमानों का भवन पर स्वागत करने के लिए छोड़ मैं भी सुहालका भवन रवाना हुआ। वहाँ मंच प्रशांत जी ने संभाला था, मानव सा., सत्यभूषण जी और अन्य सम्मानित मेहमान मंच पर बैठे। शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल के छोटे छोटे बच्चों ने घूमर नृत्य किया और एक वृद्ध की व्यथा पर मुकाभिनय किया जिसने मन को छू लिया। बीच में बजते गीत संगीत के साथ सम्मान समारोह शुरू हुआ सब अतिथियों ने अपने हृदय के उद्गार भी व्यक्त किए, हमारे प्यारे मम्मीजी यानि कि श्रीमती कमला देवी ने भी निश्छल प्यार से भरे शब्दों में हमें आशीर्वाद दिया। उसके बाद भोजन, हम लोग तो खाने में लेट हो गए तो भी श्रीखण्ड, आमरस और कचौड़ी तो छक कर खाई।
दोपहर में थोड़े से आराम के बाद रात में सुहालका भवन में ही डाँडिया था। संगीत की धुन पर माता की आराधना के साथ नाचना, अद्भूत सा होता है। इस डाँडिया में बच्चे बूढ़े सभी अपने सारे संकोच छोड़कर खूब नाचे। कल्पना जी तो शुरू से अंत तक नाचती रही। सबकी थकान उतर गई डाँडिया से। फिर भोजन और आराम।
23 अप्रेल : ये 3-4 दिन तो उड़ से गए और हमारे मेहमानों की वापसी का समय आ गया लेकिन इतनी दूर दूर से सब श्रीनाथ जी के द्वार पर आए तो दर्शन किए बिना कैसे जाने देते सो नाश्ते के बाद सबको नाथद्वारा और एकलिंगजी दर्शनों हेतु भेजा। वापस आए तो साथ में भोजन लिया और एक हॉल में गद्दे लगाए थे वहीं सब बैठ गए। पुराने जमाने की शादियों के दिन याद आ गए जब सब धर्मशाला के एक दो हॉल मे रूक कर धमाल करते थे जो भी मेहमान एक दो दिन से हमारे साथ थे उनसे मोह सा हो गया था लेकिन सबको जाना था अपने अपने काम में वापस सो बस सबसे विदा ली। आदरणीय बाऊजी सा (मानव सा.) ने सिखाया है सो सबको भाता (सफर के भोजन पैकेट) देकर विदा किया... जल्द फिर मिलने के आश्वासन के साथ।
दीपेश मित्तल
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