परोपकारी श्री ओ.सी. जैन सा.
नारायण संस्थान और फिर तारा संस्थान दोनों में मिलाकर देखूँ तो मुझे 16 वर्ष हो गए इस क्षेत्र में काम करते हुए और मुझे नहीं लगता कि इससे बेहतर कोई काम हो सकता है क्योंकि जिन लोगों को यहाँ से फायदा हो रहा है उनका प्यार तो मिलता ही है लेकिन जो सबसे बड़ा सुख है वह हमारे दानदाताओं से मिलने का। आप सोचिए हर धर्म हर समाज में ‘‘परहित’’ की बात कहीं गई है लेकिन वाकई में परहित करने वालों का प्रतिशत बहुत बड़ा नहीं है और इस छोटे से प्रतिशत के अच्छे लोगों का बहुत बड़ा प्रतिशत हमारे सम्पर्क में रहता है, हमें लाड़ करता है हमें आशीर्वाद देता है और हमेशा कहता है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। मुझे नहीं लगता कोई भी ऐसा काम होगा जिसमें लोग बिना कुछ लिए पैसा दें और साथ में दुआएँ भी दें। तो ऐसे ही एक और महानुभाव के बारे में बताना चाहूँगा। तारा संस्थान के नये वृद्धाश्रम का काम शुरू हुआ तो बहुत से लोग जुड़ने लगे ऐसे ही एक महानुभाव श्री ओ.सी. जैन सा. हैं। रतलाम के रहने वाले जैन सा. एक शिक्षक रहे हैं और 43 वर्ष तक आपने अध्यापन का कार्य किया। श्री जैन सा. ने जयपुर के स्वामी आनन्दनन्द से योग शिक्षा प्राप्त की और वे अभी लगभग 80 वर्ष की आयु में भी योग और प्राकृतिक चिकित्सा सिखाते हैं। आपने इस क्षेत्र में 15000 से अधिक विद्यार्थियों को प्रशिक्षित भी किया जो औरों को लाभ दे रहे हैं। इनमें से बहुत से विद्यार्थी ऐसे हैं जो खुद रोगी थे और बाद में ठीक होकर वो योग व प्राकृतिक चिकित्सक बने। श्री जैन सा. की पत्नी का अभी कुछ समय पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है इतने लंबे समय के साथी का बिछड़ना दुःखद होता है लेकिन वे इस दुःख के साथ भी अपना सामाजिक कर्तव्य पूरी तरह निर्वहन कर रहे हैं। आप सबको निश्चित ही यह सामान्य सा जीवन लग रहा होगा और है भी लेकिन श्री जैन सा. जो असाधारण कार्य कर रहे हैं वो बहुत ही कम लोग कर पाते हैं। आपने बताया कि आप अपने जीवन में जो भी बचत होती थी उससे थोड़ी-थोड़ी जमीन रतलाम में ही ले लेते थे। समय बीतता गया तो जमीन की कीमतें बढ़ने लगी लेकिन उन्होंने अपना सर्वस्व समाज को समर्पित कर दिया। रतलाम में लगभग 4 बीघा जमीन आपने जैन समाज को दी। जैन तीर्थ विकास के लिए, जिसका मूल्य करोड़ों रुपये में था, रतलाम में योग भवन बनवाने में आपने खुद भी योगदान दिया और बहुत से लोगों से दिलवाया भी। तारा संस्थान के निर्माणाधीन वृद्धाश्रम में एक हाल, एक कक्ष और भूमि के लिए भी सहयोग किया। सादगी से भरे हुए श्री जैन सा. उदयपुर आए तो विनोद में कहा कि ‘‘आपके कार्यकर्त्ता बहुत स्मार्ट हैं वो हमसे पैसा निकलवा लेते हैं।’’ लेकिन हकीकत यह है कि श्री जैन सा. को पैसा देना होता है इसलिए वे देते हैं, बहाना बना बना कर देते हैं कारण निकाल कर देते हैं। यकीन ही नहीं होता कि ऐसे लोग भी होते हैं जो अपनी मेहनत की कमाई समाज के लिए देने का बहाना ढूँढ़ते हैं। यह लेख किसी को प्रेरित करने के लिए नहीं है, बस एक आदर भरा आभार है श्री जैन सा. और उन जैसे ही हमारे सारे दानदाताओं का जो देने का बहाना बनाते हैं बिना कुछ पाने की इच्छा के।
आदर सहित...!
दीपेश मित्तल
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