Teacher-Parent Meeting
Posted on 20-Aug-2018 12:20 PM
टीचर-पेरेंट मीटिंग
आजकल की शिक्षा व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है टीचर-पेरेंट मीटिंग यानी कि माता-पिता का बच्चों के टीचर से मिलना आमतौर पर ये परीक्षाओं के बाद होती है जिसमें बच्चों के रिजल्ट व कॉपियाँ दिखाने के साथ शिक्षक बच्चों के माता-पिता से मिलते हैं और उनकी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करते हैं।
शिक्षर भार्गव पब्लिक स्कूल में भी एक पैरेंट टीचर मीटिंग आयोजित की गई लेकिन ये थोड़ी अलग थी इसमें उन विधवा महिलाओं को बुलाया जिनके बच्चे इस स्कूल में निःशुल्क पढ़ रहे हैं। इस मीटिंग का मकसद था कि बच्चों की जिन्दगी में शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल के होने से क्या बदलाव आया है जिससे कि हम यह म्अंसनंजम कर सकें कि स्कूल के तौर पर हमें क्या बेहतर करना चाहिए।
माता-पिता की आर्थिक स्थिति कैसी भी हो वे अपने बच्चों को अच्छी-से-अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं सोच यही होती है कि हमारा बच्चा वो तकलीफें ना देखे जो हमने देखी हैं लेकिन ये जो विधवा महिलाएँ या बच्चियाँ हैं (क्योंकि इनमें अधिकतर की उम्र बहुत ही कम है) उनकी तकलीफों का आप और हम अंदाज भी नहीं लगा सकते हैं। कम उम्र में इनकी शादियाँ हो गई और बच्चे भी हो गए, घर से कभी निकली नहीं, कमाने वाला पति ही था और वो अचानक चल बसा। जमा पूंजी या तो थी नहीं और अगर थी तो पति की बीमारी या मौत के बाद के क्रियाकर्म में खर्च हो गई। पति नहीं है तो ये छोटी-छोटी लड़कियाँ अपने बच्चों को कैसे पालें? समाज और जाति की रूढ़ियाँ ऐसी कि दूसरी शादी की सोच भी नहीं सकती, ये हमारे यहाँ की विडम्बना है कि एक ओर समाज का वो वर्ग है जो हर तरह से समर्थ है उनपर समाज की जाति की, धर्म की कोई रूढ़ियाँ नहीं हैं वे जब चाहें जो कर सकते हैं धर्म और जाति के ठेकेदार भी उनपर कोई बंदिश नहीं लगाते और दूसरी तरफ ये 20-22 साल की विधवा लड़कियाँ पूरी जिन्दगी अपनी सारी इच्छाओं उन बच्चों पर न्योछावर कर देती है जो बाद में ये समझेंगे भी कि नहीं कि मेरी माँ ने मेरे लिए क्या किया। ये वो लड़कियाँ हैं जो इतना दुःख अपने में समेटे है कि जरा सा कुरेदने पर रो पड़ती हैं। ऐसी लड़कियाँ के लिए शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल एक उम्मीद है जहाँ वो अपने बच्चों को पूरी तरह निःशुल्क पढ़ा सकती है, ऐसा स्कूल जहाँ किताबें बस्ता सब मिलता है और स्कूल में आना जाना भी निःशुल्क।
ये सब माँएँ जब बच्चों के साथ स्कूल आईं तो उनकी एक ही सोच थी कि मेरे बच्चे कुछ बन जाए उनसे जब पूछा गया कि इस स्कूल का क्या महत्त्व है तो लगभग सबका एक ही जवाब था कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो रहा है बच्चे नृत्य, नाटक, व्यायाम, कविता सबमें हिस्सा लेने से काफी एक्टिव हुए हैं। कुछ माँओं ने तो बताया कि अड़ोस-पड़ोस के समर्थ बच्चों के कारण थोड़ी हीन भावना उनके बच्चों में थी वो चली गई उनमें कॉन्फिडेंस आ गया है। अब वे मुहल्ले में समाज में भी प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। सभी बहुत खुश थी कि बच्चों की नींव सही हो रही है।
अभी शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल 8वीं तक ही है और हम प्रयास करेंगे कि इसे आगे क्रमोन्नत करते रहें लेकिन जो भी प्रयास अभी हो रहा है वो संतोषजनक है और अपने स्कूल से निकला बच्चा आगे किसी भी स्कूल में जाए अपनी पहचान बनाएगा ही। मैं विशेषतौर पर आदरणीय एन.पी. भार्गव सा. को धन्यवाद दूँगी जिनके कारण यह स्कूल संभव हो पाया, जिन्होंने इस स्कूल की सोच दी और चलाने में सहयोग भी। आप सब दानदाता जो भी इस काम में अपनी मदद दे रहे हैं वो भी हमारे देश की बुनियाद मजबूत कर रहे हैं।
आदर सहित...
कल्पना गोयल