तीन सखियाँ..... सुख़ वृद्धाश्रम का
आनंद वृद्धाश्रम में एक नज़ारा अकसर देखने का मिलता है वो है तीन बुजुर्ग महिलाएँ एक कमरे में बतियाते हुए दिखना। ये तीन महिलाएँ हैं राजी बाई, बशीरन बाई और मोहन कुँवर। राजी बाई नीमच की रहने वाली है और अग्रवाल परिवार से हैं । राजी बाई को पार्किन्संस बीमारी है जिससे उनका गर्दन के उपर वाला हिस्सा लगातार हिलता रहता है और वे लगभग बिस्तर पर ही हैं और खाना भी बिस्तर पर ही खाती है केवल दीवार के सहारे से वे बाथरूम तक नित्यकर्म के लिए जाती हैं। बशीरन बाई मुस्लिम है और एकदम कमर झुकी हुई है लेकिन आवाज इतनी बुलंद की वे तीसरी मंजिल से आवाज देती हैं तो ळतवनदक थ्सववत पर सुनाई देता है, वे आनंद वृद्धाश्रम की दंबग हैं। श्रीमती मोहन कुँवर राजपुत हैं और बहुत ही सौम्य और सुंदर महिला है । वे बहुत ही नरम मिजाज की हैं छोटी छोटी बातों पर उनकी आखों में आंसू आ जाते हैं। अकसर यह देखते हैं कि राजी बाई पंलग पर लेटी हैं, बशीरन बाई पैर उपर कर उनके पास प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठी है और मोहन कुँवर जी पास वाले बेड पर बैठी हैं। उनको इस तरह से बैठे देखकर लगता है कि आनंद वृद्धाश्रम सफल है क्यांकि तीन अलग प्रदेशों से आई तीन अलग जाति-धर्म की महिलाए दोस्त बन जाए तो इससे अधिक और क्या चाहिये और जरा सोचिए कि आज जब घर में रहते हुए बुजुर्ग बच्चां के होते हुए भी कई बार एकाकी हो जाते है क्योंकि बच्चों को समय नहीं माता पिता के लिए..... वो फिर ये तीनों सहेलियाँ तो शानदार बुढ़ापा व्यतीत कर रही हैं..... हमें नहीं पता कि इनकी बातचीत के मुदद्े क्या हैं पर इनको बतियाते देखना बहुत ही सुख होता हैं। तीनों सहेलियाँ एक दूसरे के सुख दुख मे काम आती हैं। कोई एक बीमार हो तो उसकी चिंता दूसरी दोनो को होती हैं राजी बाई जब बाथरूम जाती हैं और मोहन बाई अगर सहारा दे तो वे मना कर देती है कि खुद काम खुद ही करुं तो अच्छा है। आनंद वृद्धाश्रम में और छोटे मोटे मनमुटाव होते हैं। तारा संस्थान के माध्यम से जो कुछ भी हो रहा है उसमें सीधा जुडे़ होने से सबसे बड़ा सुख या खुशी किसी का भला होता देखते में है। जब भी हम तारा नेत्रालय में जाते है और आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए लोग जब ये कहते हैं कि पहले बिलकुल नहीं दिख रहा था और हमारे पैसे भी नहीं लगे...... या फिर...... गांव में जब तृप्ति योजना में जिनको राशन मिलता है वो कहते है कि आप लोग सहायता नहीं देते तो पता नहीं हमारा क्या होता था....... गौरी योजना की विधवा महिलाए जिनसे बात करो और उनके आंसू निकल जाते हैं...... वो जब आंखों में उम्मीद की चमक लिए कहती हैं कि हम अपने बच्चों को पढ़ा सकेंगी तो हम भी उनकी खुशी से सराबोर हो जाते हैं। लेकिन सबसे बडी खुशी जो हम रोज महसूस करते है वो आनंद वृद्धाश्रम में.....क्योंकि मैं और कल्पना जी वहीं पर दोपहर का भोजन लेते हैं और रोज आपको 30-40 वृद्ध मुस्काराते मिले-कोई नमस्ते, कोई आर्शीवाद कोई गर्मजोशी से हाथ मिलाए तो बस मजा आ जाता है...... और इन तीनों में कभी झगड़ा नहीं दिखा। इस तिकडी को देखकर बेहद बेहद खुशी मिलती है। बस, ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इनमें से किसी को भी अपने पास बुलाने की ज़ल्दी ना करे.....
दीपेश मित्तल
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