साहस
तारांशु का हर अंक यों तो बहुत विशेष होता है लेकिन यह अंक थोड़ा अधिक विशेष है क्योंकि हम बात कर रहे हैं ‘‘हिम्मत’’ की, ऐसी हिम्मत जो अपने ‘‘स्वयं’’ को बनाए रखने की है। मैं भी शायद इतनी हिम्मतवर नहीं हूँ जितने ये लोग, जिनके बारे में बताया गया है वो हैं या और भी लाखों करोड़ों लोग होते हैं, लेकिन इन सब से प्रेरणा तो ली ही जा सकती है और ये ही मैं भी करती हूँ जीवन तो सीखने की सतत प्रक्रिया है और मैं भी इन हिम्मतवर लोगों से बहुत कुछ सीखती हूँ।
जो काम कर रहे हैं, उसमें ऐसे साहसी लोग अकसर सामने आते रहते हैं। छोटी-छोटी लड़कियाँ जिनके पति नहीं रहे और वे सारी दुनिया से लड़कर अपने बच्चों का लालन-पालन कर रही हैं, कुछ को हम अपने यहाँ कॉल सेन्टर में नौकरी पर रख लेते हैं, ऐसी बच्चियाँ जिन्होंने जिन्दगी में सोचा ही नहीं कि उन्हें काम करना पड़ेगा, बस माता-पिता की इच्छा से शादी कर ली और लगा की जीवन पति के सहारे कट जाएगा लेकिन जैसा सोचते वैसा होता तो जीवन बहुत अच्छा होता। पति नहीं रहा तो सारे रिश्ते बदल गए और जिन्दगी की लड़ाई शुरू हो गई लेकिन वो लड़ रही है इस दुनिया से, इस समाज से सबका लक्ष्य सिर्फ एक ही है कि बच्चों की अच्छी परवरिश हो जाए। कई समाजों में अभी भी विधवा महिला की दूसरी शादी नहीं होती तो ये बच्चियाँ अपनी सारी खुशियाँ न्योछावर कर साहस से खड़ी हैं।
ऐसा ही साहस बहुत से हमारे बुजुर्गों ने दिखाया है ‘‘लोग क्या कहेंगे’’ इस सोच को ठुकराकर, छोड़ दिया वो घर, जहाँ बच्चे ने जिल्लत दी... यह हमारे समाज की विडंबना है कि अपने बच्चों के लिए हर व्यक्ति उधार लाकर भी खर्च करता है लेकिन माता-पिता जो बुढ़े हो गए हैं उनके लिए कुछ भी करना व्यर्थ लगता है कुछ हकीकतें तो ऐसी भी सामने आई कि लगा माता-पिता तो उस कबाड़ की तरह हो गए जिसे रद्दी वाले को दे दिया जाये लेकिन समाज का डर की ‘‘लोग क्या कहेंगे’’ ने उनको ऐसा नहीं करने दिया और माता-पिता की सेवा का मुखौटा पहने अपने जन्मदाता को तकलीफ देते रहे। घर छोड़ना कभी भी आसान नहीं होता लेकिन फिर भी कितने ही ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्होंने साहस किया और अभी सुकुन से रह रहे हैं।
एक माँ तो ऐसी देखी थी जिनका बेटा मोतियाबिन्द का ऑपरेशन ही नहीं करवा रहा था और उन्हें दिखना कम होता जा रहा था तो हिम्मत की और वे हमारे कैम्प की गाड़ी में बैठकर अपने आप आ गई। वे साहस न करती तो आँख गवाँ देती। अच्छी तरह पता है कि साहस की बात करना बहुत आसान है... ‘‘साहस’’ करना बहुत ही मुश्किल है। फेसबुक या वाट्सऐप पर लोगों के मैसेज पढ़ती हूँ जिनमें पाकिस्तान या चीन से युद्धोन्माद की बातें होती हैं तो अजीब लगता है क्योंकि इस तरह की बात करने वालों में किसी के बच्चे फौज में नहीं होते। निश्चित रूप में फौजियों वाला वो साहस तो अद्वितीय होता है जिसमें पता है कि हम हो न हो पर देश बचा रहे।
वैसा साहस तो नहीं लेकिन आत्मसम्मान को तो बचाने का साहस रख ही सकते हैं। इस कोशिश में प्रेरणा लेने और देने के प्रयास में कुछ हिम्मतवर हकीकतें तारांशु में दी है... आपको पसंद आएगी।
आदर सहित...!
कल्पना गोयल
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