तारा नेत्रालय के ओ.पी.डी. में एक दिन
सुबह 8 बजे तारा नेत्रालय, उदयपुर खुल जाता है एवं खुलते ही रोगियों की भारी आवाजाही प्रारम्भ हो जाती है। इनमें कई तरह के रोगी हैं। प्रथम वे जो पहली बार जाँच करवाने आए हैं वह ग्रामीण क्षेत्र अथवा स्थानीय शहरी भी हो सकते हैं। दूसरे वे स्थानीय जो अगले दिन मोतियाबिन्द ऑपरेशन की तैयारी हेतु बुलाए गए होते हैं। तीसरे वे स्थानीय जो सीधे उसी दिन होने वाले ऑपरेशन के लिए आते हैं।
अगर आप ओ.पी.डी. में जाएं तो पता चलेगा कि जो प्रथम बार आए हैं वह सर्वाधिक होते हैं एवं रिसेप्शन काउंटर पर अधिक वही लोग जानकारी प्राप्त करने हेतु इकट्ठे होते है। अब जो प्रथम बार जाँच के लिए आए है उनका रजिस्ट्रेशन फार्म भर कर क्रम में बिठाया जा रहा है। उधर जिनका नम्बर आ गया है उनको माइक पर पुकार कर ऑप्टोमिट्रिस्ट रूम में भेजा जा रहा है। जहाँ बारी-बारी से प्रत्येक रोगी के विजन की जाँच अत्याधुनिक मशीनों पर की जा रही है। जिनकी विजन टेस्ट हो चुका है उनको क्रम से डॉक्टर के पास भेजा जा रहा है जहाँ से तीन अवस्थाओं में होकर मरीज गुजरता है।
प्रथम : जिनको मामूली समस्या है उन्हें दवाइयाँ आदि लिखकर भेजा जा रहा है। दूसरा : पी.एम.टी. से चश्मे के नम्बर निकालकर उन्हें अगले दिन वास्तविक नम्बर देने के लिए आने की सलाह देकर भेजा जा रहा है। सुबह 10 बजे तक ओ.पी.डी. में भारी भीड़ जमा हो चुकी है अधिकाश रोगी ग्रामीण क्षेत्रों से आए लगते हैं लेकिन शहरी भी काफी संख्या में हैं। लोग यत्र- तत्र-सर्वत्र आ जा रहें। कोई कोई जाँच हो चुकने के बाद अस्पताल से बाहर जा रहा है तो आवाजाही लगातार चल रही है। इधर जिन लोगों को प्रारम्भिक जाँच के बाद दवाई डाली गई थी उन्हें घंटा भर गुजर जाने के बाद पुनः डॉक्टर के पास भेजा जा रहा है। तो एक अन्य रूम में जिन लोगों के मोतियाबिन्द पाया गया है, उन लोगों की बी.पी., शुगर आदि की जाँच कर उन्हें ऑपरेशन की तारीख दी जा रही है। कुछ अन्य स्थानीय मरीज ऐसे भी हैं जिनका ऑपरेशन आज ही होना है, उनकी बी.पी. व शुगर की प्रीपेरेशन रूम में जाँच की जा रही है। अगर सब कुछ नार्मल पाया गया है तो उन्हें वार्ड में भर्ती कर ऑपरेशन कर दिया जाएगा। यह तीसरी अवस्था के मरीज हैं पहले जिन्हें मामूली समस्या थी, दूसरे जिनके नम्बर निकालने थे। अब एक अन्य समूह ऐसा भी है जिनका एक दिन पहले ऑपरेशन किया जा चुका है उनकी पट्टी इत्यादि खोल कर काले चश्मे पहनाए जा रहे हैं। साथ-ही-साथ छुट्टी के बाद किस प्रकार की सावधानियाँ बरतनी है उसकी काउंसलिंग की जा रही है। दवाइयाँ आदि देकर उनको 5 दिन व 1 महीने के बाद फॉलो-अप हेतु आने की सलाह दी गई है। इधर भीड़ में कुछ 5 दिन के व कुछ 1 महीने के फॉलो-अप वाले मरीज भी हैं जिन्हें प्रारम्भिक जाँच के बाद सीधे डॉक्टर सा. के पास भेजा जा रहा है। 1.30 से 2.00 बजे का लंच टाइम होने की वजह से मरीजों की एक रूम से दूसरे रूम की आवाजाही थम गई है। 2 बजे बाद डॉक्टर और स्टॉफ पुनः सक्रिय होकर पूर्ववत् प्रक्रियाएँ जारी रखे हुए है। धीर-धीरे ओ.पी.डी. की भीड़ कम होती जा रही है। 4 बजे तक अंतिम जाँच के पश्चात् लगभग सारा ओ.पी.डी. खाली हो चुका है। वहीं अचानक वार्ड से एक-एक करके छुट्टी पाए लोग बाहर जा रहे हैं। उधर बाहर क्या देखते हैं कि तारा संस्थान की एम्बुलेंस आकर रुकी है एवं ग्रामीणों का एक समूह नीचे उतरकर अस्पताल में प्रवेश कर रहा है। ये वे मरीज हैं जो आस-पास के शिविरों से चयनित कर अगले दिन ऑपरेशन के लिए लाकर भर्ती किए जा रहे हैं। इस प्रकार तारा नेत्रालय के ओ.पी.डी. का एक और व्यस्त दिन समाप्त हुआ। लेकिन व्यस्तता में ही तो मस्ती है ऐसा हमारे सारे हॉस्पीटल स्टाफ और डॉक्टर सा. सोचते हैं तभी तो बिना टेंशन हंसते मुस्कराते ये सभी उन लोगों की आँखों में रोशनी ला रहे जिनके लिए ये जीवन अंधकारमय हो जाता तो भी सिर्फ इसलिए कि थोड़े पैसों की कभी थी और हाँ ये पैसा आपने भेज दिया।
दीपेश मित्तल
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