प्राण - निष्प्राण
कुछ माह पहले मेरा जन्मदिन आया सामान्यतया हम लोग तारा में जन्मदिन पर स्टाफ से उपहार लेने से बचते हैं सोच यही है कि किसी प्रकार के होड़ा-होड़ी उपहार देने में ना हो जाये और ऐसा हो तो हमारे लिए कुछ अचकचा हो जाता है। लेकिन संस्थान में नए जॉइन किए विवेक जी एक उपहार ले आए मैंने बहुत मना किया लेकिन वे ना माने और कहा कि पता नहीं था सो ले लेवें अगली बार नहीं लाऊँगा और यह उपहार तो सिर्फ एक गमले में पौधा है। ज्यादा आग्रह पर लेना पड़ा और वो पौधा मेरे ऑफिस में विराजमान हो गया।
ऑफिस में पहले से ही छोटा सा Artificial पौधा मेरी टेबल पर है जो कि देखने में बिलकुल वास्तविक है। वो पौधा कल्पना जी उनके और मेरे ऑफिस के लिए लाए थे। एकदम असली जैसा जिसे गीले कपड़े से साफ करो और चमकने लगता है और दूर से देखने पर कोई कह भी नहीं सकता कि नकली है। दोनों पौधे जब साथ में देखे तो अपने आप ही ये ख्याल आया कि जब नकली पौधा भी दिखने में असली जैसा ही है तो फिर असली की जरूरत ही क्यों?असली पौधे को संभालना, पानी, मिट्टी देना, धूप में रखना, ना जाने कितने झंझट।
काफी दिन निकल गए दोनों पौधे ऑफिस में शौभायमान रहने लगे। कभी मैं तो कभी हमारे ऑफिस की गंगा बाई जी उसमें थोड़ा पानी पिला देते। एक दिन दोनों पौधे साथ में रखे थे मैंने देखा कि असली पौधे में कुछ नई पत्तियाँ आ रही हैं। मन में एक अच्छा सा एहसास हुआ और उसी वक्त मुझे उस पुराने विचार को ध्वस्त करने वाला विचार आया कि प्राण और निष्प्राण में हमेशा प्राण सुख देगा क्योंकि जहाँ भी जीवन है उस जीवन के साथ बहुत सी चीजें जुड़ी होगी। सुख-दुःख, अच्छा-बुरा ये भाव तो होंगे ही समय के साथ जीवित प्राणी में कई उतार-चढ़ाव शारीरिक रूप में भी आयेंगे और ये सब ना हो तो किसी के कुछ भी मायने नहीं है। जीवन एक दिन खत्म भी होगा और निर्जीव वस्तु सदा के लिए हो सकती है, पर आकर कुछ जाएगा तभी तो नया भी कुछ होगा।
आप और हम मिलकर जो भी कर रहे हैं वो ‘‘प्राण’’ है। तारा के वृद्धाश्रम हों या हॉस्पीटल सभी जीवंत हैं। सभी में नई नई पत्तियों के रूप में नये नये लोग आते हैं। तारा नेत्रालय सिर्फ बिल्डिंग नहीं हैं इनमें हजारों लोग आते हैं और इलाज करवा कर जाते हैं। वृद्धाश्रम भी मात्र मकान नहीं होकर घर है जहाँ कई-कई लोग परिवार की तरह से रह रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले डूँगरपुर कस्बे के पूर्व सभापति, श्रीमती कृष्णा शर्मा आनन्द वृद्धाश्रम, उदयपुर में आए थे और उन्होंने ये बताया कि डूँगरपुर में उन्होंने एक भवन वृद्धाश्रम के लिए बनाया पर लोग रहने ही नहीं आए। हम थोड़ा भी इधर-उधर देखें तो परमार्थ बने कई भवन या धर्मशालाएँ खंडहर हो जाते हैं लेकिन ‘‘तारा’’ को ईश्वर ने ‘‘प्राण’’ दिए हैं तभी वृद्धाश्रम की हर बिल्डिंग भर जाती है और फिर हम नई बिल्डिंग बनाने लगते हैं। ये भवन तो गमला भर हैं इसके पौधे के लिए मिट्टी-पानी-हवा-धूप सब कुछ आप लोग हैं और देखिए ना जैसे प्रकृति में इन सब की कमी नहीं वैसे ही ‘‘तारा’’ में भी सब कुछ है तभी तो 10 साल पहले 5 बुजुर्गों से शुरू होकर लगभग 150 बुजुर्ग संस्थान के वृद्धाश्रमों में रह रहे हैं और 50 मोतियाबिन्द ऑपरेशन प्रतिमाह से शुरू हुआ सफर 2000 ऑपरेशन प्रतिमाह तक पहुँच गया और निरंतर चल रहा है।
इस पूरी यात्रा में कोरोना की दो लहर भी आ गईं लेकिन आप सभी ने इस पौधे को मुरझाने नहीं दिया। वैसे तो ‘‘तारांशु’’ या टी.वी. के माध्यम से हम आपसे मिलते रहते हैं पर तारा के फूलों की महक के लिए आप कभी भी हमारे किन्हीं हॉस्पीटलों में या वृद्धाश्रम में पधारें आपको आपके द्वारा संचारित ‘‘प्राणों’’ की अनुभूति निश्चित ही होगी।
आदर सहित....
- दीपेश मित्तल
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